रविवार को सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर और सोमवार को समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता दारा सिंह चौहान ने एनडीए या कहें बीजेपी का दामन थाम लिया. इससे पहले इस महीने के शुरू में गृहमंत्री अमित शाह ने एलान किया था कि अपना दल और निषाद पार्टी भी एनडीए का हिस्सा होंगे. ये वही गृहमंत्री हैं जिन्होंने कहा था कि देश में छोटी पार्टियों की जरूरत नहीं है. हम छोटी पार्टियों को खत्म कर देंगे. सवाल ये है कि जब यूपी में सीएम योगी आदित्यनाथ का राम राज और मोदी सरकार का विकास लहलहा रहा है तो फिर बीजेपी इन छोटी पार्टियों को साधने में क्यों लगी हैं.
योगी-मोदी से क्या उठ गया भरोसा
2024 को लेकर महागठबंधन की बेचैनी तो सभी को नज़र आ रही है लेकिन सवाल ये है कि पीएम मोदी के चेहरे, सरकार के काम और यूसीसी जैसे मुद्दे के बाद भी बीजेपी को एनडीए बढ़ाने की जरूरत क्यों पड़ रही है. वो भी बुलडोज़र बाबा के राज्य में जहां आज़म खान के परिवार का राजनीतिक सफाया, अतीक और अंसारी बंधुओं का नाश. अयोध्या में राम मंदिर, काशी में ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा में कृष्ण जन्म भूमि, कांवड़, गाय की रक्षा समेत तमाम सफल मुद्दे मौजूद हैं. सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि बतौर सीएम योगी के सफल होने का एलान करने वाले उन्हें अगला पीएम भी बताते हैं. तो फिर भावी पीएम के राज्य में गठबंधनों की तलाश सवाल तो उठाएगी ही.
यूपी में हिंदुत्व पर से उठा बीजेपी का भरोसा
यूपी में जहां ब्राह्मण और राजपूत पहले ही बीजेपी के साथ हैं. जहां ओबीसी मोदी की माला जपता है और नाथ समुदाय में योगी का बोलबाला है. इतना
ही नहीं पीएम की तरह ही योगी हिंदु हद्य सम्राट भी हैं. फिर ऐसा क्या पेंच है कि बीजेपी उत्तर प्रदेश में साथियों की तलाश में है.
विपक्षी एकता से घबराई बीजेपी
तो चलिए गणित को समझते हैं. जिस तरह 2024 के लिए विपक्षी एकता बनाई जा रही है उसके तहत बीजेपी के लिए अब एक-एक सीट महत्वपूर्ण हो गई है. महाराष्ट्र, कर्नाटक या ये कहें पूर्व साउथ, मध्य प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली और वेस्ट बंगाल में पार्टी ने 2019 में सीटों के लिहाज़ से अपने पीक को छू लिया था. अब ये तय है कि यहां सीटें कम होंगी. जबकि बीजेपी चाहती है कि 2024 में यूपी की पूरी 80 सीटें उसकी झोली में रहे.
पूर्वांचल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में है बीजेपी को दिक्कत
बीजेपी की परेशानी पूर्वांचल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश को लेकर ज्यादा है. पूर्वांचल में तो उसका काम सुभासपा यानी ओम प्रकाश राजभर, अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व वाली अपना दल (सोनेलाल) और संजय निषाद के नेतृत्व वाली निषाद पार्टी से चल जाएगा लेकिन परेशानी पश्चिमी उत्तर प्रदेश की है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश यानी जाट लैंड. 2014 में बीजेपी ने पश्चिमी यूपी की 27 लोकसभा सीटों पर बड़ी सेंध लगा कर भारी जीत हासिल की थी. लेकिन 2019 में 27 सीटों में से 19 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली और आठ सीटों पर हार का सामना करना पड़ा. खासकर मुरादाबाद मंडल की सारी सीटें सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन ने जीत ली. इसलिए बीजेपी की नज़र अब आरएलडी के जयंत चौधरी पर है.
क्या पश्चिमी यूपी में जयंत लगाएंगे बीजेपी की नय्या पार
जयंत के पास जाट, गुर्जर, राजपूत और मुसलमानों का वोट है. ये वोट किसान आंदोलन और फिलहाल पहलवानों के आंदोलन से और एकजुट हुआ है. ऐसे में अगर जयंत चौधरी एनडीए में नहीं आया तो यूपी में बीजेपी का खेल बिगड़ सकता है. यानी बीजेपी आरएसएस की उस सलाह को सीरियसली ले रही है जिसमें आरएसएस ने मोदी मैजिक और हिंदुत्व के मुद्दे पर ज्यादा भरोसा नहीं करने को कहा था. आरएसएस ने पार्टी से लोकल मुद्दों और लोकल नेताओं पर भरोसा करने की सलाह दी थी. वैसे 2019 में भी बीजेपी लोकल के लिए वोकल का नारा दे चुकी है लेकिन तब उसका मतलब लोकल सामान था और इस बार छोटी पार्टियां.
खड़गे ने बीजेपी की लोकल के लिए वोकल पॉलिसी का उड़ाया मज़ाक
वैसे समय तेज़ी से बदला है, हाल तक बीजेपी विपक्ष के महागठबंधन को ठगबंधन बता रही थी और अब खुद लोकल के लिए वोकल पॉलिसी अपना रही है. ऐसे में विपक्ष भी इसपर चुटकी लेने से क्यों पीछे रहता तो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि, मुझे ताज्जुब है कि मोदी जी ने राज्यसभा में कहा था कि मैं सभी विपक्षियों पर अकेला भारी हूं. अगर वो सभी विपक्षियों पर अकेले भारी हैं तो वो 30 पार्टियों को क्यों इकट्ठा कर रहे हैं.
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