Friday, October 18, 2024

आखिरकार विपक्षी दलों को क्यों एकजुट करना चाहते हैं नीतीश कुमार

बिहार में लगभग चार दशक से राजनीति में सक्रिय रहते चले आ रहे नीतीश कुमार भले ही यह कह रहे हों कि उनको अपने लिए कुछ नहीं चाहिए और ना ही उन्हें कुछ बनना है लेकिन क्या हमेशा दल और गठबंधन बदल देने वाले नीतीश कुमार जैसे नेता की इन बातों पर विश्वास करना सही होगा. दरअसल राजनीति में हवा के रुख को भांपने में माहिर नीतीश कुमार की इन बातों पर पूरी तरह से भरोसा करना बेमानी होगा. क्योंकि नीतीश कुमार की राजनीति में उतना स्थायित्व नहीं है जितना अन्य नेताओं की राजनीति में स्थायित्व है. क्या सचमुच अब नीतीश कुमार को आगे देश की राजनीति में कुछ नहीं बनना है.क्या नीतीश कुमार सच में 2025 में तेजस्वी यादव को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर देंगे. दरअसल ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो नीतीश कुमार के रहस्यमय राजनीति और व्यक्तित्व के चलते उनके द्वारा दिए गए बयानों के बाद उठने लाजिमी हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ओर से कहे गए इन सभी बातों पर राजनीतिक विश्लेषक अभी उतना भरोसा नहीं कर पा रहे हैं. जिस तरह से हाल के दिनों में नीतीश कुमार ने कई राज्यों के विपक्ष के नेताओें से मुलाकातें की और सभी विपक्षी नेताओं से सत्ताधारी दल बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने का आहवान किया था. क्या यह कहीं ना कहीं नीतीश कुमार की किसी अगली चुनावी रणनीति का संकेत तो नहीं दे रहा है. हालांकि सबसे बड़ा सवाल यह भी उठता है कि नीतीश कुमार समूचे विपक्ष को आखिरकार एक क्यों करना चाहते हैं, जबकि उनको आगे ना तो कुछ बनना है और ना ही उन्हें कुछ चाहिए. ऐसे में नीतीश कुमार क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हार के लिए विपक्ष के एकजुट होने का आहवान तो नहीं कर रहे हैं.

देश में विपक्षी दलों को एकजुट क्यों करना चाहते हैं नीतीश कुमार

नीतीश कुमार ने जहां एक तरफ बिहार में अगला विधानसभा चुनाव तेजस्वी यादव को लीड करने के लिए कह दिया है, वहीं वह पूरे देश में घूम घूमकर समूचे विपक्ष को एकजुट करने की दुहाई देते हुए भी दिखे थे. अब यहां पर सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिरकार जब नीतीश कुमार कह रहे हैं कि उन्हें कुछ नहीं बनना है, तो आखिरकार वह फिर समूचे विपक्ष को एकजुट होने का आहवान क्यों कर रहे हैं. आखिरकार जब नीतीश को आगे राजनीति में नहीं जाना है और उन्हें पीएम नहीं बनना है तो वह केंद्र की राजनीति में इतनी मेहनत क्यों कर रहे हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि नीतीश कुमार नरेन्द्र मोदी के खिलाफ समूचे विपक्ष की ओर से आगामी साल 2024 के लोकसभा चुनाव में पीएम पद की उम्मीदवारी हासिल करना चाहते हैं. हालांकि नीतीश कुमार ने इस बात से हमेशा इनकार किया है कि वह भी देश के प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं. इसके अलावा यदि अतीत में नीतीश कुमार और नरेन्द्र मोदी के संबंधों की बात करें तो दोनों के संबंधों में उतनी मधुरता नहीं रही जितनी की दोनों की बीच दूरी रही है. भाजपा में रहने के दौरान भी नीतीश कुमार और नरेन्द्र मोदी के संबंध उतने मधुर नहीं थे. हालांकि दोनों ने एक साथ मिलकर लंबे समय तक काम जरूर किया है. दरसअल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी राजनीति के शुरूआती दिनों में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव के धुर विरोधी रहे और लालू की सरकार का विरोध करते हुए उन्होंने राजनीति में अपनी एक बेहतर नेता की छवि बनाई लेकिन बीते कुछ सालों में नीतीश कुमार ने अपना ट्रैक बदला मसलन उन्होंने ऐसी राजनीति में ज्यादा फोकस किया जिससे वो हमेशा सरकार और सत्ता में बने रहें. हालांकि मौजूदा समय में नीतीश कुमार को सत्ता का सुख इस तरह से भा गया है कि उन्होंने इसके लिए लालू यादव से भी हाथ मिलाना गलत नहीं समझा. दरअसल नीतीश कुमार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का विरोध करके ही अपनी छवि को एक ईमानदार नेता के रूप में स्थापित किया लेकिन आज एक बार फिर नीतीश कुमार भाजपा का साथ छोड़कर आरजेडी के साथ खड़े हैं. ऐसे में नीतीश कुमार अब यह कहने से भी नहीं चूक रहे हैं कि बिहार में साल 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव को आरजेडी के नेता और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव लीड करेंगे. नीतीश कुमार भविष्य में कैसी राजनीति करना चाहते हैं वह बिल्कुल साफ दिखाई दे रहा है.

नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षा के चलते विपक्षी दल बना रहे उनसे दूरी

दरअसल केंद्र की राजनीति हो या राज्य की राजनीति नीतीश कुमार कभी किसी दल के साथ ज्यादा दिन तक टिककर नहीं रह पाते है. ऐसे में नीतीश कुमार की राजनीतिक महत्वाकांक्षा विशेष रूप से उनकी केंद्र की राजनीति में महत्वाकांक्षा को देखते हुए कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दल उनसे दूरी बनाते हुए दिख रहे हैं. हाल ही में तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने सभी विपक्षी दलों की एक बैठक आयोजित की थी जिसमें उन्होंने नीतीश कुमार को आमंत्रित नहीं किया. ऐसे में कहीं ना कहीं नीतीश कुमार केंद्र की राजनीति में अलग थलग ही दिख रहे हैं. हालांकि तेजस्वी यादव फिलहाल उनके साथ जरूर खड़े हैं. कांग्रेस में भी राहुल गांधी ने जिस तरह से अभी हाल ही में अपनी भारत जोड़ो यात्रा को पूरा करके कश्मीर के लाल चैक पर तिरंगा झंडा फहराया है उससे साफ जाहिर है कि वह लोकसभा चुनाव में किसी विपक्षी दल के नेता को पीएम का उम्मीदवार नहीं मानेंगे. नतीजतन नीतीश कुमार कहीं ना कहीं अकेले ही दिखाई दे रहे हैं.

नीतीश कुमार तेजस्वी के सहारे करना चाहते हैं केंद्र की राजनीति

दरअसल नीतीश कुमार भले ही यह कहते फिर रहे हैं कि वह कुछ नहीं बनना चाहते हैं लेकिन क्या बिहार के मुख्यमंत्री सचमुच कुछ नहीं बनना चाहते हैं. दरअसल राजनीति में मंजे हुए राजनेता अपना सब कुछ नहीं बताते बल्कि कुछ राज वह अपने सीने में भी रखते हैं. दरअसल नीतीश कुमार भी ऐसे ही नेता हैं जो अपने राज को कभी समय से पहले नहीं बताते हैं. यदि सच में नीतीश कुमार कुछ नहीं बनना चाहते हैं तो फिर वह तेजस्वी को अगला विधानसभा चुनाव लीड करने की बात क्यों कर रहे हैं. इसके अलावा नीतीश कुमार अब खुद क्या करेंगें, कहीं ऐसा तो नहीं कि तेजस्वी को 2025 का सीएम फेस दिखाकर खुद 2024 के लोकसभा चुनाव में तेजस्वी का साथ अपने लिए चाहते हों. दरअसल नीतीश के मन और उनकी राजनीति को समझना बहुत मुश्किल है क्योंकि नीतीश कुमार की राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है. नीतीश कुमार विपक्ष को एकजुट करने के लिए आखिरकार नेताओं के घर पर क्यों पहुंच रहे हैं. यह सबसे बड़ा सवाल है. क्या वह आगामी लोकसभा चुनाव में समूचे विपक्ष को नरेन्द्र मोदी के खिलाफ अपने पीछे खड़ा करना चाहते हैं. हालांकि जो हो लेकिन नितिश की निगाह जहां पर टिकी है वहीं पर बीजेपी और नरेन्द्र मोदी भी अपनी नजरें गड़ाए हुए है.

2024 लोकसभा चुनाव में तय होगी नीतीश की अगली सियासी पारी

दरअसल बिहार के मुख्यमंत्री जिस रास्ते पर आगे बढ़ चले हैं उसके हिसाब से अब उनका सियासी भविष्य भी दांव पर लग चुका है. जिस तरह से नीतीश कुमार ने केंद्र सरकार और नरेन्द्र मोदी का विरोध करना शुरू किया है उसको देखते हुए अब उनके सियासी राजनीतिक पारी पर भी संकट आता हुआ दिख रहा है. नतीजतन नीतीश कुमार का सियासी भविष्य अब काफी हद तक अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव पर निर्भर करेगा. अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में नतीजों के आधार पर ही नीतीश कुमार का अगला सियासी सफर भी तय हो जाएगा. जिस नरेन्द्र मोदी के सामने नीतीश कुमार खड़े होना चाहते हैं पीएम उम्मीदवार के तौर पर उन नरेन्द्र मोदी के सियासी भविष्य की परीक्षा अगले साल मई में होने वाले लोकसभा चुनाव में होनी है. ऐसे में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगली रणनीति क्या होगी यह देखने वाली बात होगी.

क्या नरेन्द्र मोदी के चलते एनडीए छोड़कर चले गए नीतीश कुमार

दरअसल नीतीश कुमार ने कुछ महीने पहले ही बीजेपी के एनडीए से अपना गठबंधन तोड़ते हुए राजद के साथ बिहार में अपनी नई सरकार बना ली है. हालांकि जब नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ अपना गठबंधन तोड़ा था तो उस वक्त राजनीतिक विशेषज्ञ भी स्तब्ध रह गए थे कि आखिरकार नीतीश को बीजेपी के साथ क्या दिक्कत हो गई. दरअसल देश की राजनीति को गहराई से समझने वाले यह भी नहीं समझ पाए कि जिस बीजेपी के साथ जुड़कर नीतीश कुमार ने रेल मंत्री और अन्य कई महत्वपूर्ण पदों पर कई वर्षों तक कार्य किया था, उस बीजेपी का साथ उन्होंने अचानक क्यों छोड़ दिया. हालांकि इस संबंध में कई राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी कहना है कि नीतीश कुमार के एनडीए से गठबंधन तोड़ने के पीछे कहीं ना कहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से उनके बेहतर रिश्ते नहीं होना था. दरअसल राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जेडीयू और बीजेपी के गठबंधन में कहीं ना कहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का अहं टकराने लगा था. नतीजतन दोनों के बीच जब संबंध ज्यादा तनावपूर्ण हो गए तो नीतीश कुमार ने एनडीए का साथ छोड़कर आरजेडी के साथ गठबंधन करके नई सरकार बना ली. हालांकि भविष्य में क्या होगा यह तो आने वाले समय में पता चल जाएगा लेकिन एक बात जो अभी पता है कि अब नीतीश कुमार का अगला सियासी भविष्य अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में ही तय हो जाएगा.

 

मनीष कुमार गुप्ता

लेखक एवं स्वतंत्र पत्रकार

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