Saturday, July 27, 2024

Uttarakhand Uniform Civil Code Bill: हिंदू अविभाजित परिवार को क्यों रखा बाहर- ओवैसी, आदिवासियों के छूट तो मुसलमानों को क्यों नहीं-जमियत

मंगलवार को उत्तराखंड विधानसभा में पेश किए गए यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल Uttarakhand Uniform Civil Code Bill पर मुसलिम संगठनों और सांसदों ने सवाल उठाने शुरु कर दिए है. एआईएमआईएम (AIMIM) के सांसद और वकील असदुद्दीन ओवैसी ने तो बाकायदा एक पोस्ट लिख बिल के समान होने पर ही सवाल खड़ा कर दिए है उन्होंने पूछा है कि “क्या कोई कानून एक समान हो सकता है यदि वह आपके राज्य के अधिकांश हिस्सों पर लागू नहीं होता है?” असदुद्दीन ओवैसी ने सवाल किया है कि बिल के दायरे से हिंदू अविभाजित परिवार को क्यों बाहर रखा गया है. आदिवासियों को बाहर क्यों रखा गया है? यदि एक समुदाय को छूट दे दी जाए तो क्या यह एक समान हो सकता है? वहीं असदुद्दीन ओवैसी ने धामी सरकार पर आरोप भी लगाया कि उसने ये बिल इसलिए पेश किया है क्योंकि उत्तराखंड की वित्तीय स्थिति ख़राब है.

वहीं जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने भी सवाल किया है कि जब बिल के दायरे से आदिवासियों को बाहर रखा गया है तो मुसलमानों को क्यों नहीं

हिंदू अविभाजित परिवार को क्यों बाहर रखा गया है-ओवैसी

असदुद्दीन ओवैसी ने अपने ट्वीट में 6 पांइट लिखे है. सबसे पहले उन्होंने बिल को सिर्फ एक हिंदू कोड लागू करना बताया है. उन्होंने लिखा “#उत्तराखंडUCCBill सभी के लिए लागू एक हिंदू कोड के अलावा और कुछ नहीं है. सबसे पहले, हिंदू अविभाजित परिवार को छुआ नहीं गया है. क्यों? यदि आप उत्तराधिकार और विरासत के लिए एक समान कानून चाहते हैं, तो हिंदुओं को इससे बाहर क्यों रखा गया है? क्या कोई कानून एक समान हो सकता है यदि वह आपके राज्य के अधिकांश हिस्सों पर लागू नहीं होता है?”
इसके साथ ही ओवैसी ने मीडिया पर सवाल उठाते हुए पूछा, “ द्विविवाह, हलाला, लिव-इन रिलेशनशिप चर्चा का विषय बन गए हैं. लेकिन कोई यह नहीं पूछ रहा कि हिंदू अविभाजित परिवार को क्यों बाहर रखा गया है.”

वित्तीय स्थिति ख़राब है, इसलिए धामी ने यूसीसी पेश किया बिल

असदुद्दीन ओवैसी ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री धामी पर यूसीसी बिल प्रदेश की बिगड़ी आर्थिक स्थिति से ध्यान भटकाने के लिए पेश करने का आरोप लगाया. उन्होंने लिखा “कोई नहीं पूछ रहा कि इसकी जरूरत क्यों पड़ी. सीएम के मुताबिक बाढ़ से उनके राज्य को 1000 करोड़ का नुकसान हुआ है. 17000 हेक्टेयर कृषि भूमि जलमग्न हो गई और फसल के नुकसान का अनुमान ₹2 करोड़ से अधिक था. उत्तराखंड की वित्तीय स्थिति ख़राब है, इसलिए धामी को इसे सामने रखने की ज़रूरत महसूस होती है.“

यदि एक समुदाय को छूट दे दी जाए तो क्या यह एक समान हो सकता है?

AIMIM सांसद ने बिल को संविधान के अनुच्छेद 25 और 29 का उल्लंघन बताया और कहा कि ये उनकी मौलिक अधिकारों पर हमला है. उन्होंने लिखा “अन्य संवैधानिक और कानूनी मुद्दे भी हैं. आदिवासियों को बाहर क्यों रखा गया है? यदि एक समुदाय को छूट दे दी जाए तो क्या यह एक समान हो सकता है? अगला सवाल मौलिक अधिकारों का है. मुझे अपने धर्म और संस्कृति का पालन करने का अधिकार है, यह विधेयक मुझे एक अलग धर्म और संस्कृति का पालन करने के लिए मजबूर करता है. हमारे धर्म में, विरासत और विवाह धार्मिक प्रथा का हिस्सा हैं, हमें एक अलग प्रणाली का पालन करने के लिए मजबूर करना अनुच्छेद 25 और 29 का उल्लंघन है.”

राष्ट्रपति की सहमति के बिना यह कानून कैसे काम करेगा?

असदुद्दीन ओवैसी ने बिल के एक प्रदेश द्वारा कानून बनाने के फैसले पर भी सवाल उठाए. उन्होंने लिखा, “ यूसीसी का संवैधानिक मुद्दा है. मोदी सरकार ने SC में कहा कि UCC केवल संसद द्वारा अधिनियमित किया जा सकता है. यह विधेयक शरिया अधिनियम, हिंदू विवाह अधिनियम, एसएमए, आईएसए आदि जैसे केंद्रीय कानूनों का खंडन करता है. राष्ट्रपति की सहमति के बिना यह कानून कैसे काम करेगा?”

उन्होंने कहा-” एक स्वैच्छिक यूसीसी पहले से ही एसएमए, आईएसए, जेजेए, डीवीए, आदि के रूप में मौजूद है. जब अंबेडकर ने स्वयं इसे अनिवार्य नहीं कहा तो इसे अनिवार्य क्यों बनाया गया?

जमीयत उलेमा-ए-हिंद का सवाल- जब आदिवासियों को छूट तो मुसलमानों को क्यों नहीं?

वहीं मुसलमानों के एक बड़े संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भी बिल को लेकर सवाल खड़े किए हैं. जमीयत के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने UCC विधेयक को भेदभावपूर्ण बताया है. उन्होंने कहा कि, मुस्लिम समुदाय को ऐसा कोई कानून स्वीकार्य नहीं है, जो शरीयत के खिलाफ हो. इसके साथ ही मौलाना मदनी ने कहा कि जब बिल में अनुसूचित जनजाति को छूट दी जा सकती है तो मुस्लिम समुदाय को छूट क्यों नहीं?

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