मंगलवार को दिल्ली के इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया. “भारत और इंडोनेशिया में शांति और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने में उलेमा की भूमिका” नाम के इस सम्मेलन में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने भी अपने विचार रखे.
सम्मेलन के उद्घाटन सत्र ‘भारत और इंडोनेशिया में उलेमा की भूमिका’ में बोलते हुए एनएसए अजीत डोभाल ने कहा, “हमारे पास अपने धर्मों के समर्थित सच्चे मूल्यों को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिए दुनिया की 1.7 अरब आबादी है. हमें एक साथ मिलकर पूरी दुनिया के लिए उम्मीद और सहयोग के प्रकाश स्तंभ के रूप में इस्लाम के उदारवादी रुप का प्रचार करने का प्रयास करना चाहिए.”
इस सम्मेलन में अजित डोभाल के निमंत्रण पर इंडोनेशिया में उनके समकक्ष मोहम्मद महफुद भी उपस्थित थे. महफूद इंडोनेशिया के उलेमाओं के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ भारत आए हैं.
सम्मेलन में एनएसए ने कहा कि इंडोनेशिया में दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी रहती है, जबकि भारत में तीसरे नंबर पर सबसे ज्यादा मुसलमान रहते हैं. दोनों देश चाहें तो वैचारिक संतुलन बना इस्लाम पर बहस को संयम बनाम अतिवाद के पक्ष में मोड़ सकते हैं.
वैश्विक व्यवस्था में एक प्रमुख मंथन की पृष्ठभूमि में, भारत और इंडोनेशिया के बीच एक रणनीतिक साझेदारी एशिया में शांति, क्षेत्रीय सहयोग और समृद्धि को बढ़ावा दे सकती है, डोभाल ने कहा “यह ऐसे समय में है जब भारत और इंडोनेशिया जैसे देश अपने अनुभव के साथ अनेकता में एकता, सद्भाव और सह-अस्तित्व दुनिया का एक संयुक्त संदेश दुनिया को दे सकता है … यह दो बड़े देशों के दृढ़ संकल्प का एक शक्तिशाली प्रतीक होगा।”
डोभाल ने कहा कि उलेमाओं के समर्थन के साथ, दोनों देशों के लिए यह आवश्यक है कि वे सक्रिय रूप से कट्टरवाद पर एक सामान्य नेरेटिव विकसित करें. उन्होंने कहा “ये उलेमाओं की अहम जिम्मेदारी है कि वह इस्लाम के सहिष्णु सिद्धांतों को लोगों तक पहुंचाएं और प्रगतिशील विचारों से कट्टरता और उग्रवाद का मुकाबला करें.”
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में अभद्र भाषा (हेट स्पीच )का कोई स्थान नहीं है.
एनएसए डोभाल ने उलेमाओं को सलाह दी कि नेरेटिव्स के युद्ध में, जहां मुख्य निशाना युवा हैं, धार्मिक विद्वानों को टेक्नोलॉजी के उपयोग में निपुण होना चाहिए और उसका इस्तेमाल प्रचार और नफरत के शैतानी डिजाइनों का मुकाबला करने के लिए करना चाहिए. उन्होंने कहा “सक्रिय होना और शत्रुओं के निर्धारित एजेंडे पर प्रतिक्रिया नहीं करना” महत्वपूर्ण है.
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि समाज में नकारात्मक विचारों का मुकाबला करने के लिए राज्य के संस्थानों को एक साथ आने और जानकारी साझा करने की ज़रुरत है.
एनएसए ने कहा “हमारे दोनों देश आतंकवाद और अलगाववाद के शिकार रहे हैं. जबकि हमने काफी हद तक चुनौतियों पर काबू पा लिया है लेकिन सीमा पार और आईएसआईएस से प्रभावित आतंकवाद की घटना एक खतरा बना हुआ है. डोभाल ने कहा कि आईएसआईएस से प्रेरित व्यक्तिगत आतंकवादी समूहों और सीरिया और अफगानिस्तान जैसे जगाहों से लौटने वालों से पैदा होने वाले खतरे का सामना कहने के लिए नागरिक समाज का सहयोग जरुरी है.
एनएसए ने जोर देकर कहा कि आतंक की कहानी को उचित नहीं ठहराया जा सकता है. ” अतिवाद, कट्टरता और धर्म के दुरुपयोग से हासिल किए गए किसी भी उद्देश्य को न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता है. यह धर्म की विकृति है जिसके खिलाफ हम सभी को आवाज उठाने की जरूरत है.
डोभाल ने कहा सम्मेलन का आयोजन मार्च में मेरी इंडोनेशिया यात्रा और इस महीने की शुरुआत में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की जी -20 शिखर सम्मेलन के लिए बाली की यात्रा के बाद ही मुमकिन हो पाया है. भारत इंडोनेशिया को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के प्रवेश द्वार के रूप में देखता है और इंडोनेशिया के सामरिक महत्व को पूरी तरह से पहचानता है.
उन्होंने कहा “कट्टरता और आतंकवाद इस्लाम के अर्थ के खिलाफ हैं क्योंकि इस्लाम का अर्थ शांति और भलाई (सलामती / असलम) है. कट्टर और आतंकवादी ताकतों के विरोध को किसी धर्म के साथ टकराव के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. ऐसा करना सिर्फ एक चाल है.”
एनएसए ने जोर देकर कहा कि भारत और इंडोनेशिया को अपने सकारात्मक संवाद को बढ़ावा देने के लिए अपनी ऐतिहासिक परंपराओं को खंगालना चाहिए.
एनएसए के बाद इंडोनेशिया के राजनीतिक, कानूनी और सुरक्षा मामलों के समन्वय मंत्री डॉ मोहम्मद महफूद एमडी ने इंडोनेशिया में अंतर्धार्मिक शांति और सामाजिक सद्भाव की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए उलेमा की भूमिका पर जोर दिया. उन्होंने अपने देश में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और सभी धर्मों द्वारा असहिष्णुता और भेदभाव की अस्वीकृति पर जोर दिया.
डॉ महफुद ने कहा, “वास्तव में, उलेमा और अन्य धार्मिक नेता, इंडोनेशिया के इतिहास की शुरुआत से ही, औपनिवेशिक शक्तियों से स्वतंत्रता प्राप्त करने के संघर्ष के समय से लेकर वर्तमान आधुनिक समय तक, इंडोनेशिया के सामंजस्यपूर्ण समाज के महत्वपूर्ण अंग रहे हैं.”
उन्होंने कहा, “अब धार्मिक नेता लोगों के लिए अच्छी जिंदगी और उनकी समृद्धि की दिशा में विकास की नीतियां बनाने में सरकार का समर्थन कर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.”
अपने भाषण के दौरान, डॉ महफूद ने इंडोनेशिया में बहुलतावादी समाज पर विचार किया। “मुझे लगता है कि धर्म, शांति का स्रोत होना चाहिए, न कि कलह, संघर्ष या हिंसा का कारण. धर्म को जोड़ने वाला होना चाहिए, न कि विभाजनकारी.
सम्मेलन में मेहमानों का स्वागत करते हुए इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर के अध्यक्ष सिराजुद्दीन कुरैशी ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि सम्मेलन के संदेश दुनिया में शांति और सद्भाव को बढ़ाने में मददगार होगा.
उन्होंने कहा कि “भारत और इंडोनेशिया दोनों सहिष्णुता, शांतिपूर्ण और सह-अस्तित्व की मिसाल के तौर पर अनेकता में एकता के संदेश को देते खड़े हैं.”