आरा: बिहार के आरा के रहने वाले एक युवक ने छोटे से गांव में रेडीमेड कपड़ों के फैक्ट्री लगाकर अपने आपको एक अलग ही रूप में स्थापित किया है. आरा के सर्योदय नगर निवासी रिटायर्ड शिक्षक के 32 साल के बेटे मिथलेश कुमार ने दो सिलाई मशीन और 3 कारीगरों के बदौलत ऐसे मुकाम पर पहुंच चुके हैं. वह किसी परिचय के मोहताज नहीं है. मिथिलेश कुमार की सोच ने एक छोटे से गांव की पहचान बदल दी. गांव में रेडीमेड वास उद्योग लगाकर ‘आर्मर’ नाम की कंपनी को ब्रांड बना दिया.
उसने अपने हौसलों के बदौलत गांव में कपड़ा उद्योग की फैक्ट्री लगाकर 70 लोगों को नौकरी देने का काम किया है. इसमें 20 से 25 महिलाएं हैं, जो काम सीखने के साथ रोजगार पा रही है. इस फैक्ट्री में कसाप गांव के आस–पास के कारीगर काम करते है. कोरोना काल में दूसरे राज्यों से कम कर गांव वापस लौटे कारीगरों को मिथिलेश ने रोजगार दिया, आज वह सभी कारीगर मिथिलेश से जुड़कर प्रति माह 25–30 हजार रुपए कमा रहे हैं.
कई राज्यों में फैला है व्यापार
कंपनी की टर्नओवर पिछले तीन सालों में दो करोड़ से ज्यादा का हो गया है। आज के समय में आर्मर में बने टीशर्ट,लोअर, शर्ट,ब्लेजर,इनर,ट्रैक सूट,स्पोर्ट्स से जुड़े यूनिफॉर्म जैसे कपड़े बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल,असम जैसे राज्यों में धूम मचा रहा है. इस ब्रांड के कपड़े के अपने ग्राहक है. मिथलेश ने मैट्रिक की पढ़ाई 2005 में शहर के क्षत्रिय उच्च विद्यालय से की,जबकि इंटर की पढ़ाई जैन कॉलेज और स्नातक की पढ़ाई एसबी कॉलेज से फाइनल की. इसके बाद मिथिलेश ने इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी से एमबीए किया। 2013–16 तक उसने जस्ट डायल डॉट कॉम कंपनी में एरिया मैनेजर के रूप में उत्तर प्रदेश में काम किया .
छोटे स्तर से की थी शुरूआत!
इसी दौरान उनके मन में अपने कामों को लेकर संतुष्टि नहीं हुई और उन्होंने सोचा कि दूसरे के यहां नौकरी करने से बेहतर है की अपने यहां लोगों को रोजगार देना. 2017 में दो सिलाई मशीन और तीन कारीगर के साथ अपने घर के एक कमरे से प्रिंटिंग और कस्टमाइजेशन का काम शुरू किया। इसके बाद 2017 से लेकर 2020 तक इकौना में तीन से चार कमरा लेकर स्कूल यूनिफार्म और अलग-अलग कपड़ों का ऑर्डर पर काम किया.
कोरोना में घर लौटे बेरोजगारों को दिया रोजगार
2020 में कोरोना महामारी को लेकर सूरत, गुजरात, अहमदाबाद, मुंबई जैसे रेडीमेड वस्त्र के उद्योग के हब कहे जाने वाले बड़े-बड़े शहरों से हजारों की संख्या में बिहारी कारीगर अपने–अपने गांव लौट आए. उसे मिथिलेश ने अवसर के रूप में अपनाया और मुद्रा लोन से 5 लाख की बैंक गारंटी करा कसाब गांव में करीब एक एकड़ कैंपस में रेडीमेड वस्त्र की फैक्ट्री खोली. बड़े स्तर पर व्यवसाय को बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री उद्यमी योजना के तहत 10 लाख का लोन लिया.
क्रिकेट के शौकीन हैं मिथलेश
मिथिलेश बचपन से ही क्रिकेट खेलने में माहिर है, उन्होंने आरा का प्रतिनिधित्व करते हुए जिला व राज्य स्तरीय मैच खेल चुके हैं. उनका कहना है कि उनकी फैक्ट्री में कम से कम 400 लोगों को रोजगार देने का लक्ष्य रखा गया है. फैक्ट्री में काम करने वाले कारीगरों क्षमता के अनुसार मासिक वेतन दिया जाता है. न्यूनतम आठ हजार और अधिकतम 25 से 30 हजार तक की सैलरी दी जा रही है. कई महिला व पुरुष कारीगर ऐसे हैं जो सीख भी रहे है और कमा भी रहे है. खासकर गांव की रहने वाली महिला काम खत्म होने के बाद अपने घर में बेवजह बैठी रहती थी. आज वह महिला हमारे यहां काम सीख रही है और कमा भी रही है.
हाईटेक मशीन के साथ ब्रांडेड वाली काम है आर्मर में
आर्मर कंपनी के मैनेजर विनय कुमार बताते हैं कि यहां पर चैन सिस्टम से कम होता है, हमारे यहां सिलाई ब्रांडेड कंपनी की तरह होता है। हमारे यहां मशीन अलग तरीके का है. जिसकी कीमत तीस हजार से डेढ़ लाख तक की है. अलग-अलग कपड़े के आइटम को बनाने के लिए मशीन अलग है. हमारे यहां कारीगर दिहाड़ी और मासिक पर भी है. काम करने वाले कारीगरों को पहले ट्रेंड किया जाता है उसके बाद उसके हिसाब से काम कराते है. इस कंपनी से 70 परिवारों को रोजगार मिला है. कंपनी में दिल्ली,लुधियाना, भिवंडी जैसे शहरों से कपड़ों के थान और सिलाई संबंधित जरूरत के समान मंगवाए जाते है.
फैक्ट्री में काम करने वाले जितेंद्र ने बताया कि वो मुंबई में रहकर कपड़े कटिंग का काम करते थे, लेकिन कोरोना काल में काम छोड़कर अपने गांव वापस आ गए. जिसके बाद मिथिलेश ने मेरे हुनर को पहचाना और अपने कंपनी में काम भी है. इस कंपनी में कटिंग का काम करते हैं, प्रतिदिन 450 और महीने में पंद्रह हजार अलग-अलग टाइप के कपड़े कटिंग कर आगे के कारीगरों को सौंप देते हैं. जितेंद्र ने कहा कि मिथलेश जैसे सोच रखने वाले लोग बिहार उद्योग ला दे. तो बिहारी बाहर जाकर काम नहीं कर अपने गांव में काम करेगा.