Thursday, October 10, 2024

सऊदी अरब के इस फैसले से पूरी दुनिया में मचेगा हाहाकार, अमेरिका ने रूस को बताया वजह, जानिए पूरा मामला!

महंगाई की मार से इस वक्त पूरी दुनिया बेहाल है. बढ़ते तेल के दामों ने तो लोगों का दिवाला निकल दिया है. इस बीच एक और तगड़े झटके के लिए तैयार हो जाइये. जी हाँ तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक और ओपेक प्लस ने कीमतों में तेजी लाने के लिए कच्चे तेल के उत्पादन में बड़ी कटौती करने का फैसला किया है. यह फैसला वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक और झटका साबित होने वाला है. इसके क्या दुष्परणाम होगा और ये फैसल क्यों लिया गया आइये बताते हैं .
ये कदम उठाते हुए रूस ने तेल उत्पादक देश ओपेक के साथ मिलकर बड़ा खेल कर दिया है. ओपेक+ नाम से विश्व प्रसिद्ध इस संगठन ने तेल उत्पादन में कटौती का ऐलान किया है. ऐसे में पिछले कुछ वक्त से वैसे ही तेल के दाम जो आसमान छु रहे हैं. वो और भी ज्यादा बढ़ जाएंगे . अमेरिका के साथ सतह तमाम पश्चिमी देश पहले से ही ओपेक देशों से तेल के उत्पादन को बढ़ाने का की बात कर चुके हैं . यहाँ तक की इस सिलसिले में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने तो सऊदी अरब की यात्रा में सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से मुलाकात भी की थी . हालांकि, बाइडेन का यह दौरा नाकाम साबित हुआ . सऊदी ने तेल उत्पादन बढ़ाने से साफ इनकार कर दिया.
ऐसे में जब इस फैसला की आलोचना होने लगी . तो तेल उत्पादन में कटौती करने के बाद सऊदी अरब ने सफाई दी है. सऊदी का कहना है कि उत्पादन में 20 लाख बैरल प्रति दिन की कटौती पश्चिम में बढ़ती ब्याज दरों और कमजोर वैश्विक अर्थव्यवस्था का जवाब देने के लिए जरुरी थी. सऊदी ने ये भी कहा है जो कटौती वो कर रहे हैं वो वैश्विक आपूर्ति के 2 फीसदी के बराबर है. सिर्फ इतना ही नहीं इस फैसले पर जब रूस की मिलीभगत पर सवाल खड़े हुए तो सऊदी ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि तेल की कीमतों को बढ़ाने के लिए ओपेक+ समूह में शामिल रूस के साथ कोई मिलीभगत नहीं है . ये आरोप सरसर बेबुनियाद है .
वैसे इस फैसले में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को भी वजह मना जारहा है . इसकी वजह ये है जब से बाइडेन राष्ट्रपति बने हैं . तब से अमेरिका और सऊदी अरब के रिश्ते कुछ ठीक नहीं रहे . जहाँ जहाँ सऊदी को अमेरिका कि जरुरत थी उस हर मुश्किल में अमेरिका ने सऊदी का साथ छोड़ दिया . फिर बात चाहे हूती विद्रोहियों के लगातार होने वाले हमलों की ही क्यों न हो . ऐसे में जब अमेरिका दूर हुआ तो सऊदी अरब ने रूस के साथ दोस्ती बढ़ाई. जिसका सबूत तब दिखा जब जहाँ एक तरफ पूरी दुनिया उक्रैन पर रूस के हमले की निंदा कर रहा था तब सऊदी अरब शांत था . इसके इलावा दोनों देश तेल व्यापार को लेकर और ज्यादा करीब आए हैं. सऊदी अरब भी अपने तेल से ज्यादा से ज्यादा राजस्व अर्जित करना चाहता है. वहीं, रूस भी चाहता है कि सऊदी को साथ लेकर वह अपने ऊपर लगे अमेरिका और पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों को कमजोर कर सके.
हालांकि इस फैसले का असर सिर्फ अमेरिका पर नहीं पड़ेगा इसका असर सबसे ज्यादा भारत जैसे विकासशील देश पर पड़ेगा. जहाँ महंगाई से वैसे ही जनता की हालत पस्त है . ऐसे में अमेरिका चाहता है कि सऊदी अरब समेत तमाम ओपेक देश तेल का उत्पादन बढ़ाएं. जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें कम हो . अमेरिका की इस मांग के पीछे भी कही न कही कूटनीति है वो ऐसा इसलिए भी चाहता है क्योंकि जब खाड़ी देश तेल का उत्पादन बढ़ाएंगे तो वो तेल की कीमत कम करेंगे और फिर चीन पाकिस्तान भारत जैसे देश रूस की जगह इन सऊदी अरब जैसे देशों से तेल खरीदेंगे. जिससे रूस को नुकसान पहुँचेगा. खनिज व्यापार से होने वाली कमाई बिलकुल ठप पड़ जाएगी. लेकिन बाइडेन प्रशासन की सलाह के बावजूद ओपेक देशों ने उत्पादन बढ़ाने से इनकार कर अमेरिका के अरमानों पर पानी फेर दिया . इसका सीधा लाभ रूस को हुआ और उसके सस्ते तेल को खरीदने वालों की संख्या में जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुई है. रूस के तेल खरीदारों में पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे आर्थिक संकट से जूझ रहे देश भी शामिल हो रहे हैं.
हालाँकि ओपेक प्लस ने अपने बयान में कहा कि यह फैसला वैश्विक आर्थिक और कच्चे तेल के बाजार परिदृश्य में अनिश्चितता को देखते हुए लिया गया है. उत्पादन में कटौती से तेल के दाम और उससे बनने वाले पेट्रोल की कीमत पर विशेष असर नहीं पड़ेगा क्योंकि ओपेक प्लस के सदस्य पहले ही समूह द्वारा तय किए गए ‘कोटा’ को पूरा नहीं कर पा रहे हैं.

Html code here! Replace this with any non empty raw html code and that's it.

Latest news

Related news