Sunday, December 22, 2024

बहुत दर्दनाक है महिलाओं के साथ होने वाली ये कु-प्रथा, 51 देशों में बैन फिर भी ज़िंदा है ये परंपरा !

अंधविश्वास तो कभी मनघडत परम्पराएं ये सभी चीज़े कभी कभी ऐसे ऐसे गुनाहों को जन्म देती है . जिसके शिकार होकर कई मासूम या तो अपनी ज़िन्दगी गवा बैठते हैं या फिर अपने मान सम्मान की के साथ साथ अपनी आज़ादी . जैसे की उद्धरण के तौर पर आप सती प्रथा या फिर बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं को ले सकते हैं . जिनके कई महान लोगों ने विरोध किया और आज इन सभी परमपराओं को हमारे समाज से उखाड़ कर फेंक दिया . सती प्रथा में किसी भी महिला को जिसका पति मरजाता था तो उसे भी जलती अग्नि में जलाकर मार दिया जाता था. इसके अलावा भी कई ऐसी को प्रथाएं हैं जो आज भी दुनिये के कई हिस्सों में मौजूद है . ये प्रथाएं सिर्फ प्रथाएं नहीं बल्कि मानवता को कष्ट देने वाली प्रताड़नाएं बन चुकी है . जो आज भी कई देशों में निर्विरोध लागू है और उनका सख़्ती से पालन भी होता है . एक ऐसी ही प्रथा का नाम है खतना. इस्लाम में पुरुषों का खतना करने के रिवाज के बारे में तो सुना ही होगा. लेकिन ये बात बहुत कम लोग जानते हैं कि खतना सिर्फ पुरुषों का ही नहीं बल्कि महिलाओं का भी किया जाता है .

खतना परमपरा कई सालों से चली आरही है लेकिन इस परंपरा से जूझने वाले जिस कदर दर्द सहते हैं वो जीतेजी नरक भोगने से कम नहीं है . कई किस्से तो इतने भयानक होते हैं कि सुनने वाले भी खौफजदा हो जाए . ऐसी ही एक कुप्रथा महिलाओं से जुड़ी है. जो सिर्फ इस्लाम में ही नहीं बल्कि ईसाई धर्म के कुछ समुदायों में होता है!

जो लोग इस कुप्रथा के बारे में नहीं जानते तो उन्हें बता दें कि इस परंपरा को फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन या एफजीएम कहा जाता है. आम भाषा में इसे महिलाओं का खतना कहते हैं. मान्यता के नाम पर की जाने वाली इस प्रक्रिया में महिला के प्राइवेट पार्ट के बाहरी हिस्से, को ब्लेड या किसी धारदार औजार से काट देते हैं. सबसे ज्यादा दर्दनाक और हैरानी की बात ये है कि इस पूरे प्रोसेस को बिना बेहोश किए ही किया जाता है. यानी जब ये होता है तब पीड़ित पूरे होश में होता है.

डब्लूएचओ के मुताबिक जो भी प्रक्रिया बिना किसी चिकित्सकीय कारणों के महिलाओं के गुप्तांगो को नुकसान पहुंचाए और उसमें बदलाव करे, उसे एफजीएम की ही श्रेणी में डाला जाता है. बहुत से लोगों का दावा है कि इस प्रथा से सेहत को लाभ होता है, पर ये पूरी तरह से गलत और बेबुनियाद बात है. डाउन टू अर्थ वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार ये कुप्रथा आज भी 92 से ज्यादा देशों में जारी है. इन देशों में 51 में इस प्रथा को कानूनी तौर पर बैन कर दिया गया है जिसमें भारत भी शामिल है. मिली जानकारी के मुताबिक मिस्र में महिलाओं के खतना से जुड़े सबसे ज्यादा मामले सामने आते हैं. माना जाता है कि ये प्रथा अफ्रीकी देशों में प्रचलित है पर एशिया, मध्य पूर्व, लैटिन अमेरिका, यूरोप, यहां तक कि ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में भी प्रचलन में है. भारत में यह प्रथा बोहरा समुदाय और केरल के एक सुन्नी मुस्लिम समुदाय में मुख्य रूप से होती है.
लेकिन सवाल ये कि ये प्रथा क्यों होती है क्या वजह है कि महिलाओं को छोटे छोटे बच्चों को इतनी पीड़ा पहुँचाई जाती है .
दरअसल, ये अंधविश्वास का नतीजा है, जो सालों पुराना है. शिशु अवस्था से 15 साल तक की बच्चियों का खतना सिर्फ इसलिए होता है जिससे उनकी यौन इच्छाएं पूरी तरह दब जाएं और शादी से पहले वो ऐसी किसी भी भावना को ना मेहसूस करें जिससे वो ‘अशुद्ध’ हो जाएं. आसान शब्दों में कहें तो अपनी विर्जिनिटी खोना . यानी कि इस प्रथा के नाम पर महिलों का शोषण किया जाता है . उनसे उनका अधिकार छीन लिया जाता है .
हालाँकि जहाँ भी इसका विरोध हुआ वहां लोगों ने इसके फायदे गिनाएं लेकिन किसी ने भी उस दर्द का ज़िक्र नहीं किया जो एक बच्चा सहता है .

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