Friday, November 22, 2024

गर्भपात पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला,डॉक्टर की मंजूरी से 24 हफ्ते तक गर्भपात का अधिकार

गर्भपात को लेकर दुनिया भर में बहस चल रही है. हाल ही में अमेरिका में दस साल की बच्ची के साथ रेप के बाद हुए गर्भधारण और फिर उसके गर्भपात को लेकर गंभीर चर्चा हुई कि क्या गर्भधारण की स्थिति में महिलाओं का अपने शरीर पर हक होना चाहिये या नहीं?

हाल ही में भारत में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला देते हुए  24 हफ्ते की गर्भवती 25 साल की महिला को गर्भपात की इजाज़त दी. इस महिला को हाइकोर्ट ने गर्भपात की इजाज़त देने से इंकार कर दिया था.  हाईकोर्ट ने महिला को गर्भपात की इजाज़त देने से इंकार करते हुए कहा था कि सहमति से गर्भधारण करने वाली महिला मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी कानून 2003 के तहत इस श्रेणी में  नहीं आती है लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल सांईंसेस (AIIMS) द्वारा गठित बोर्ड के निष्कर्ष के आधार पर तय किया जाये कि महिला के जीवन को ख़तरा हुए बिना क्या गर्भपात किया जा सकता है?

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणी देते हुए कहा कि एक महिला अविवाहित है, सिर्फ इसलिए उसे गर्भपात करने से रोका नहीं जा सकता है.अगर कानून विवाहित महिला को 24 हफ्ते के बाद भी गर्भपात की इजाज़त देता है तो ये अधिकार अविवाहित महिला को भी मिलना चाहिए. कोर्ट ने ये भी कहा कि याचिकाकर्ता को केवल इस आधार पर लाभ से वंचित नहीं किया जाना चाहिये क्योंकि वो अविवाहित है.

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में AIIMS को एक टीम के गठन का आदेश दिया है. AIIMS की टीम यह तय करेगी कि क्या महिला के जीवन को ख़तरे में डाले बिना गर्भपात संभव है? AIIMS को अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपनी होगी.

यहां ये जान लेना जरूरी है कि भारत में गर्भपात के लिए क्या कानून है?

भारत में कानूनी तौर पर सामान्य स्थिति में विवाहित महिलाओं को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 के तहत 20 सप्ताह तक (लगभग 5 महीने) गर्भपात की इजाज़त है. 2021 में इस एक्ट में संशोधन कर इसे कुछ ख़ास परिस्थितियों जैसे बलात्कार, एक ही परिवार के सदस्यों के बीच अवैध संबंध से हुए गर्भ के मामले में ये समय सीमा बढ़ा कर 24 सप्ताह(लगभग छह महीने) तक कर दिया गया. इसका मतलब ये हुआ है कि अगर कोई अपरिहार्य स्थिति होती है तो गर्भपात की इजाज़त दी जा सकती है लेकिन इसके लिए  डॉक्टर की मंज़ूरी होना ज़रूरी है. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि जब विवाहित महिला को 24 सप्ताह के गर्भ को हटाने की सुविधा कानून ने दे  रखी है तो अविवाहित महिलाओं को भी अनुमति मिलनी चाहिए.जान का ख़तरा दोनों को एक जैसा ही होगा चाहे वो विवाहित हो या फिर अविवाहित.

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के बाद ये साफ है कि अनचाहे गर्भ के मामले में महिला को गर्भपात की इजाज़त मिल गई है चाहे वो विवाहित हो या अविवाहित.ये महिला का अधिकार है कि वो गर्भ रखना चाहती है या नहीं.

 

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