नई दिल्ली : शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को जाति जनगणना का विवरण प्रकाशित करने से रोकने की मांग को नकार दिया. कोर्ट ने कहा, वह राज्य के नीति निर्धारण निर्णय में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को किया नोटिस जारी
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी की पीठ ने पटना उच्च न्यायालय के 1 अगस्त के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर एक औपचारिक नोटिस जारी किया, जिसमें बिहार में जाति सर्वेक्षण को मंजूरी दी गई थी. इसने मामले को जनवरी 2024 में सूचीबद्ध किया.
पीठ ने इस मामले पर बिहार सरकार से चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है. अब इस मामले में सुनवाई जनवरी 2024 में होगी.
हम इस समय कुछ भी नहीं रोक रहे हैं-कोर्ट
वहीं, याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि, जाति जनगणना के आंकड़े सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के मुताबिक नहीं जुटाए गए है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण के लिए विवरण एकत्र करने का कोई वैध उद्देश्य नहीं था.
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की उन आपत्तियों को खारिज कर दिया कि बिहार सरकार ने कुछ डेटा प्रकाशित करके स्थगन आदेश को टाल दिया था और डेटा के आगे प्रकाशन को रोकने के आदेश की मांग की थी.
“हम इस समय कुछ भी नहीं रोक रहे हैं. हम राज्य सरकार या किसी भी सरकार को नीतिगत निर्णय लेने से नहीं रोक सकते. यह गलत होगा… ” पीठ ने कहा, हम इस अभ्यास को संचालित करने के लिए राज्य सरकार की शक्ति के संबंध में अन्य मुद्दे की जांच करने जा रहे हैं.”
गोपनीयता का उल्लंघन के आरोप को भी कोर्ट ने नकारा
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अपराजिता सिंह ने कहा कि मामले में गोपनीयता का उल्लंघन हुआ है और उच्च न्यायालय का आदेश गलत है.
जवाब में, पीठ ने कहा कि चूंकि किसी भी व्यक्ति का नाम और अन्य पहचान प्रकाशित नहीं की गई है, इसलिए यह तर्क कि गोपनीयता का उल्लंघन हुआ है, सही नहीं हो सकता है.
पीठ ने कहा, “अदालत के विचार के लिए अधिक महत्वपूर्ण मुद्दा डेटा का विवरण और जनता के लिए इसकी उपलब्धता है.”
नीतीश सरकार ने जारी किए जाति जनगणना के आकड़े
2 अक्टूबर को, बिहार में नीतीश कुमार सरकार ने 2024 के लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले अपनी जाति जनगणना के निष्कर्ष जारी किए. आंकड़ों से पता चला कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) राज्य की कुल आबादी का 63 प्रतिशत हिस्सा हैं.
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