Friday, March 28, 2025

‘नाबालिग के प्राइवेट पार्ट को छूना या उसका नाड़ा तोड़ना रे’प नहीं’ वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने लिया संज्ञान, आज होगी सुनवाई

Supreme Court :  इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले का सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया है, जिसमें कोर्ट ने एक 11 साल की लड़के के मामले में आरोपी को रे’प के आरोप से मुक्त कर दिया था. जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की सिंगल बेंच ने एक  नाबालिक बच्ची के मामले में दो आरोपियों की पुनरीक्षण याचिका  पर सुनावई करते हुए  एक विवादस्पद टिप्पणी की थी.

Supreme Court ने किस बात पर लिया स्वतह संज्ञान   

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि “नाबालिग लड़की का केवल प्राइवेट पार्ट छूना रे’प का प्रयास नहीं कहा जा सकता. जस्टिस मिश्रा ने कहा कि प्राइवेट पार्ट को छूना, उसके पायजामे के नाड़े को तोड़ना और उसे खींचकर पुलिया के नीचे ले जाना रे’प या रे’प की कोशिश के अपराध के अंतर्गत नहीं आएगा.”

इलाहाबाद हाईकोर्ट के द्वारा किये गये इस टिप्पणी पर पूर देश में गुस्से का महौल है. अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वतह संज्ञान लिया है. इस मामले में आज सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच सुनवाई करेगी. इस बेंच में जस्टिस बीआर गंवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह हैं.

गरिमा पर आघात कह सकते हैं, रे’प का प्नयास नहीं – इलाहाबाद हाईकोर्ट

आपको बता दें कि ये मामला एक 11 साल की बच्ची का है, जिसपर  इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने केस को आंशिक रुप से स्वीकार करते हुए कहा था कि पीड़िता की छाती को पकड़ना और उसके पाजामे के नाड़े को तोड़ने के आरोप के कारण ही केवल आरोपी के खिलाफ रे’प की कोशिश का मामला नहीं बन जाता है. जस्टिस मिश्रा ने मामले में टिप्पणी करते हुए कहा था कि तथ्यों को रिकॉर्ड करने के बाद ये मामला महिला की गरिमा पर आघात का तो बनता है लेकिन इसे रे’प का प्रयास नहीं कह सकते.

इस फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई , जिसपर सोमवार 24 मार्च को सुनवाई होनी थी लेकिन कोर्ट ने सुनवाई करने से इंकार कर दिया था, अब दो दिन के बाद सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई होगी.याचिका में मांग की गई है कि सुप्रीम अदालत केंद्र सरकार और इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को ये निर्देश दे कि वो इस फैसले से विवादित हिस्से को हटाकर रिकॉर्ड दुरुस्त करे.

इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने इस मामले में आरोपी के खिलाफ IPC की धारा 354 B और पॉक्सो कानून की धारा 9/10 के तहत केस चलाने का आदेश पारित किया था. इस फैसले के बाद पूरे देश में पॉक्सो कानून और नाबालिग की सुरक्षा के लेकर गंभीर बहस छिड़ गई है, इस विवादित फैसले का जमकर विरोध भी हुआ है. कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट से फैसले में स्वत:संज्ञान लेने की अपील की थी.

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