Success Story Of Dada Saheb: किस्मत का खेल बड़ा ही निराला है. ये कब और कैसे पलट जाए कुछ कहा नहीं जा सकता. अब देखिये.. कभी रेलवे स्टेशनों पर चाय बेचने वाला व्यक्ति आज हमारे देश के प्रधानमंत्री बनकर देश को विकास और उन्नति की राह दिखा रहे हैं. आज हम आपको एक ऐसी ही शख्सियत से रूबरू कराने जा रहे हैं, जो कभी दिन रात झाड़ू पोछा लगाकर दिन का सिर्फ 80 रुपया कमाकर अपने घर का गुजारा करता था, लेकिन आज वही शख्स करोड़ों का मालिक है. अब इसे मेहनत कहें या किस्मत का खेल लेकिन ये पक्का है कि ये कहानी सुनने के बाद आप भी कहेंगे अगर ये हो सकता है तो कुछ भी हो सकता है.
दो बड़ी कंपनियों के मालिक हैं दादा साहेब
वो कहते हैं ना मेहनत और लगन हो तो हाथों की रेखाओं का लिखा भी बदला जा सकता है. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है दादा साहेब भगत ने. दादा साहेब भगत कभी इंफोसिस के दफ्तर में ऑफिस ब्वॉय का काम करते थे. दादा साहेब भगत की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं. ऑफिस बॉय की नौकरी करते हुए उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अपने सपनों की राह पर चलते रहे. जिसका नतीजा है कि आज वह दो बड़ी कंपनियों के मालिक है. प्रधानमंत्री भी दादासाहेब के इस हौसले की तारीफ कर चुके हैं. आईए आपको बताते हैं दादा साहेब भगत ने जिंदगी में कैसे अपने सपनों को पूरा किया है.
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दादा साहेब भगत का जन्म 1994 में महाराष्ट्र के बीड में हुआ था. इन्होने हाई स्कूल की पढ़ाई के बाद IIT किया . जिस समय वह IIT कर रहे थे, उस समय इन्हे काम की सख्त जरूरत थी इसलिए इन्होने गेस्ट हाउस में रूम सर्विस का काम शुरु कर दिया. इंफोसिस के गेस्ट हाउस में इनका काम रूम की साफ़ सफाई और झाड़ू पूछा का था. इस काम के उन्हें रोजाना 80 रूपए मिलते थे.
दादा साहेब ने नौकरी के साथ C++ और Python का भी किया था कोर्स
दादा इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि केवल इनकी किस्मत पढाई के जरिए ही बदल सकती है. इसलिए साल 2009 में दादा साहेब शहर चले गए. उन्हें इंफोसिस में काम मिला और इन्होने ये काम बहुत ईमानदारी के साथ किया. बाद में ऑफिस बॉय की नौकरी के लिए इन्हे 9000 रूपए मिलने लगे थे. वहां इन्होने देखा की लोग कंप्यूटर पर कुछ काम करते हैं, इस चीज को देख इनकी कंप्यूटर चलाने की इच्छा जागने लगी. इसके बाद ये डिजिटल से जुडी चीजें सीखने लगे. रात में ग्राफिक्स डिजाइनिंग और एनीमेशन की पढाई करने लगे थे. नौकरी के साथ इन्होने C++ और Python का भी कोर्स किया.
एक्सीडेंट के बाद गांव चले गए थे दादा साहेब
उनकी ज़िन्दगी में सब ठीक चल रहा था लेकिन एक दिन हादसा हुआ. इस एक्सीडेंट के बाद दादा साहेब शहर छोड़कर गांव में आकर रहने लगे. गांव में उन्होंने अपने किसी दोस्त से लैपटॉप किराये पर लिया और एक प्लेटफार्म पर टेम्पलेट बनाकर बेचना शुरू कर दिया. इससे उन्हें अपनी सैलरी से ज्यादा कमाई हो जाती थी. इसके बाद साल 2016 में दादा साहेब ने Ninthmotion कंपनी शुरू की. इनकी कंपनी में जब चालीस हज़ार से ज्यादा एक्टिव यूजर आने लगे तो इन्होने ऑनलाइन ग्राफिक्स डिजाइनिंग का न्यू सॉफ्टवेयर डिज़ाइन किया. यह सॉफ्टवेयर canva की तरह ही है. इस कंपनी का नाम DooGraphics है.
इसके बाद इनके पास बड़ी बड़ी कंपनियों के ऑफर आने लगे और आज दादा साहेब दो कंपनी के मालिक हैं. इनकी कंपनी लोगो को ग्राफिक टेम्पलेट बनाकर देती है. इनकी कंपनी मोशन ग्राफिक और थ्री डी टेम्पलेट भी बनती है. इनके क्लाइंट देश विदेश के भी लेकिन ज्यादातर इनके क्लाइंट विदेश के हैं. दादा साहेब के पास आज खुद की मेहनत से ऑडी जैसी बड़ी गाड़ी है.