Friday, November 22, 2024

बाबा महाकाल की शरण में आते ही धुल जाते हैं पाप, नगरी उज्जैन का धार्मिक महत्व

ऐसी क्या खास बात है कि महाकाल की नगरी में खिंचे चले आते हैं लोग….शिप्रा नदी के तट पर बसे उज्जैन शहर का इतिहास हजारों साल पुराना है.माना जाता है कि उज्जैन नगरी की स्थापना स्वयं भगवान शिव ने की थी.इस नगर में संत जनों को मोक्ष प्रदान करने, अकाल मृत्यु से बचाने के लिए भगवान महाकाल स्वयं यहां उपस्थित हुए थे.शिव पुराण की कोटि रुद्र संहिता के सोलहवें अध्याय में भगवान महाकाल के संबंध में सूत जी द्वारा कही गई एक कथा का वर्णन है जिसके अनुसार अवंती नगर में एक वेदों के जानकार ज्ञानी ब्राह्मण हुआ करते थे.वो प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा किया करते थे. उन्हीं दिनों रत्नमाल पर्वत पर दूषण नाम का एक राक्षस ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त कर धरती पर धार्मिक कार्यों को बाधित करना शुरु कर दिया था.वह अवंती नगरी में भी आया और सभी ब्रहमणों को  धर्म कर्म छोड़ देने के लिए विवश करने लगा लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं मानी . जब राक्षस ने देखा कि कोई उसकी बात नहीं मान रहा है तो उसने अपनी दुष्ट सेना के साथ उत्पात मचाना शुरू कर दिया.लोग त्राहि त्राहि करने लगे और भगवान शंकर के सामने अपनी रक्षा की गुहार लगाने लगे.उसी समय जिस स्थान पर ब्राह्मण पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा करते  थे , उसी तगह पर एक विशाल गड्डा हो गया और भगवान शिव अपने विराट रुप में प्रकट हुए. भगवान शिव ने गगन भेदी हुंकार भरते हुए कहा –मैं दुष्टों का संहारक महाकाल हूं.और ये कहते हुए उन्होंने दूषण और उसकी सेना को भस्म कर दिया. महाकाल ने नगर वासियों की पूजा से प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा. तब अंवतिकावासियों ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि – हे महाकाल , दुष्टों को दंडित करने वाले प्रभु,आप हमें इस संसार रुपी सागर से मुक्ति प्रदान कीजिये, जन कल्याण के लिए आप यहीं विराजिये और अपने (स्वयं स्थापित स्वरुप के) दर्शन करने वाले मनुष्यों का उद्धार कीजिये.कहते हैं इस प्रार्थना से अभिभूत होकर भगवान शिव यहां विराजित हो गये और पूरी अवंतिका नगरी शिवमय हो गई.

मान्यता है कि उज्जैन आकाश और धरती के केंद्र बिदु पर स्थित है.इसे पृथ्वी का नाभि केंद्र भी कहा जाता है. पृथ्वी के इस नाभि केंद्र मे विराजते हैं भगवान भोलेनाथ.

 

उज्जैन महाकाल देश के प्रमुख  धार्मिक स्थलों में से एक है और हजारों सालों से इस तीर्थ स्थल की मान्यता है.इस शहर के अवंति से अवंतिका और फिर उज्जैनी से उज्जैन बनने की कथा बेहद गौरवशाली है.उज्जैनी का अर्थ है उत्कर्ष के साथ जयघोष करने वाली नगरी.

उज्जैन शक्तिपीठ और मंदिरों का नगर होने के साथ साथ काल गणना का भी प्राचीन केंद्र है.

कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने उज्जैन में ही अपनी शिक्षा दीक्षा ली थी.इस नगरी में गुरु संदीपनी ने उन्हें शिक्षा दी थी.

उज्जैन राजा भर्तृहरि की तपो भी भूमि है.यहीं पर उन्होंने भर्तृहरि शतक की रचना की थी.

अपने न्याय और जन कल्याण के लिए प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य उज्जैन के राजा हुआ करते थे.विक्रम संवत के प्रवर्तक राजा विक्रमादित्य ने यहीं से अपने सुराज के कारण  यश कीर्ति अर्जित की थी.

संस्कृत के महान कवि कालीदास ने अपनी रचनाओं का सृजन इसी उज्जैन की धरती पर किया था.

उज्जैन में मां शिप्रा के आशीष और संतों के समागम के साथ प्रत्येक 12 साल में सिंहस्थ कुंभ का आयोजन किया जाता है.

महाकालेश्वर पूरे देश में एक मात्र मंदिर है जिसके प्रांगण में 42 देवों के मंदिर हैं. जन कल्याणकारी, अकाल मृत्यु से त्राण दिलाने वाले महाकाल की नगर उज्जैन को मोक्षदायनी नगरी भी कहा जाता है. महान प्राचीन नगरी उज्जैन में बाबा भोलेनाथ के  आंगन को सजा संवार कर एक नया रंग रुप दिया गया है. आस्थावानों के लिए उज्जैन महाकाल की नगरी में बने इस पुण्यधाम को महाकाल का नाम दिया गया है.एक बार फिर से ये नगरी अपने नये रंग रुप में आस्थावानों को आपने आंगन में बुलाने के लिए तैयार है.

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