Sitaram Yechury no more: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) या सीपीआई (एम) के महासचिव सीताराम येचुरी ने 72 साल की उम्र में गुरुवार को दिल्ली के एम्स में अंतिम सास ली. एक मिलनसार वामपंथी के रूप में जाने जाने वाले येचुरी हाल के दिनों में अपनी पार्टी के सबसे लोकप्रिय चेहरे थे. येचुरी को 19 अगस्त को श्वसन पथ के संक्रमण के चलते एम्स में भर्ती कराया गया था.
उनकी मौत के बाद एम्स से जारी बयान में कहा गया कि, कम्युनिस्ट नेता के निधन के बाद उनके परिवार ने शिक्षण और अनुसंधान उद्देश्यों के लिए उनका शरीर एम्स को दान कर दिया है.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से शुरु किया था राजनीतिक सफर
येचुरी ने लगभग 50 साल पहले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में एक छात्र नेता के रूप में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की और 2015 में सीपीआई (एम) प्रमुख बने. उनके कार्यकाल के दौरान, पार्टी ने पिछले साल पहली बार कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन कर भारतीय राष्ट्रीय विकास समावेशी गठबंधन (इंडिया) का गठन किया.
1970 के दशक में, वे तब चर्चा में आए जब उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को जेएनयू के एक कार्यक्रम में जाने से रोक दिया और उनकी मौजूदगी में छात्रों की मांग को पढ़कर सुनाया.
1975 में, जब वे जेएनयू में छात्र थे, तब उन्हें आपातकाल के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया था. वे 1977-78 के एक वर्ष के अंतराल में तीन बार जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष भी चुने गए.
येचुरी ने गठबंधन सरकारों के युग में बड़ी भूमिका निभाई.
हालांकि, सीपीआई (एम) के घटते आधार के बावजूद विपक्षी खेमे में येचुरी का राजनीतिक दबदबा कायम रहा. येचुरी ने कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के साथ मजबूत संबंध बनाए, जिससे सीपीआई (एम) और कांग्रेस के कुछ नेता नाराज हो गए। जब कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में येचुरी को मज़ाक में “कांग्रेस के लिए सीपीआई (एम) महासचिव” कहा, तो सोनिया गांधी ने येचुरी को परेशानी में डालने के लिए अपने सहयोगी को फटकार लगाई.
माकपा के पोलित ब्यूरो के सदस्य येचुरी ने हाल ही में मोतियाबिंद की सर्जरी करवाई थी. उन्हें पूर्व महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत की गठबंधन-निर्माण विरासत को आगे बढ़ाने के लिए जाना जाता है.
उन्होंने 1996 में संयुक्त मोर्चा सरकार के लिए साझा न्यूनतम कार्यक्रम का मसौदा तैयार करने के लिए पी चिदंबरम के साथ सहयोग किया और 2004 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के गठन के दौरान गठबंधन-निर्माण प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
यूपीए-1 के दौरान सीपीएम के दो नेता येचुरी और करात यूपीए-वाम समन्वय समिति के सदस्य थे. भारत-अमेरिका परमाणु समझौते को लेकर लेफ्ट ने यूपीए सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. ऐसा कहा जाता है कि वैचारिक रूप से कठोर करात के विपरीत, येचुरी ने वामपंथियों के विचार का विरोध किया था कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार से समर्थन वापस ले लिया जाए. वामपंथियों द्वारा समर्थन वापस लेने का निर्णय येचुरी जैसे उदारवादियों के लिए एक झटका था.
Sitaram Yechury no more: चेन्नई में जनमें थे सीता राम येचुरी
1952 में चेन्नई में जन्मे येचुरी ने हैदराबाद के निज़ाम कॉलेज में अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और दिल्ली चले गए, जहाँ उन्होंने 1970 में केंद्रीय विद्यालय शिक्षा बोर्ड की कक्षा 12 की परीक्षा में अखिल भारतीय स्तर पर प्रथम स्थान प्राप्त किया. उन्होंने सेंट स्टीफ़ंस कॉलेज और जेएनयू में अर्थशास्त्र की पढ़ाई की थी.
यचुरी की कई भाषाओं पर पकड़ थी खासकर हिंदी, बंगाली, तमिल और तेलुगु के अलावा वो बढ़िया अग्रेज़ी के भी जानकार थे. 2021 में कोविड-19 महामारी के दौरान अपने बेटे आशीष को खोने के बाद से काफी खामोश रहने लगे थे सीताराम येचुरी.
येचुरी के परिवार में उनकी पत्नी सीमा चिश्ती हैं. उनकी बेटी अखिला येचुरी एडिनबर्ग विश्वविद्यालय और सेंट एंड्रयूज विश्वविद्यालय में पढ़ाती हैं तथा उनका एक बेटा दानिश येचुरी भी है. येचुरी की शादी पहले इंद्राणी मजूमदार से हुई थी.