Sharda Sinha passed away : बिहार के महापर्व छठ के गीतों को अपनी आवाज से संवारने वाली लोकगायिका स्वर कोकिला शारदा सिन्हा ने 72 की उम्र में इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा बोल दिया है. मंगलवार को उनके बेटे अंशुमन सिन्हा ने जानकारी देते हुए कहा कि “ आप सभी की प्रार्थनाएं और प्यार हमेशा मां के साथ रहेंगे. मा को छठी मैय्या ने अपने पास बुला लिया है. मां अब शारीरिक रुप से हमारे बीच नहीं रहीं”
Sharda Sinha passed away : पीएम मोदी ने जताया शोक
प्रधानमंत्री मोदी ने शोक जताते हुए लिखा – “सुप्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। उनके गाए मैथिली और भोजपुरी के लोकगीत पिछले कई दशकों से बेहद लोकप्रिय रहे हैं। आस्था के महापर्व छठ से जुड़े उनके सुमधुर गीतों की गूंज भी सदैव बनी रहेगी। उनका जाना संगीत जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिजनों और प्रशंसकों के साथ हैं. ओम शांति!”
शारदा सिन्हा के निधन से प्रशंसकों में शोक की लहर
शारदा सिन्हा के निधन की खबर से उनके प्रशंसकों मे शोक की लहर हैं. जिस छठ पूजा के गीतों को अपनी आवाज देकर उन्होने अमर बना दिया उसी छठ पूजा के आयोजन के पहले दिन सोमवार को उनकी जीवन लीला समाप्त हो गई. शारदा सिन्हा बिहार की उस परंपरा और जीवटता का जीता जागता उदाहरण रही, जिन्होंने तमाम मुश्कलों के बावजूद अपनी मिट्टी और अपनी पहचान को बनाया रखने के लिए जीवनपर्यंत काम किया.
शारदा सिन्हा का संगीत
शारदा सिन्हा एक तरह से छठ पर्व का पर्याय थी. छठ का त्योहार आते ही घर घर मे जो मंगल स्वर गूंजती थी ववो आवाज शारदा सिन्हा की थी.वैसे तो शारदा सिन्हा ने मैथिली, भोजपुरी और मगही में सैकड़ों गीत गाये हैं लेकिन छठ के गीतों ने उनकी आवाज को जैसे अमर बना दिया. उनकी गायिकी की वजह से ही उन्हें बिहार की आवाज और बिहार कोकिला भी कहा जाता था.
शारदा सिन्हा का जीवन
1 अक्तूबर 1952 को बिहार में सुपौल जिले के हुलास गांव में जन्मी शारदा सिन्हा आठ भाइयों की इकलौती बहन थीं. उन्होंने बिहार के लोक संगीत को लोकप्रिय और समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई . शारदा सिन्हा ने अपनी गायकी से कई पीढ़ियों को प्रभावित किया और उन्हें अपनी संस्कृति, आस्था और जड़ों से जोड़ा.
गायिकी के लिए शारदा सिन्हा ने तय किया लंबा रास्ता
ऐसा नहीं है कि गायकी का उनका रास्ता आसान था. गाने का शौक को उन्हें बचपन से था लेकिन शादी करके जब वो ससुराल पहुंची तो उनकी सास को उनका गाना बजाना पसंद नहीं था लेकिन शारदा सिन्हा का साथ उनके ससुर और पति ने दिया . ससुर और पति के साथ के कारण शादी के बाद भी उनकी गायकी का सिलसिला चलता रहा. बीएड करने के बाद उन्होंने म्यूजिक में पीएचडी किया और फिर समस्तीपुर कॉलेज में प्रोफेसर बन गई. टीचिंग जॉब में आने के बाद वो नौकरी भी करती रहीं और गायकी का सिलसिला भी चलता रहा.
70 के दशक में शारदा सिन्हा का करियर परवान चढ़ा
दरअसल गायकी का उनका करियर 1970 के दशक में परवान चढ़ा. उन्होंने भोजपुरी मैथिली और हिंदी लोक संगीत को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई. उनकी आवाज से प्रभावित हो कर बॉलीवुड में शारदा सिन्हा को गाने का मौका मिला. राजश्री प्रोडक्शन के ताराचंद्र बड़जात्या ने अपनी फिल्म “मैंने प्यार किया” में गाने का मौका दिया और उका गाया गीत आइकोनिक गीत बन गया..
फिल्म हम आपके हैं कौन का विदाई गीत तो आपको सबको याद होगा..हर बेटी की विदाई पर ये आवाज हम सबको भावुक कर देती है
गैंग्स ऑफ वासेपुर में शारदा सिन्हा ने गया – तार बिजली से पतले हमारे पिया
पद्मश्री और पद्म भूषण से सम्मानित हुईं शारदा सिन्हा
बालीवुड के इन गीतों ने उनकी प्रसिद्धि को और बढ़ाया . संगीत में शारदा सिन्हा के योगदान को देखते हुए 1991 में पद्मश्री, सन 2000 में संगीत नाटक अकादमी, 2006 में राष्ट्रीय अहिल्या देवी पुरस्कार, 2015 में बिहार सरकार पुरस्कार और 2018 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया.
पति की मौत सा सदमा झेल नहीं पाई शारदा सिन्हा
शारदा सिन्हा हमेशा से एक बेहतरीन लोकगायिका के साथ साथ एक जिंदादिल इंसान के दौर पर जानी जाती रहीं, लेकिन इसी साल जब उनके पति बृजकिशोर सिन्हा का निधन हुआ, तब से वो एकदम चुपचाप सी हो गईं. पति की मौत के ऐसा सदमा लगा कि खाना पीना छोड़ दिया. वो इस सदमे को झेल नहीं पाई और इसके बाद से ही उनकी तबियत खराब रहने लगी.
शारदा सिन्हा पिछले कई दिनों से दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती थी. उन्हें सांस लेने और खाने पीने में परेशानी आ रही थी. अचानक सोमवार , 5 अक्टूबर की सुबह उनकी तबियत ज्यादा बिगड़ गई . उन्हे वेंटीलेटर पर शिफ्ट किया गया, वहीं उन्होंने मंगलवार की शाम को दम तोड़ दिया.