Friday, October 18, 2024

Sanjay Datt ने गया के विष्णुपद मंदिर में किया माता नरगिस दत्त और पिता सुनील दत्त का पिंडदान

गया :  बॉलीवुड के सुपरस्टार Sanjay Datt ने बिहार के गया में अपने पितरों का पिंडदान किया. गया के विष्णुपद मंदिर में संजय दत्त ने अपने पिता सुनील दत्त और मां नगरिस की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और तर्पण किया. संजय दत्त स्पेशल चार्टड प्लेन से गया पहुंचे. संजय दत्त के पिता सुनील दत्त का निधन 25 मई 2005 और मां नरगिस दत्त का निधन 3 मई 1981 को हुआ था. दत्त परिवार की हमेशा से गयाजी के लिए आस्था रही है. लाखों हिंदु परिवारों की तरह  पिता सुनील दत्त भी कभी अपने माता पिता और पितरों के पिंडदान के लिए गयाजी आये थे.

Sanjay Dattबॉलीवुड स्टार Sanjay Datt गुरुवार की दोपहर करीब 3 बजे विष्णुपद मंदिर पहुँचे. लगभग ढ़ाई बजे संजय दत्त गया एयरपोर्ट पर चार्टर्ड प्लेन से उतरे. अपने पिता स्वर्गीय सुनील दत्त के मोक्ष की कामना को लेकर गया एयरपोर्ट से सीधे विष्णुपद. जहां पहले से इसकी तैयारी की गई थी.

Sanjay Datt ने कड़ी सुरक्षा के बीच किया कर्मकांड 

आपको बता दें कि, विष्णुपद परिसर स्थित हनुमान मंदिर में पिंडदान की व्यवस्था की गई थी. उन्होंने गया पाल पंडा अमरनाथ मेहरवार के निर्देशन में गयाजी में श्राद्ध कर्म किया . कर्मकांड के दौरान संजय दत्त भारतीय परिधान में दिखे. सफेद कुर्ता- पायजामा पहने बाबा संजय दत्त ने पूरे विधान के साथ एक दिन का कर्मकांड संपन्न किया. इस दौरान गया में कड़ी सुरक्षा का प्रबंध किया गया था.

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कई देशों के श्रद्धालु आते हैं गयाधाम 

हिंदू धर्म में पिंडदान का बड़ा महत्व होता है. गया में हर साल आश्विन माह में पितृपक्ष मेला का आयोजन किया जाता है. इस दौरान देश भर से श्रद्धालु गया पहुंचते हैं और अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करते हैं. गत वर्ष रूस-यूक्रेन में मारे गए सैनिकों और आम जनों की आत्मा की शांति के लिए युलिया नामक महिला ने पिंडदान किया था. उनके अलावा जर्मनी, फ्रांस, अमेरिका समेत कई देशों के श्रद्धालु गया आए और पितृपक्ष मेले की काफी सराहना की और सबने पिंडदान के कर्मकांड में भी भाग लिया. उन्होंने गयापाल पंडा अमरनाथ मेहरवार के सानिध्य में गया श्राद्ध किया.

सनातन धर्म में पिंडदान का महत्व 

सनातम धर्म में पिंडदान का बड़ा महत्व है. मान्यता है कि जब तक किसी व्यक्ति का पिंड दान नहीं होता है वो परलोक जाने के बजाय इसा लोक में भटकते रहते हैं. आत्मा को तबतक इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती है जब तक  उनके परिजन उनका पिंडदान नहीं करते हैं. मान्यता है कि पिंडदान के बाद आत्मा जन्ममरण के बंधन से मुक्त हो जाती है और परमधाम के लिए प्रस्थान कर जाती है.इसलिए हिंदु धर्म में हर व्यक्ति अपने पितरों का पिंडदान करते हैं.

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