Sunday, September 8, 2024

Futuristic Farming : भविष्य के अनुकूल होगी धान और गेहूं की खेती, घटेगी लागत, बढ़ेगी उत्पादकता

Futuristic Farming गोरखपुर : अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (IRRI) के सहयोग से पूर्वी उत्तर प्रदेश में धान और गेहूं की खेती भविष्य के अनुकूल होगी. इससे खेती की लागत घटेगी और उत्पादकता बढ़ेगी.  इरी यानी International Rice Research Institute ने इस दिशा में महायोगी गोरखनाथ कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) चौक माफी पीपीगंज और गोरखनाथ मंदिर के चौक बाजार (महराजगंज) स्थित 500 एकड़ के फार्म के साथ अनुसंधान परियोजना पर काम शुरू कर दिया है. इस परियोजना के सुखद परिणाम सामने आ रहे हैं. इरी ने महायोगी केवीके चौक माफी और चौक बाजार, महराजगंज स्थित फार्म के एक हिस्से पर इस सीजन में धान की सीधी बुआई कराई. इससे खर पतवार से मुक्ति तो मिली ही है, रोपाई का खर्च भी बच गया है.

International Rice Research Institute
International Rice Research Institute

Futuristic Farming  से आए सुखद परिणाम, रोपाई का बचा खर्च, खर पतवार भी दूर

इरी के साउथ एशिया रीजनल सेंटर (वाराणसी) के डायरेक्टर डॉ. सुधांशु सिंह के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम ने बुधवार को चौक बाजार स्थित फार्म पर धान की खेती का निरीक्षण किया और अब तक किए गए प्रयोग/अनुसंधान के परिणाम का मूल्यांकन किया. निरीक्षण और मूल्यांकन के बाद डॉ. सुधांशु सिंह ने बताया कि फार्म के एक हिस्से पर समय रहते मशीन से धान की सीधी बुआई कराई गई थी. इसके कारण फसल में खर पतवार नहीं लगे हैं. सीधी बुआई से रोपाई की लागत बच गई है. रोपाई में खर पतवार का पनपना आम समस्या भी है. उन्होंने बताया कि समय पर धान की सीधी बुआई करा दी जाए तो प्रति एकड़ 10 से 15 हजार रुपये की लागत कम हो जाएगी. साथ ही खर पतवार की समस्या से भी निजात मिल जाएगी.

धान की किस्मों को लेकर चल रहा है अनुसंधान   

इरी के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. सुधांशु सिंह के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, महायोगी गोरखनाथ केवीके के साथ मिलकर धान की ऐसी खेती की प्रविधि पर काम कर रहा है, जिससे मीथेन का उत्सर्जन कम हो, खाद और सिंचाई की लागत घटे और उत्पादकता में गुणात्मक और मात्रात्मक वृद्धि हो. इसके लिए धान की कई किस्मों को लेकर अनुसंधान किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि अनुसंधान में यह बात सामने आई है कि गेहूं की बुआई समय पर होनी चाहिए. 15 नवंबर के बाद गेहूं की बुआई करने पर 40 से 45 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रति दिन की उत्पादकता गिरती है. डॉ. सुधांशु ने बताया कि इरी पूर्वी उत्तर प्रदेश में सहफसली और मिश्रित खेती को लेकर भी विशेष परियोजना पर काम कर रहा है.  आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय के साथ कालानमक धान की खेती पर अनुसंधान किया जा रहा है. साथ ही उन्नत, क्लाइमेट स्मार्ट और बायोफर्टिफाइड धान की किस्मों को भी, जिसमें हाई जिंक प्रमुख है, को वर्टिकल कैफेटेरिया में भी लगाया गया है. सभी परियोजनाओं के प्रारंभिक परिणाम सुखद और उत्साहवर्धक आए हैं.

चौक बाजार स्थित फार्म पर धान की खेती का निरीक्षण करने के दौरान डॉ. सुधांशु सिंह के साथ भारत सरकार के पूर्व औषधि महानियंत्रक डॉ. जीएन सिंह, इरी के सीनियर एसोसिएट साइंटिस्ट डॉ. आशीष कुमार श्रीवास्तव, महायोगी गोरखनाथ केवीके चौक माफी के अध्यक्ष डॉ. आरके सिंह, वैज्ञानिक डॉ. शैलेंद्र प्रताप सिंह, महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. प्रदीप कुमार राव आदि भी मौजूद रहे.

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