Thursday, October 17, 2024

Asad Encounter: असद एनकाउंटर पर उठने लगे सवाल, लोकेशन से लेकर बाइक की चाबी तक जाने क्यों शक के घेरे में है एनकाउंटर

माफिया से नेता बने अतीक अहमद के बेटे असद अहमद और उसके सहयोगी गुलाम मोहम्मद का एनकाउंटर अब शक के घेरे में आ गया है. समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव से लेकर शिवसेना (उद्धव) सांसद संजय राउत और असदउद्दीन ओवैसी तक के एनकाउंटर पर सवाल उठाने के बाद अब मीडिया भी एनकाउंटर की जगह और तरीके को लेकर सवाल उठाने लगा है.

13 अप्रैल को झांसी में पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था असद

जेल में बंद गैंगस्टर-राजनेता अतीक अहमद का बेटा असद अहमद अपने एक सहयोगी गुलाम के साथ 13 अप्रैल को झांसी में पुलिस मुठभेड़ में मारा गया. यूपी पुलिस की इस कामयाबी पर मुख्यमंत्री से लेकर बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व तक ने तारीफ की. माहौल ऐसा बना कि लोग मौत का जश्न मनाने लगे. कहा गया कि योगी ने माफिया को मिट्टी में मिला दिया लेकिन दो दिन गुज़रते गुज़रते एनकाउंटर पर सवाल भी उठने लगे. चलिए एक-एक कर एनकाउंटर पर उठ रहे सवालों के बारे में आपको बताते हैं.

पहला सवाल उठ रहा है एसटीएफ की एफआईआर पर

एनकाउंटर को लेकर पुलिस एफआईआर में कहा गया है कि गुरुवार को मुखबिर ने सूचना दी थी कि असद को झांसी में देखा गया है. इसलिए पुलिस टीम उसके पीछे लगी हुई थी. असद और गुलाम बिना नंबर प्लेट वाली लाल और काले रंग की डिस्कवर मोटरसाइकिल से भाग रहे थे. वे चिरगांव से आगे पारीछा की तरफ जा रहे थे, जैसे ही पुलिस टीम ने उन्हें इंटरसेप्ट किया, उन्होंने हाईवे से गाड़ी पगड़ंडी की ओर मोड़ी और पुलिस पर फायरिंग कर दी. जवाबी कार्रवाई में असद और गुलाम मारे गए. एफआईआर के मुताबिक दोनों बाइक पर थे. पुलिस की दो गाड़ियों ने इस बाइक को आमने-सामने घेर लिया. बाइक दोनों गाड़ियों के बीच फंस गई, लेकिन यहां सवाल यह है कि असद और गुलाम के मारे जाने वाली सड़क एक तरफ से बंद है. ऐसे में सामने से किसी वाहन के आने का कोई रास्ता नहीं है.

दूसरा सवाल – बाइक पर कोई खरोंच नहीं

एफआईआर में उत्तर प्रदेश एसटीएफ के लिखा है कि असद और गुलाम लाल और काले रंग की डिस्कवर मोटरसाइकिल पर बिना नंबर प्लेट के यात्रा कर रहे थे. पुलिस दोनों का पीछा कर रही थी. बाइक पगडंडी की तरफ मुड़ी, रोड़ बहुत खराब थी, बाइक एक बांस के पेड़ के पास पलट गई और गिर गई. अब सवाल ये उठता है कि बाइक के पलटने और सड़क से नीचे गिरने के बावजूद पथरीली और उबड़-खाबड़ सतह होने के बावजूद बाइक पर एक खरोंच तक नहीं आई.

तीसरा सवाल – बाइक की चाबी गायब है

एक और पहलू जिस पर सवाल उठाये जा रहे हैं वह यह है कि मोटरसाइकिल पर चाबी नहीं लगी थी. असद के एनकाउंटर के बाद स्थानीय पुलिस के पहुंचने से पहले जो मीडियाकर्मी तस्वीरें लेने मौके पर पहुंच गए थे. उनकी तस्वीरों से साफ है कि गाड़ी पर चाबी नहीं लगी थी. हो सकता है बाइक पुरानी होने के कारण चाबी कहीं गिर गई हो. क्योंकि इस बात की बहुत कम संभावना है कि पुलिस मुठभेड़ में पकड़े गए किसी व्यक्ति ने बाइक से चाबी निकाल ली होगी. बाइक की खोई हुई चाबी फिलहाल एक रहस्य बनी हुई है.

चौथा सवाल – कोई लाइसेंस प्लेट और चेसिस नंबर नहीं

चौथा सवाल है बाइक के मालिक को लेकर, जिसे शायद पुलिस कभी ढूंढ नहीं पाएगी. मुठभेड़ के दौरान असद और गुलाम जिस बाइक पर सवार बताए जा रहे थे, उसे बरामद करने वाली एसटीएफ टीम के पास नंबर प्लेट या चेसिस नंबर नहीं था. हो सकता है कि बाइक चोरी की हो. जबकि बाइक पर आम तौर पर एक इंजन नंबर होता है, यह संभावना है कि इंजन का हिस्सा चोरी का भी हो सकता है, जिससे जांचकर्ताओं और पुलिस के लिए बाइक के मालिक की पहचान करना एक कठिन काम हो सकता है.

पांचवां सवाल – कोई हेलमेट नहीं मिला

इस मामले में पांचवां सवाल है मुठभेड़ स्थल से कोई हेलमेट बरामद नहीं हुआ. उत्तर प्रदेश पुलिस के मुताबिक, असद और गुलाम कई दिनों से लापता थे और पुलिस के रडार से बचने के लिए अलग-अलग राज्यों में रह रहे थे. इसलिए ये सवाल महत्वपूर्ण है कि दोनों ने हेलमेट क्यों नहीं पहना था. भले ही सुरक्षा के लिए नहीं पहना होता लेकिन पहचाने जाने के डर के बावजूद भी हेलमेट का इस्तेमाल क्यों नहीं किया . पुलिस से बचने की कोशिश करते हुए भी यह कैसे संभव है कि उन्होंने हेलमेट नहीं पहना होगा? वो भी तब जब असद और गुलाम दोनों पुलिस द्वारा वांछित थे और उनके सिर पर इनाम थे. हेलमेट उन्हें पहचान से बचने के लिए अपने चेहरे को ढंकने में मदद करता. और अगर उन्होंने हेलमेट नहीं पहनी थी, तो वे झांसी में कैसे घुस गए. एक राज्य से दूसरे राज्य की सीमा में दाखिल होने पर पुलिस चेकपोस्ट का सामना तो हुआ होगा. क्योंकि पुलिस को तो पहले से सूचना थी कि दोनों बाइक से झांसी की तरफ जा रहे हैं. ऐसे में हेलमेट गायब होने पर सवाल उठ रहे हैं.

छठा सवाल – राजमार्ग के पास सड़क ऊबड़-खाबड़ और इतनी खराब है

मुठभेड़ गुरुवार दोपहर झांसी के बड़ागांव थाना क्षेत्र में हुई. पुलिस के मुताबिक, असद और गुलाम परीछा बांध के पास छिपे हुए थे. यह जगह नेशनल हाईवे से दो किलोमीटर दूर थी. उस स्थान तक पहुंचने के लिए एक छोटा-सा रास्ता है, जो पथरीला, उबड़-खाबड़ और खराब है. ऐसे में किसी भी वाहन को 10 से 20 किलोमीटर प्रति घंटे से ज्यादा की रफ्तार से नहीं चलाया जा सकता था.
जबकि एसटीएफ असद और गुलाम का पीछा कर रही थी, वे इतनी दूर कैसे जा सकते थे? इतनी उबड़-खाबड़ सड़क पर पुलिस टीम जब पीछे लगी थी तब दोनों ने इतनी दूरी तय कैसे की, यह सवाल शक पैदा कर रहा है.

सातवां सवाल – मुठभेड़ का स्थान

सातवां और आखिरी सवाल है एनकाउंटर की जगह को लेकर. जिस इलाके में मुठभेड़ हुई, वह नेशनल हाईवे से महज दो किलोमीटर की दूरी पर है. राजमार्ग तक पहुंचने के लिए एक छोटा सा रास्ता है, जो काफी सुनसान रहता है. उत्तर प्रदेश पुलिस के मुताबिक, असद और गुलाम राजस्थान और अन्य जगहों पर छिपे हुए थे और झांसी भाग गए थे. ऐसे में इस छोटी सी ऊबड़-खाबड़ सड़क के बारे में शायद ही उन्हें पता होगा. साथ ही, जब दोनों राजस्थान से आ रहे थे तो कच्ची सड़क रोड के दूसरी तरफ रही होगी, इसलिए उनके इसे देखने की संभावना भी बहुत कम है.
एक और बात जो एनकाउंटर की जगह को लेकर शक पैदा करती है वो ये है कि एनकाउंटर साइट काफी सुनसान है और यहां लोगों की आवाजाही ना के बराबर है. अगर बात सीसीटीवी कैमरों की संभावना की करें तो वो इस जगह से 30 किलोमीटर दूर टोल गेट के पास है. साथ ही घटना स्थल के आसपास कोई ढाबा भी नहीं है. इसलिए एनकाउंटर की जगह को लेकर सवाल पूछे जा रहे हैं.

हर एनकाउंटर की मजिस्ट्रेट से जांच कराई ही जाती है

हलांकि इन सवालों को लेकर भी बयानबाज़ी शुरु हो गई है. जो लोग एनकाउंटर पर जश्न मना रहे थे और कह रहे थे कि अपराधियों का धर्म देखकर पुलिस कार्रवाई पर सवाल नहीं उठाए जाने चाहिए वो अब इन सवालों को पुलिस प्रशासन का मनोबल गिराने वाला बता रहे हैं. जबकि सच्चाई तो ये है कि एनकाउंटर हमेशा सवालों के घेरे में होते हैं. इसलिए ये कानून है कि हर एनकाउंटर की मजिस्ट्रेट से जांच कराई ही जाती है.

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