बिहार में जातीय जनगणना को लेकर फिर बवाल शुरू हो गया है. सरकार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव कह रहे हैं चाहे जो हो जाए जातीय जनगणना तो होगी. उधर उपेंद्र कुशवाहा कोर्ट के फैसले को नीतीश कुमार की गलती बता रहे हैं. उनका कहना है कि ‘ कानूनी मामले को नीतीश कुमार सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया. वहीं बीजेपी सांसद और पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कहा कि, नीतीश कुमार ने पटना हाई कोर्ट में केस हारने के मामले में अपना नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कराया है.
पटना हाईकोर्ट ने जाति जनगणना पर लगाई अंतरिम रोक
बिहार की राजनीति में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मास्टर स्ट्रोक कहे जाने वाली जाति जनगणना पर पटना हाईकोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी. दरअसल caste census के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पटना हाईकोर्ट को तीन दिन के अंदर सुनवाई करके अंतरिम आदेश देने का निर्देश दिया था. इसके बाद पटना हाईकोर्ट ने गुरुवार यानी 4 मई को सुनवाई कर जाति जनगणना पर अंतरिम रोक लगा दी. हलांकि इस मुद्दे पर विस्तार से फैसला 3 जुलाई को आएगा. तब तक आरोपों का दौर जारी रहेगा. वैसे याचिका में जातियों की गिनती के खिलाफ जो दलील दी गई थी वो ये है कि caste census कराने का संवैधानिक अधिकार राज्य सरकार को नहीं है. साथ ही इस गिनती के दौरान लोगों के कामकाज और क्वालिफिकेशन का ब्यौरा लिया जा रहा है. जिसे याचिकाकर्ता ने लोगों की निजी गोपनीयता का उल्लंघन बताया है. इसके अलावा ये भी दलील दी गई है कि जाति जनगणना पर 500 करोड़ खर्च करना टैक्स पेयर्स के पैसों का दुरुपयोग है.
किस आधार पर लगाई हाई कोर्ट ने रोक
वैसे संवैधानिक अधिकार वाली दलील को छोड़ दिया जाए तो बाकी दो दलीलों को सरकार के फैसले पर रोक लगाने के लिए नाकाफी कहा जा सकता है. क्योंकि लोगों के कामकाज और क्वालिफिकेशन का ब्यौरा तो आधार कार्ड में भी है. इतना ही नहीं केंद्र सरकार के पास तो अब लोगों की आर्थिक जानकारियां भी हैं. क्योंकि इस साल सरकार ने पैन को आधार से लिंक करना अनिवार्य कर दिया था. रही बात टैक्स पेयर्स के पैसे की तो ये जनता द्वारा चुनकर आई सरकार का अधिकार है कि वो सरकारी पैसे का इस्तेमाल कैसे करती है. वैसे भी इस मामले में तो सरकार का कहना था कि वह जाति जनगणना इसलिए कराना चाहती है ताकि उसे पता चल पाए की किस जाति की कितनी संख्या है और उसकी आर्थिक और सामाजिक हैसियत क्या है ताकि वो सही लोगों के लिए सही कल्याणकारी योजनाएं बना सकें.
नीतीश कुमार कराना ही नहीं चाहते है जाति जनगणना-कुशवाहा
फिर सवाल उठता है कि ऐसा क्या हुआ कि सरकार के पक्ष को नज़र अंदाज़ करते हुए पटना हाईकोर्ट ने जाति जनगणना पर रोक लगा दी. तो इस मामले में उपेंद्र कुशवाहा की बात में दम नज़र आता है. नीतीश कुमार अच्छे से जानते हैं कि बंद मुट्ठी लाख की और खुल गई तो खाक की. यानी जब तक ये भ्रम बना हुआ है कि समाज में ओबीसी, एससी-एसटी की गिनती ज्यादा है और राष्ट्र के संसाधनों में उनकी भागीदारी कम तब तक जातियों की गिनती का कार्ड उन्हें वोट दिलाते रहेगा. वहीं अगर जनगणना हो जाती तो ये कार्ड ही खत्म हो जाता. इसलिए सरकार ने कोर्ट में क्या हो रहा है. क्या पैरवी वो कर रही है. सरकार कोर्ट में क्या तर्क दे रही है. इसके बारे में जनता को बताया ही नहीं. अगर आरजेडी और जेडीयू के लिए ये इतना बड़ा और अहम मुद्दा था तो जनता को इस मामले की जानकारी क्यों नहीं थी. क्यों गुरुवार शाम जब ये फैसला आया तो ये सबके लिए आश्चर्य का सबब बन गया.
पटना हाईकोर्ट के फैसले पर चुप क्यों है नीतीश कुमार
गुरुवार शाम जाति जनगणना पर फैसला आया और देर शाम तक बिहार सरकार ने सर्कुलर जारी भी कर दिया जिसमें कहा गया कि माननीय हाइकोर्ट के अंतरिम आदेश में बिहार में जाति आधारित गिनती (Caste Census Bihar) को तत्काल स्थगित करने का आदेश दिया गया है. बिहार सरकार ने कोर्ट के आदेश के साथ जिले के अधिकारियों को सूचना जारी कर दी और जातियों की गिनती का काम रुकवा दिया.
आरजेडी और कांग्रेस ने जताई फैसले पर नाराज़गी
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस फैसले पर कुछ बोलना जरूरी समझा न बताना. हलांकि उनके उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने मीडिया में बयान दिया कि जाति आधारित जनगणना के लिए उन्हें जहां तक जाना होगा जायेंगे. इस मुद्दे को छोड़ा नहीं जायेगा. तेजस्वी के बाद उनके पिता और आरजेडी सुप्रीमो लालू याव ने भी ट्वीट कर फैसले के खिलाफ अपनी नाराज़गी जताई. लालू ने लिखा, जातिगत जनगणना बहुसंख्यक जनता की मांग है और जो भी इसका विरोधी है वह समता, मानवता, समानता का विरोधी है और ऊंच-नीच, गरीबी, बेरोजगारी, पिछड़ेपन, सामाजिक-आर्थिक भेदभाव का समर्थक है.
इसके अलावा कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी इसे देश के लिए ज़रूरी बताया. खड़गे ने कहा, “जाति आधारित जनगणना से सभी राज्यों को वंचितों और हाशिए पर पड़े लोगों की मदद के लिए अधिक कुशल रणनीति तैयार करने में मदद मिलेगी. हालांकि मोदी सरकार जाति गणना के साथ आगे बढ़ने को तैयार नहीं है.”
बीजेपी-जेडीयू किसी को भी कोर्ट के फैसले नहीं हुआ नुकसान
यानी महागठबंधन की ओर से कोर्ट के फैसले के खिलाफ मोर्चा आरजेडी और कांग्रेस ने संभाला. जेडीयू जो जाति जनगणना को लेकर काफी उत्साहित थी उसने मौन साध लिया और इसी मौन को विपक्ष ने निशाने पर ले लिया. बिहार विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा ने पटना हाई कोर्ट के जातियों की गिनती पर अंतरिम रोक लगाने के आदेश पर कहा कि यह रोक महागठबंधन सरकार की नीयत में खोट का परिणाम है. विजय सिन्हा ने आरोप लगाया कि बिहार सरकार का ये कदम केवल राजनीतिक फायदे के लिए किया गया था.
वैसे कोर्ट के फैसले के बाद विजय सिन्हा की पार्टी की मुश्किलें कुछ कम तो जरूर हुई हैं. बीजेपी शुरू से ही caste census को लेकर असहज थी. ऐसे में कोर्ट का फैसला उसके भाग में छींका टूटने के जैसा है. अगर कुल मिलाकर देखें तो इस फैसले से नुकसान आरजेडी और जेडीयू को भी नहीं है. शायद यही वजह है कि नीतीश कुमार अभी इसका विरोध कर मुद्दे को खत्म नहीं करना चाहते हैं.