वैसे तो बिहार के मुख्यमंत्री शराब से बेहद नफरत करते हैं. बिहार को शराब मुक्त बनाने के लिए शराबबंदी भी की गई. लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही है. शराब बंदी होने के बावजूद आज भी धड़ले से शराब बिक रही है. ऐसे में बिहार के छपरा में ज़हरीली शराब का आतंक और उससे मरने वालों का आकड़ा दोनों बढ़ता जा रहा है. ज़हरीली शराब ने कइयों की सांसें छीनली तो कइयों की आखों की रौशनी.
बिहार के छपरा जिले से प्रशासन की लापरवाही के चलते आम लोगों की जान जा रही है. शराब बंदी वाले राज्य में जहरीली शराब ने जहाँ एक तरफ अभी तक 13 लोगों को मौत के घाट उतार दिया. वहीं दूसरी तरफ 25 लोगों की आंखों की रोशनी चली गई है. जहरीली शराब पीने से दर्जनों लोग बीमार हो गए हैं. बीमार लोगों में से कुछ का इलाज पीएमसीएच में चल रहा है. तो कई लोगों को छपरा सदर अस्पताल और निजी नर्सिंग होम में भर्ती करवाया गया है.
ज़हरीली शराब पिछले तीन दिनों से इसी तरह मासूमों की जान ले रही है. इस घटना के बाद फिर एक बार बिहार पुलिस सवालों के कठघरे में खड़ी है. आखिर शराब बंदी के बावजूद बार बार, हर बार शराब आती कहाँ से हैं. हालाँकि पुलिस अपराधियों की छानबीन और अपराधी धरपकड़ में जुटी हुई है.
शराबबंदी कानून को गलत तरीके से लागू करने को लेकर आलोचनाओं का सामना कर रही राज्य पुलिस और शराब विरोधी कार्य बल ALTF के मुताबिक पिछले 7 महीनों में 73,000 से अधिक अपराधियों को गिरफ्तार करने का दावा किया. जिसमें ALTF विभाग ने 40,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया है, बाकी जिला पुलिस ने गिरफ्तार किया है. अ. सात माह की अवधि में प्रदेश के विभिन्न थानों में 52,770 प्राथमिकी दर्ज की गई है. बिहार में अप्रैल 2016 से शराबबंदी अधिनियम लागू किया गया था. लेकिन तबसे अब तक शराब हज़ारों लोगों को मौत की नींद सुला चुकी है. कई घरों को बर्बाद कर चुकी है. प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा है. तभी तो इतनी गिरफ्तारियों के बावजूद शराब तस्करो में पुलिस का रत्तीभर भी खौफ नहीं है.