पठान पर चल रहा विवाद अब लोकसभा में भी गूंजता सुनाई पड़ा है. आज माननीय सांसद कुँवर दानिश अली ने लोकसभा में लोक महत्व के अविलम्ब विषय, शून्यकाल में शाहरुख़ ख़ान की आने वाली फिल्म पठान पर चल रहे प्रतिबन्ध के मुद्दे पर बोलते हुए कहा कि कल रात जब फीफा विश्व कप में हमारे देश की अभिनेत्री फीफा विश्व कप ट्रॉफी का अनावरण कर रही थीं. ये देख कर वाकई हमारा दिल गदगद हो गया, हमारा हौसला और बढ़ ज्यादा गया. वहीँ दूसरी तरफ पिछले कुछ दिनों में देखने में आया है कि किस तरह से रंग को भी धर्म के आधार पर बांटा जा रहा है. रंग के नाम पर फिल्मों को प्रतिबन्ध करने की एक नई प्रथा शुरू हो गई है.
फिल्म बैन करने को लेकर मांग
इस देश के कई कलाकारों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाई है. जो किसी से छिपा नहीं है, लेकिन आज देश में एक नई चर्चा शुरू हो गई है. यदि सत्ता पक्ष के लोग किसी फिल्म पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग करते हैं, तो फिर सरकार ने ये सेंसर बोर्ड किस लिए बनाया है. मैं बयान पढ़ रहा था एक उलेमा बोर्ड के सदस्य भी है वह कह रहे थे शाहरुख़ की इस फिल्म पर प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए.
इस्लाम और सनातन धर्म कमजोर नहीं
मैं इतना कहना चाहता हूं कि चाहे वो सत्ता पक्ष के लोग हों या विपक्ष के लोग हों, फिल्मों पर प्रतिबन्ध लगाने का काम सेंसर बोर्ड का है. साथ ही साथ सांसद महोदय ने ये भी कहा कि मैं समझता हूं कि सनातन धर्म व इस्लाम धर्म इतना कमज़ोर नहीं है कि फिल्म में एक सीन से धर्म ख़तरे में आ जायेगा.
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कुँवर दानिश अली ने सदन में सरकार से इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करने एवं दिशानिर्देश जारी करने की मांग करते हुए कहा कि सरकार ने सेंसर बोर्ड बनाया है. फिल्मों को सेंसर करने के लिए तथा फिल्मों पर प्रतिबन्ध लगाना सेंसर बोर्ड का काम है, जब सेंसर बोर्ड फिल्म को पास कर देती है तो उस पर प्रतिबन्ध की मांग एवं धमकियाँ देना सही नहीं है.
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