18 सितंबर से शुरू होने वाले संसद के विशेष सत्र से पहले सर्वदलीय फ्लोर लीडर्स की बैठक बुलाने के चंद घंटों बाद, सरकार ने विशेष सत्र के एजेंडा को लेकर भी कुछ संकेत दिए.
लोकसभा सचिवालय ने बुधवार शाम सांसदों के लिए जारी बुलेटिन के में जानकारी दी कि, विशेष सत्र के दौरान दोनों सदन ” 75 वर्षों की संसदीय यात्रा – संविधान सभा से शुरू होने वाली उपलब्धियां, अनुभव, यादें और सीख” पर चर्चा करेंगे. इसके साथ ही चार विधेयकों को भी विचार के लिए रखा जाएगा.
किन चार विधयकों पर होगी चर्चा
सरकार ने जिन चार विधयकों के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाया है वो हैं.-
1-मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक. इसे लोकसभा में मानसून सत्र के दौरान पेश किया गया था. सीईसी विधेयक में चुनाव आयोग (ईसी) के सदस्यों के चयन के लिए प्रधान मंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधान मंत्री द्वारा नामित एक कैबिनेट मंत्री की एक समिति स्थापित करने का प्रावधान है). इस साल मार्च में, सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने सीईसी और ईसी को चुनने के लिए पीएम, एलओपी और भारत के मुख्य न्यायाधीश की एक उच्च-शक्ति समिति का गठन किया था, जिसपर कोर्ट ने ये कहा था कि ये व्यवस्था तबतक लागू रहेगी जबतक नियुक्तियाँ के बारे में संसद द्वारा एक कानून नहीं बनाया जाता” विपक्ष ने पैनल में सीजेआई के बजाय एक मंत्री के लिए विधेयक के प्रावधान पर सवाल उठाया था.
2- अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक और प्रेस और आवधिक पंजीकरण विधेयक, मानसून सत्र में राज्यसभा में इसे पारित करा लिया गया था
3-डाकघर विधेयक, मानसून सत्र के दौरान राज्य सभा में इसे पेश किया गया था.
4- प्रेस और आवधिक पंजीकरण विधेयक जो मानसून सत्र में ही सरकार ने राज्यसभा से पास करा लिया था. अगर यह बिल लोकसभा से पास हो जाता है तो डिजिटल मीडिया भी रेग्युलेशन के दायरे में आ जाएगा.
क्या सरकार ने नहीं बताया पूरा एजेंडा
चूंकि सरकार ने मानसून सत्र समाप्त होने के ठीक एक महीने बाद विशेष सत्र की घोषणा करके सबको चौका दिया था, इसलिए अटकलें लगाई जा रही थी कि सरकार इस सत्र में कुछ बड़ा कर सकती है. खासकर 2024 चुनाव के एजेंडे को इस सत्र में पेश कर सकती है जिसमें सरकार ‘इंडिया’ का नाम बदलकर ‘भारत’ करने, ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ या समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लाए जाने जैसी बाते की जा रही थी.
लेकिन बुधवार को सरकार ने जो एजेंडा पेश किया है उसमें असाधारण कुछ नहीं है. संसद में पहले से ही चर्चा के विभिन्न चरणों में इन कानून और विधेयकों पर चर्चा हो ही रही था, वैसे सूत्रों की माने तो सत्र के पांच दिनों में अभी भी कुछ बड़ा एलान हो सकता है.
विपक्ष ने एजेंडे पर क्या कहा
वहीं अगर बात विपक्ष की करें तो वो सरकार के पेश एजेंडे के बावजूद आशंकित है. उसका मानना है कि “जो एजेंडा प्रसारित किया गया है वह विशेष सत्र के लायक नहीं लगता है.”
कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पर पोस्ट किया कि सोनिया गांधी के पीएम को लिखे गए पत्र के बाद मोदी सरकार “दबाव” में एजेंडा की घोषणा करने के लिए “मजबूर” हो गई थी. उन्होंने आगे कहा: “फिलहाल जो एजेंडा प्रकाशित हुआ है, उसमें कुछ भी नहीं है – इन सबके लिए नवंबर में शीतकालीन सत्र तक इंतजार किया जा सकता था. मुझे यकीन है कि विधायी हथगोले हमेशा की तरह अंतिम क्षण में छोड़े जाने के लिए तैयार रखे गए हैं. इसके बावजूद, भारत की पार्टियां घातक सीईसी विधेयक का डटकर विरोध करेंगी.”
Finally, after pressure from Smt. Sonia Gandhi’s letter to the Prime Minister, the Modi Govt has condescended to announce the agenda for the special 5-day session of Parliament beginning September 18th.
The agenda as published at the moment, is much ado about nothing — all this… pic.twitter.com/1y1U6bqkBH
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) September 13, 2023
वरिष्ठ तृणमूल कांग्रेस नेता डेरेक ओ’ब्रायन ने कहा कि एजेंडे में एक चेतावनी है, ”संपूर्ण नहीं माना जाना चाहिए”, और आश्चर्य जताया कि क्या सरकार कुछ ”गंदी चालें” अपना रही है.
बीजेपी ने विशेष सत्र पर सफाई
हालाँकि, बीजेपी नेताओं के एक वर्ग ने कहा कि सरकार विशेष सत्र आयोजित करना चाहती थी, क्योंकि संसद का शीतकालीन सत्र जो नवंबर-दिसंबर में आयोजित किया जाता है, वह मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनावों के कारण देरी से हो सकती था. उन्होंने कहना था कि सरकार चुनाव से पहले सदन में जी20 शिखर सम्मेलन और चंद्रयान 3 मिशन की मेजबानी जैसी अपनी हालिया “सफलताओं” को उजागर करना चाहती थी.
विशेष सत्र के एजेंडे को लेकर अब भी गर्म है अटकलों का बाज़ार
सरकार के एजेंडा जारी करने क बाद भी ऐसी अटकलें हैं कि जिन मुद्दों पर व्यापक सहमति है – या जिससे विपक्ष को दुविधा में डाल, उसके भीतर के विभाजन को उजागर किया जा सकें ऐसे बिल सदन में पेश हो सकते है. इसमें से सबसे ज्यादा चर्चा जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने के प्रस्ताव के अलावा, संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए कोटा तय करने वाले महिला आरक्षण विधेयक को लेकर है. ये दो ऐसे मुद्दे है जिसपर विपक्ष के पास सरकार पर हमला करने का कोई आधार नहीं होगा.
जम्मू-कश्मीर के इस कदम से सरकार को सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी से बचने में भी मदद मिलेगी, जिसने हाल ही में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए केंद्र से पूछा था कि क्या उसके पास इस क्षेत्र को राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए कोई समय सीमा है.
वहीं बात अगर महिला आरक्षण बिल की करें तो, वैसे तो इंडिया ब्लॉक की अधिकांश पार्टियाँ महिला आरक्षण के पक्ष में हैं, लेकिन समाजवादी पार्टी और आरजेडी इसमें कुछ अड़चनें ला सकती हैं. दोनों दल, अपने मजबूत जाति आधार के साथ, “कोटा के भीतर कोटा”, या महिलाओं के लिए आरक्षण ब्लॉक के भीतर जाति और समुदाय-आधारित कोटा चाहते हैं.
महिला विधेयक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नारी शक्ति एजेंडे पर फिट भी बैठता है. जिसके तहत उन्होंने उज्ज्वला योजना, शौचालय निर्माण मिशन और जल जीवन कार्यक्रम चालू किए है. बीजेपी का मानना है कि महिला आरक्षण बिल महिला मतदाताओं के वोट पाने और 2024 चुनावों में एक गेम चेंजर के रूप में साबित हो सकता है
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