प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को तलाक (divorce) के एक महत्वपूर्ण में सुनवाई के बाद आदेश में कहा कि जीवन साथी के साथ लंबे समय तक यौन संबंध बनाने की अनुमति न देना मानसिक क्रूरता है. कोर्ट ने इसी आधार पर वाराणसी के दंपत्ति को तलाक (Divorce) की अनुमति दे दी है.Divorce का ये आदेश न्यायमूर्ति सुनीत कुमार तथा न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार चतुर्थ की खंडपीठ ने वाराणसी के रविंद्र प्रताप यादव की अपील को स्वीकार करते हुए दिया.
फैमिली कोर्ट ने तलाक (Divorce)की अर्जी कर दी थी खारिज
याचिकाकर्ता ने फैमिली कोर्ट मे भी इसी आधार पर अदालत से तलाक (Divorce) की मांग की थी लेकिन फैमिली कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया था.फिर याचिकाकर्ता ने अपनी अपील में फैमिली कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.
क्या है मामला ?
याचिकाकर्ता का विवाह 1979 में आशा देवी के साथ हुआ था. शादी के कुछ समय के बाद पत्नी का व्यवहार बदल गया. उसने पत्नी के रूप में रहने से इंकार कर दिया था. आग्रह के बावजूद पति से दूर ही रही और आपसी संबध नहीं बने.जबकि दोनों एक ही छत के नीचे रहते थे. कुछ दिन बाद पत्नी मायके चली गई.
गांव में आपसी सहमति से हुआ तलाक(Divorce)
लंबे समय तक एक दूसरे से दूर रहने के बाद गांव वालों ने आपसी सहमति से 1994 में दोनों का तलाक करा दिया. इस तलाक के साथ पत्नी को पति की तरफ से 22 हजार रुपये गुजारा भत्ता के तौर पर दिया गया.
गुजारा भत्ता मिलने के बाद पत्नी ने दूसरी शादी कर ली. पति ने तलाक देने की अदालत में अर्जी दी लेकिन पत्नी अदालत नहीं आई. परिवारिक न्यायालय ने पति की तलाक (Divorce) अर्जी को खारिज कर दिया.
हाईकोर्ट ने नये सिरे से तलाक के कारण को पारिभषित किया
अब याचिकाकर्ता ने फैमिली कोर्ट से तलाक नामंजूर होने के बाद हाइकोर्ट का रुक किया जहां अपने फैसले में हाईकोर्ट ने कहा कि शादी के बाद लंबे समय तक पति-पत्नी अलग रहते थे. पत्नी के लिए वैवाहिक बंधन का कोई सम्मान नहीं था. उसने अपने दायित्वों का निर्वहन करने से इंकार कर दिया. इससे यह साबित हो गया कि दोनों की शादी टूट चुकी है.