शुक्रवार को दबदबा था दबदबा कायम रहेगा से रविवार आते आते दबदबा जूते की नोक पर…..सोशल मीडिया पर भारतीय कुश्ती महासंघ का महासंग्राम तीन दिन में 180 डिग्री पलट गया. शनिवार को जिनके गले में माला और मुस्कान थी वो रविवार आते आते खुद के लिए कहने लगे कि उनका खेल अब खत्म हो चुका है. यानी खिलाड़ियों के सन्यास और पद्मश्री लौटाने का असर तो हुआ लेकिन सरकार की इस कार्रवाई के बाद भी देश और खिलाड़ियों का भरोसा नहीं लौटा.
साक्षी मलिक ने क्या कहा WFI के निलंबन के बाद
कुश्ती में देश की एकमात्र महिला ओलंपिक पदक विजेता साक्षी मलिक ने कुश्ती संघ के निलंबन के बाद अपने संन्यास के फैसले को लेकर कहा, “मैं आपको गठित होने वाले महासंघ के अनुसार निर्णय के बारे में बताऊंगी.”
मलिक ने यह भी कहा कि पहलवानों का विरोध सरकार के खिलाफ नहीं है, बल्कि एक व्यक्ति के खिलाफ है – उनका इशारा पूर्व डब्ल्यूएफआई प्रमुख बृज भूषण शरण सिंह, जो यौन उत्पीड़न के आरोपों का सामना कर रहे हैं और मामला फिलहाल अदालत में है.
बजरंग ने किया पद्मश्री वापस लेने से इनकार
साक्षी की तरह ही अपना पद्मश्री प्रधानमंत्री के घर के सामने फुटपाथ पर छोड़ आने वाले बजरंग पुनिया ने कहा, भले ही केंद्रीय खेल मंत्रालय ने नवनिर्वाचित भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) पैनल को निलंबित करने का फैसला किया है, लेकिन वो अपना पद्म श्री पुरस्कार वापस अभी नहीं लेंगे. ओलंपिक पदक विजेता पहलवान ने कहा कि पूरा न्याय मिलने के बाद ही वह कोई फैसला करेंगे.
सरकार और बृजभूषण पर नहीं खिलाड़ियों को भरोसा
यानी पहले जनवरी और फिर अप्रैल में जो हुआ उसके बाद नाराज़ पहलवान न सरकार के फैसले पर भरोसा कर पा रहे हैं न उसकी नियत पर. हलांकि अबतक दबदबा कायम रहने और खुद की दबंगई से बाज़ नहीं आने वाले कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह इस बार पूरी तरह से अपने हथियार डालते नज़र आ रहे है. सरकार के कुश्ती संघ को निलंबित करने के फैसले के बाद बृज भूषण ने मीडिया से कहा, “… वे(अमित शाह) हमें जब बुलाएंगे हम तब उनसे मिलेंगे, वे हमारे नेता हैं लेकिन यह मुलाकात कुश्ती के संबंध में नहीं होगी… संजय सिंह अपना काम कर रहे हैं, हम अपना काम करेंगे. मैं कुश्ती और खेल की राजनीति से पूर्णतया सन्यास ले चुका हूं. क्या करना है यह फेडरेशन का काम है, मेरा इससे कोई लेना-देना नहीं है…”
बृजभूषण की जल्दबाजी से बिगड़ा मामला
असल में केंद्र सरकार को साक्षी मलिक के सन्यास और बजरंग पुनिया के पद्मश्री लौटाने के फैसले से उतना फर्क नहीं पड़ा जितना इस बात से पड़ा की कुश्ती संघ ने महिला खिलाड़ियों का कैंप जल्दबाजी दिखाते हुए गोंडा में रख दिया जो की बृजभूषण का इलाका था. सन्यास का एलान करने के बाद कुश्ती संघ के इस फैसले पर साक्षी ने कहा था कि ” मैंने कुश्ती छोड़ दी है पर कल रात से परेशान हूँ वे जूनियर महिला पहलवान क्या करें जो मुझे फ़ोन करके बता रही हैं कि दीदी इस 28 तारीख़ से जूनियर नेशनल होने हैं और वो नयी कुश्ती फेडरेशन ने नन्दनी नगर गोंडा में करवाने का फ़ैसला लिया है. गोंडा बृजभूषण का इलाक़ा है. अब आप सोचिए कि जूनियर महिला पहलवान किस माहौल में कुश्ती लड़ने वहाँ जाएँगी. क्या इस देश में नंदनी नगर के अलावा कहीं पर भी नेशनल करवाने की जगह नहीं है क्या समझ नहीं आ रहा कि क्या करूँ.”
यानी कुश्ती संघ नाराज़ खिलाड़ियों को सिर्फ जीत की तस्वीरों से नहीं बल्कि गोंडा में कैंप रख उनकी हार का एहसास दिलाना चाहता था. और शायद यहीं जल्दबाजी उनपर भारी पड़ गई. क्योंकि 2024 से पहले बीजेपी सरकार महिला सम्मान से जुड़े किसी मुद्दे को लेकर चर्चा नहीं चाहती.
जाट वोट बैंक से नहीं महिलाओं की नाराज़गी का है डर
साक्षी के सन्यास और बजरंग के पद्मश्री को तो बीजेपी जाट नाराज़गी से जोड़ दिया था. जो सिर्फ वोट में देखा जाए तो 2 प्रतिशत है और उसमें भी कई गुट है. लेकिन अगर सवाल महिला सम्मान का हो जाता तो बात बिगड़ सकती थी.
सरकार का फैसला सिर्फ मामला दबाने की कोशिश
वैसे तो सरकार ने पहले भी अपनी कोशिशों से पहलवानों को खामोश करा लिया था. और इस बार भी सरकार का फैसला सिर्फ मामले को दबाने जैसा लगता है. क्योंकि याद कीजिए जब सरकार ने किसान आंदोलन वाले तीन कानून वापस लिए थे तो पीएम ने खुद इस बात का एलान किया था….हार मानी थी और कहा था कि भला करना चाहता था लेकिन शायद मेरा तरीका समझ नहीं आया.
खिलाड़ियों को मोदी की गारंटी का है इंतज़ार
लेकिन खिलाड़ियों के मामले में प्रधानमंत्री शुरु से खामोश है. वो तब भी खामोश थे जब लोगों ने उन्हें याद दिलाया कि विनेश फोगाट को उन्होंने अपने घर की बच्ची कहा था, वो तब भी खामोश थे जब खिलाड़ियों को नई संसद के उद्घाटन के दौरान सड़क पर घसीटा गया था. पीएम खामोश थे जब खिलाड़ी अपना मेडल गंगा में फेंकने जा रहे थे. और वो कुश्ती संग में संजय सिंह की जीत और उस जीत के जश्न में बृजभूषण की माला पहले दबदबा कायम वाली तस्वीरें वायरल हुई थी. और मोदी कुश्ती संघ के निलंबन पर भी चुप हैं.
प्रधानमंत्री की चुप्पी ही इस मामले में अविश्वास की सबसे बड़ी वजह है. क्यों की फैसला तो खेल मंत्रालय ने लिया लेकिन सबको पता है कि पीएम की मर्जी के बगैर य हुआ नहीं होगा. लेकिन सवाल ये ही है कि जब फैसला पीएम मोदी का है तो इसपर मोदी की गारंटी का ठप्पा क्यों नहीं है.
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