इशारों-इशारों में दिल का हाल बयां कर देने की कला कोई बीजेपी के दिग्गज नेता नितिन गडकरी से सीखे….सही वक्त और असरदार शब्दों का इस्तेमाल कर वो न सिर्फ अपनी बात कह जाते हैं बल्कि अपने निशाने पर गहरी चोट भी कर देते हैं.
बीजेपी में हाल फिलहाल में ये चर्चा आम है कि पार्टी को गुजरात के दो लोग ही चला रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह को लेकर दबी ज़बान में ही सही ये कहा जा रहा है कि अब वो संघ की भी नहीं सुनते. इसका एक नमूना तब देखने को मिला जब पार्टी ने संसदीय बोर्ड का पुनर्गठन किया और इसमें इस बार गडकरी समेत मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बाहर का रास्ता दिखा दिया था. अब पार्टी के इसी फैसले पर गडकरी का बयान आया जिसमें सीधे तो नहीं पर उन्होंने इशारों-इशारों में मोदी शाह पर निशाना साधा है. एक मीडिया हाउस को दिए इंटरव्यू में अपने बेबाक बयानों से अकसर चर्चा में रहने वाले बीजेपी के पहली पंक्ति के नेता नितिन गडकरी ने बहुत कुछ ऐसा कहा जिसे समझने वाले आसानी से समझ जाएंगे. गडकरी ने रविवार को नागपुर के एक कार्यक्रम में जो बातें कही वो कहीं ना कहीं उनके वर्तमान राजनीतिक स्थिति को बयां करती है.
जीत वही जिसकी खुशी आपसे ज्यादा दूसरों को हो
गडकरी ने मंच से कहा कि जब आपको सफलता मिलती है और अगर उसकी खुशी अकेले आपको होती है तो उस सफलता का कोई मतलब नहीं है. जब आप कोई काम करते हैं और उसकी खुशी आपके आस पास के छोटे बड़े सभी लोगों को आपसे ज्यादा होती है तभी उस सफलता का कोई मतलब है .
गडकरी ने बीजेपी के प्रति अपनी जुड़ाव को रेखांकित करते हुए कहा कि एक बार उनके एक दोस्त श्रीकांत जिचकर ने मुझे कांग्रेस में शामिल होने की सलाह दी थी लेकिन मैंने उनके बोल दिया कि मेरी विचारधारा उनसे मेल नहीं खाती है इसलिए कुएं मे कूद जाऊंगा लेकिन कांग्रेस में शामिल नहीं होऊंगा. गडकरी ने बताया कि ये उस दौर की बात थी जब वो छात्र थे और बीजेपी की स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी जितनी आज है. पार्टी को अकसर हार का सामना करना पड़ता था.
जीवन में मानवीय संबंध महत्वपूर्ण हैं, किसी को इस्तेमाल करके फेंकना नहीं चाहिये.
नितिन गडकरी ने आगे कहा कि चाहे राजनीति हो या कारोबार, दोनों जगह मानवीय संबंध बड़े होते हैं. हालात कैसे भी हों, किसी को इस्तेमाल करके फेंकना नहीं चाहिये.
गडकरी ने अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के एक बयान का जिक्र करते हुए कहा कि कोई व्यक्ति हारने से ख़त्म नहीं होता है, मैदान छोड़ने से ख़त्म हो जाता है. हमें हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि अहंकार और आत्मविश्वास में फर्क होता है.
नितीन गडकरी का इन बयानों को बीजेपी संसदीय बोर्ड के पुनर्गठन से जोड़ के देखिए तो समझ आ जाएगा की वो किसकी ओर इशारा कर रहे हैं. वैसे बीजेपी हमेशा परंपराओं की बात करती है तो ऐसे में बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष या वर्तमान अध्यक्षों को संसदीय बोर्ड में रखना भी उसकी एक परंपरा थी. गडकरी की नाराजगी का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि वो ख़ुद को इस्तेमाल कर फेंका हुआ महसूस कर रहे हैं तभी तो उन्होंने कहा “लोगों को इस्तेमाल करो और फेंको की भीड़ में शामिल नहीं होना चाहिये. दिन अच्छे हों या बुरे अगर एक बार किसी का हाथ थामा है तो उसे छोड़ना ठीक बात नहीं है”