New CJI took oath: सुप्रीम कोर्ट के कई ऐतिहासिक फैसलों में अहम भूमिका निभाने वाले जस्टिस संजीव खन्ना ने सोमवार को भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में शपथ दिलाई. वे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की जगह लेंगे, जिनका सीजेआई के तौर पर कार्यकाल शुक्रवार को खत्म हो गया.
#WATCH दिल्ली: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य गणमान्य लोगों की उपस्थिति में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति भवन में भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। pic.twitter.com/dvXrZJ9xaO
— ANI_HindiNews (@AHindinews) November 11, 2024
New CJI took oath: 6 महीने का होगा सीजेआई संजीव खन्ना का कार्यकाल
केंद्र ने 16 अक्टूबर को मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की सिफारिश के बाद 24 अक्टूबर को न्यायमूर्ति खन्ना की नियुक्ति को आधिकारिक रूप से अधिसूचित किया. शुक्रवार को न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ का सीजेआई के रूप में अंतिम कार्य दिवस था और उन्हें शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, वकीलों और कर्मचारियों द्वारा शानदार विदाई दी गई.
64 साल की उम्र में, न्यायमूर्ति खन्ना भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में छह महीने का कार्यकाल पूरा करेंगे और उनके 13 मई, 2025 को सेवानिवृत्त होने की उम्मीद है.
कई ऐतिहासिक निर्णयों का हिस्सा रहे है संजीव खन्ना
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना सुप्रीम कोर्ट के कई ऐतिहासिक निर्णयों का हिस्सा रहे हैं, जिसमें चुनावी बॉन्ड योजना को खत्म करना और अनुच्छेद 370 को निरस्त करना शामिल है. उनके उल्लेखनीय निर्णयों में चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के उपयोग को बरकरार रखना भी शामिल है.
यह न्यायमूर्ति खन्ना की अगुवाई वाली पीठ ही थी, जिसने पहली बार आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल, तत्कालीन दिल्ली के मुख्यमंत्री को आबकारी नीति घोटाला मामलों में लोकसभा चुनाव में प्रचार करने के लिए अंतरिम जमानत दी थी.
दिल्ली बार काउंसिल में अधिवक्ता से मुख्य न्यायाधीश बनने तक का सफ़र
न्यायमूर्ति खन्ना दिल्ली के एक प्रतिष्ठित परिवार से आते हैं. उनके पिता न्यायमूर्ति देव राज खन्ना दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश थे और उनके चाचा न्यायमूर्ति एचआर खन्ना सर्वोच्च न्यायालय के एक प्रमुख पूर्व न्यायाधीश थे. न्यायमूर्ति एचआर खन्ना ने आपातकाल के दौरान कुख्यात एडीएम जबलपुर मामले में असहमतिपूर्ण फैसला लिखने के बाद 1976 में इस्तीफा देकर सुर्खियाँ बटोरीं थी.
न्यायमूर्ति खन्ना ने 1983 में दिल्ली बार काउंसिल में अधिवक्ता के रूप में नामांकन कराया. उन्होंने शुरुआत में तीस हजारी परिसर में जिला अदालतों में वकालत की, बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय और न्यायाधिकरणों में चले गए. उन्होंने आयकर विभाग के वरिष्ठ स्थायी वकील के रूप में लंबे समय तक काम किया. 2004 में, उन्हें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के लिए स्थायी वकील (सिविल) नियुक्त किया गया.
उन्हें 2005 में दिल्ली उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया और 2006 में वे स्थायी न्यायाधीश बने. न्यायमूर्ति खन्ना को 18 जनवरी, 2019 को सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नत किया गया.
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