नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में जिम कॉर्बेट बाघ अभयारण्य के संरक्षण को लेकर सोमवार को कई अहम निर्देश दिए। शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को अवैध पेड़ कटाई की भरपाई के लिए सुधार के आदेश दिए। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा कि यदि राज्य पर्यटन को बढ़ावा देना चाहता है, तब राज्य सरकार को इको-टूरिज्म की दिशा में काम करना होगा। सीजेआई गवई ने निर्देश दिया कि कोर क्षेत्र में अपने परिवारों से दूर काम कर रहे कर्मचारियों के लिए विशेष व्यवस्था करे।
अदालत ने मुख्य वन्यजीव वार्डन को आदेश दिया कि जिम कॉर्बेट में बनी सभी अनधिकृत संरचनाओं को तीन महीने के भीतर करे। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट द्वारा नियुक्त पैनल को राज्य सरकार की पारिस्थितिक बहाली योजना की निगरानी करने का निर्देश दिया है। अदालत के ये निर्देश जिम कॉर्बेट क्षेत्र में संरक्षण प्रयासों को सख्ती से लागू कराने और पर्यावरणीय क्षति को रोकने की दिशा में महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं।
इसके पहले उत्तराखंड हाई कोर्ट ने पिछले पांच वर्षों में राज्य में हुए सभी शिकार मामलों की सीबीआई जांच का आदेश दिया था। इसका उद्देश्य वन विभाग के अधिकारियों की सहभागिता, संलिप्तता या मिलीभगत का पता लगाना था। अदालत को बताया गया था कि पिछले ढाई वर्षों में 40 बाघों और 272 तेंदुओं की मौत हुई थी। शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी। यह रोक रिटायर्ड प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) डी.एस. खाती की अपील पर एकपक्षीय रूप से पारित की गई थी। उत्तराखंड के एक पर्यावरणविद् अतुल सती ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिसमें सीबीआई को अपनी जांच पूरी करने की अनुमति देने के लिए इस रोक को हटाने की मांग की गई है। केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई ने भी इस स्थगन आदेश को रद्द करने के लिए एक आवेदन दायर किया है। सीबीआई ने अपने आवेदन में अपनी प्रारंभिक जांच के निष्कर्षों का उल्लेख किया है, जिसमें उसे कई अनियमितताएं मिलीं, जैसे कि वन अधिकारियों द्वारा एक बाघ की मौत को छिपाने का जानबूझकर किया गया प्रयास। पर्यावरणविद् के वकील गोविंद जी की दलील से सहमत होते हुए, सीजेआई बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले की सुनवाई 17 नवंबर के लिए स्थगित कर दी।
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