Bofors Scandal : 36 साल (1987) पुराने बोफोर्स घोटाला मामले से जुड़ी जांच में बड़ा अपडेट सामने आया है. भारत की केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी CBI ने अमेरिका को रोगेटरी पत्र भेजा है. CBI ने अमेरिका से जासूस माइकल हर्शमैन को ढूंढने और उनसे पूछताछ की प्रक्रिया शुरू करने की अपील की है. आइए जानते हैं कि ये मामला क्यों सामने आया है और ये निजी जासूस कौन है जिससे पूछताछ करने की बात कही जा रही है.
Bofors Scandal में क्या था माइकल हर्शमैन का दावा?
दरअसल, CBI ने अमेरिका को रोगेटरी पत्र भेजकर निजी जासूस माइकल हर्शमैन को ढूंढने और उससे पूछताछ की प्रक्रिया शुरू करने की अपील की है. माइकल हर्शमैन ने एक मीडिया रिपोर्ट पर दावा किया था कि वे 64 बोफोर्स तोप घोटाले की जांच में मदद कर सकता हैं. बता दें कि भारत में बोफोर्स घोटाला 1980 के दशक के सामने आया था. इस दौरान तत्कालीन राजीव गांधी सरकार पर घोटाले के आरोप लगे थे.
इंटरव्यू को जांच का आधार बनाया गया
दिल्ली की अदालत के आदेश पर अक्टूबर 2024 में अमेरिका को पत्र रोगेटरी भेजने की प्रक्रिया शुरू हुई थी. इसमें अमेरिकी नागरिक के टीवी इंटरव्यू को जांच का आधार बनाया गया है. आपको बता दें कि प्रशासनिक स्वीकृतियों के कारण इसे पूरा होने में 90 दिन लग सकते हैं.
अमेरिका में जांच जरूरी मानी गई ?
भारत के एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में बोफोर्स घोटाले पर अनियमितताओं का दावा किया गया था. इन दावों की सत्यता की जांच के लिए अमेरिका में जांच जरूरी मानी गई है. दिल्ली की अदालत ने CBI के आवेदन को स्वीकार किया है. इसके बाद अमेरिका की न्यायिक प्राधिकरण को रोगेटरी पत्र भेजा गया है. अमेरिका से दस्तावेज, गवाहों के बयान और अन्य जरूरी सबूत जुटाने का अनुरोध किया जाएगा.
क्या है बोफोर्स घोटाला
सन 1987 में यह बात सामने आयी थी कि स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स ने भारतीय सेना को तोपें सप्लाई करने का सौदा तय करने के लिए उस समय की सरकार को 80 लाख डालर की दलाली चुकायी थी. उस समय केन्द्र में राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे और देश में कांग्रेस की सरकार थी. स्वीडन की रेडियो ने सबसे पहले 1987 में इसका खुलासा किया था. इसे ही बोफोर्स घोटाला या बोफोर्स काण्ड के नाम से जाना जाता हैं.