Monday, July 21, 2025

30 फीट गहराई तक खोजा, शिवलिंग का अंत नहीं मिला! आस्था की मिसाल बने शिव-पार्वती मंदिर

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दमोह। श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र दमोह जिले के बांदकपुर गांव स्थित जागेश्वर धाम हर दिन हजारों भक्तों को आकर्षित करता है। बीना कटनी रेल मार्ग पर स्थित यह प्राचीन स्थल दमोह मुख्यालय से लगभग 16 किलोमीटर दूर है और विंध्य पर्वत की तलहटी में बसा है। यहां स्थित मंदिर में भगवान शिव का स्वयंभू शिवलिंग विराजमान है, जिसे श्रद्धालु ‘सिद्धपीठ’ के रूप में पूजते हैं।
 
30 फीट तक खुदाई में भी नहीं मिला शिवलिंग का अंत

किंवदंती के अनुसार, 17वीं शताब्दी में मराठा राज्य के दीवान बालाजी राव चांदोरकर एक बार रथ यात्रा करते हुए बांदकपुर पहुंचे थे। वर्तमान इमरती कुंड में स्नान कर वे पूजन में लीन हुए और उसी दौरान उन्हें भगवान शिव के दर्शन हुए। शिव ने संकेत दिया कि वटवृक्ष के पास जहां घोड़ा बंधा है, वहां खुदाई कर उन्हें भूमि से ऊपर लाया जाए। बालाजी राव द्वारा कराई गई खुदाई में काले भूरे पत्थर का शिवलिंग मिला, जिसकी गहराई जानने के लिए जब 30 फीट तक खुदाई की गई, तब भी उसका अंत नहीं मिला। इसके बाद उस स्थल पर मंदिर का निर्माण कराया गया। मंदिर का गर्भगृह आज भी मूल नींव से नीचे स्थित है।

अद्भुत शिवलिंग, दर्शन में नहीं समाता हाथों में

भगवान जागेश्वर का शिवलिंग जमीन की सतह से नीचे स्थित है और इतना विशाल है कि श्रद्धालुओं के दोनों हाथों में समाता नहीं। मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा की ओर है, जबकि पश्चिम की ओर करीब 100 फीट की दूरी पर माता पार्वती की प्रतिमा विराजमान है, जिनकी दृष्टि सीधी भगवान शिव पर पड़ती है। इनके मध्य में विशाल नंदी मठ स्थित है, जहां से दोनों प्रतिमाओं के दर्शन स्पष्ट रूप से होते हैं। नंदी मठ के पास स्थित इमरती बावली (अमृत कुंड) में विभिन्न तीर्थस्थलों से लाया गया पवित्र जल एकत्र किया जाता है। यही जल भक्त भगवान जागेश्वर के शिवलिंग पर अर्पित कर 'गंगाजल' के रूप में घर ले जाते हैं। कांवड़ चढ़ाने की परंपरा भी यहां विशेष रूप से प्रचलित है।

हल्दी के हाथ लगाने की विशेष परंपरा

मंदिर में श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए दीवार पर हल्दी के हाथ लगाते हैं। मान्यता है कि जब इच्छा पूरी हो जाती है, तो श्रद्धालु दोबारा आकर सीधा हाथ लगाते हैं। यह परंपरा इस स्थान की विशेष मान्यताओं में से एक है। महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर यहां विशेष भीड़ उमड़ती है। इस दिन जब सवा लाख कांवड़ भगवान शिव को चढ़ती है, तब मंदिर पर स्थित शिव और पार्वती मंदिरों के ध्वज आपस में मिल जाते हैं, जिसे देखने हजारों श्रद्धालु उमड़ते हैं। इसे भक्त भगवान भोले का चमत्कार मानते हैं। 

अन्य मंदिर और स्थायी यज्ञ मंडप

परिसर में शिव पार्वती मंदिर के अलावा भैरवनाथ मंदिर, राम लक्ष्मण जानकी मंदिर, हनुमान मंदिर व सत्यनारायण मंदिर भी स्थित हैं। यहां नियमित यज्ञ होता है, जिसके लिए 1955 में ट्रस्ट के तत्कालीन सचिव डॉ. शंकरराव मोझरकर द्वारा जयपुर से कारीगर बुलाकर स्थायी यज्ञ मंडप बनवाया गया था। मंदिर की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए 1 फरवरी 1932 को जबलपुर न्यायालय द्वारा 21 सदस्यीय ट्रस्ट का गठन किया गया। 6 नवंबर 1933 को इस संस्था को सांगठित स्वामित्व प्रदान कर इसका संचालन ट्रस्ट को सौंपा गया। मंदिर में स्थानीय पुजारी वर्ग का पैतृक अधिकार है। ट्रस्ट द्वारा सत्यनारायण कथा, कांवड़ पूजन, मुंडन आदि व्यवस्थाएं कराई जाती हैं। ट्रस्ट का चुनाव हर तीन वर्ष में होता है। इसमें दमोह बांदकपुर क्षेत्र, हिंदू महासभा जबलपुर व सागर, और चांदोरकर परिवार के सदस्य शामिल होते हैं।

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