ग्वालियरः एमपी हाई कोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने भ्रष्टाचार मामले में कड़ा रुख अपनाया है। उच्च न्यायालय ने सेशन कोर्ट के जज के आचरण पर सवाल खड़े कर दिए हैं। साथ ही ज्यूडिशियल जांच के आदेश दिए हैं। वहीं, आरोपी की पांचवी जमानत याचिका भी खारिज कर दी है। कोर्ट पाया कि प्रथम अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने 5 करोड़ की सार्वजनिक धनराशि गबन के मामले में तथ्यों पर गौर किए बिना आरोपी को गंभीर धाराओं से मुक्त कर दिया। दरअसल, ग्वालियर खंडपीठ के न्यायमूर्ति राजेश कुमार गुप्ता ने शिवपुरी के प्रथम अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विवेक शर्मा के आचरण पर सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने पाया कि आरोपी को अनुचित लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से भ्रष्टाचार के गंभीर धाराओं को हटाकर केवल हल्की धाराएं लगाई। इससे उसके जमानत का रास्ता आसान हो गया।
हाई कोर्ट के विभागीय जांच के आदेश
हाई कोर्ट ने इस मामले में विभागीय जांच के लिए सिफारिश की है। साथ ही जज के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने को भी कहा है। इस आदेश की एक कॉपी अब उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश को भेजी जाएगी। इसमें जज के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की जाएगी। हालांकि निचली अदालतों के जजों ने बिना सबूत जज पर की गई टिप्पणी पर गहरी नाराजगी जताई है।
क्या है पूरा मामला
यह पूरा मामला शिवपुरी जिले से है। आरोपी कंप्यूटर ऑपरेटर रूप सिंह परिहार शिवपुरी के भूमि अधिग्रहण कार्यालय में पदस्थ है। उस पर जमीन अधिग्रहण के मुआवजे में हेराफेरी करने का आरोप है। जांच में पता चला कि जिन किसानों को करीब 6.55 लाख मिलने थे। उनकी जगह किसी अन्य 8 लोगों में प्रत्येक को लगभग 25.55 लाख रुपए ट्रांसफर कर दिए गए। इसमें से 73 लाख से ज्यादा रुपए आरोपी रूप सिंह की पत्नी के खाते में जमा हुए। इस तरह से आरोपी ने 5 करोड़ से अधिक सार्वजनिक धन का गबन किया।
कलेक्टर के आदेशों से छेड़छाड़ का आरोप
रूप सिंह पर यह भी आरोप है कि उसने कलेक्टर कार्यालय के आदेशों के साथ भी छेड़छाड़ की है। इसकी मदद से फर्जी दस्तावेज तैयार किए। इतना ही नहीं राजस्व अभिलेखों में आग लगाकर सबूत मिटाने की कोशिश भी की। इस पर अलग से एफआईआर दर्ज की गई है। आरोपी पर आईपीसी की धाराओं 409, 420, 467,471, 120 बी और 107 सहित भ्रष्टाचार भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराएं भी लगाई गई थीं।
हाई कोर्ट की नाराजगी
ग्वालियर हाई कोर्ट ने पाया कि ट्रायल कोर्ट के जज ने आरोपी रूप सिंह परिहार को लाभ पहुंचाने के लिए गंभीर धाराओं को हटाकर केवल हल्की धारा 406 लागू कर दी। इससे उसकी जमानत आसान हो सकती थी। जस्टिस राजेश कुमार गुप्ता ने इसे संदेहास्पद और उद्देश्यपूर्ण फैसला बताते हुए कहा किया कि यह ज्यूडिशियल प्रक्रिया और सार्वजनिक धन की सुरक्षा दोनों के खिलाफ है। इसलिए आरोपी की पांचवी जमानत याचिका खारिज कर दी।
हाई कोर्ट की टिप्पणी
सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि हाईकोर्ट ने अपने आदेश में मामले को केवल आरोपी तक सीमित नहीं रखा। कोर्ट ने कहा कि प्रथम अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विवेक शर्मा ने धारा कम करके आरोपी को लाभ देने का प्रयास किया। इसलिए, उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई जरूरी है। इस आदेश की प्रति हाईकोर्ट के प्रिंसिपल रजिस्ट्रार (विजिलेंस) को भेजी गई है। ताकि इसे मुख्य न्यायाधीश के सामने रखा जा सके। साथ ही जज के खिलाफ विभागीय जांच शुरू की जा सके।