जबलपुर : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर बैंच में दुष्कर्म के एक अजीबोगरीब मामले पर कोर्ट ने फैसला दिया. दरअसल, इस मामले में एक पत्नी ने पति के खिलाफ दुष्कर्म का मामला दर्ज कराने वाली महिला के पति पर ही झूठा मुकदमा दर्ज करा दिया. महिला ने शिकायतकर्ता के पति के खिलाफ दुष्कर्म की झूठी रिपोर्ट दर्ज करा दी थी, क्योंकि मामले में पीड़ित ने समझौते करने से इंकार कर दिया था. वहीं, जिला न्यायालय द्वारा इस मामले में पीड़ित के पति को बरी किए जाने के खिलाफ महिला ने हाईकोर्ट में अपील दायर की थी.
महिला का आरोप, घर में घुसकर किया दुराचार
दुष्कर्म के इस मामले पर हाईकोर्ट जस्टिस विवेक अग्रवाल व जस्टिस ए.के सिंह की युगलपीठ ने सुनवाई की. सुनवाई के दौरान युगलपीठ ने जिला न्यायालय के फैसले को उचित करार देते हुए अपील को निरस्त कर दिया. दरअसल, पन्ना निवासी महिला की ओर से दायर की अपील में कहा गया था कि वह सात माह की गर्भवती होने के कारण 25 जुलाई 2022 को घर पर अकेले थी, उसके पति तथा ससुर काम पर गए हुए थे. दोपहर के समय आरोपी रमेश पाल जबरदस्ती घर में घुस आया और निजता का उल्लंघन किया था.
हाईकोर्ट में महिला ने लगाई याचिका
पुलिस ने महिला की शिकायत पर आरोपी के खिलाफ दुराचार का प्रकरण दर्ज कर न्यायालय में प्रकरण पेश किया था. हालांकि, जिला न्यायालय ने मामले की सुनवाई के बाद आरोपी को दोषमुक्त करार दिया था, जिसके बाद महिला ने हाईकोर्ट में अपील दायर की.
महिला ने दर्ज कराई थी दुष्कर्म की झूठी रिपोर्ट
इस मामले पर हाईकोर्ट जस्टिस विवेक अग्रवाल व जस्टिस ए.के सिंह की युगलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि खुद अपीलकर्ता के पति के खिलाफ प्रकरण में आरोपी व्यक्ति की पत्नी ने दुष्कर्म का प्रकरण दर्ज करवाया था. इस प्रकरण में वर्तमान अनावेदक की पत्नी ने समझौते से इंकार कर दिया था, जिसके कारण अपीलकर्ता ने उसके पति के खिलाफ दुष्कर्म की झूठी रिपोर्ट दर्ज करवाई थी. इन तथ्यों के आधार पर जिला न्यायालय ने आरोपी को दोषमुक्त करार दिया था.
हाईकोर्ट ने सुनाया ये फैसला
वहीं, कोर्ट ने यह भी पाया कि था कि मेडिकल रिपोर्ट भी महिला द्वारा लगाए गए आरोपों का समर्थन नहीं करती थीं. इन तमाम तथ्यों को देखने के बाद युगलपीठ ने जिला न्यायालय के फैसले को यथावत रखते हुए आरोपी को दोषमुक्त करार दिया. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि झूठी रिपोर्ट दर्ज करवाने के संबंध में अपीलकर्ता की स्वीकारोक्ति अपने आप में दोषमुक्ति के निर्णय को बरकरार रखने के लिए पर्याप्त है.