छिंदवाड़ा: दशहरा मैदान में पेड़ों की दो बड़ी-बड़ी शाखाएं, गोंडी संस्कृति से सजा मंच, धोती कुर्ते में पुरुष और पारंपरिक साड़ियों में हजारों की संख्या में महिलाएं पूजा के बाद खुशियां मनाते हुए नाच गाना कर रहे हैं. देश भर के अलग-अलग प्रदेशों से लोग यहां करमडार पूजा महोत्सव में शामिल होने आए थे. आदिवासियों की यह खास पूजा होती है, जिसे मनाने का तरीका भी बेहद खास होता है.
करम के पेड़ की शाखाओं की होती है पूजा
गोंडी धर्म संस्कृति मंच के प्रदेश संयोजक दिलीप सिंह सैयाम ने बताया, ''हम जनजाति समूह के लोग प्रकृति के पुजारी हैं, इसलिए करम के पेड़ जिसे हल्दू भी कहा जाता है, हम उसकी दो शाखाओं को लाकर उसकी पूजा करते हैं. यह आदिवासी समुदायों के लिए एक महत्वपूर्ण फसल उत्सव है. जो भूमि, जल और जंगलों के प्रति आभार व्यक्त करने का मौका देता है. यह परंपरा हजारों साल पुरानी है जिसे हम लोग आगे बढ़ा रहे हैं. प्रकृति ही हमारी पूजा का माध्यम है. जल, जंगल, जमीन, हवा इनकी हम पूजा करते हैं. ना तो इसे किसी ने बनाया है और ना ही इन्हें कोई मिटा सकता है.''
भादो की उजियारी ग्यारस में होती है पूजा
करमडार पूजा हर साल हिंदी महीने की भादो की एकादशी के दिन मनाई जाती है. इस पूजा को मनाने का तरीका भी बेहद खास होता है, इसे कर्मा पूजा भी कहा जाता है. इसके बाद करम के पेड़ों की शाखों के साथ ही गेहूं के जवारे बोए जाते हैं और फिर उनकी भी पूजा कर सभी लोग अपने आराध्य प्रकृति की पूजा करते हैं. हर व्यक्ति को पारंपरिक पोशाक यानी कि अगर पुरुष है तो धोती कुर्ता और महिलाओं को साड़ी पहनकर ही इस पूजा पंडाल में जाने की अनुमति होती है.
एक ही जगह 3 साल तक लगातार होती है पूजा
करमडार की पूजा करने के लिए लोग नंबर लगाते हैं. जिस भी जिले को पूजा करने की मेजबानी मिलती है उस जगह पर 3 साल लगातार पूजा की जाती है. फिर दूसरी जगह इस पूजा को किया जाता है. आयोजकों ने बताया कि, इस पूजा को करने के लिए लोग कई सालों पहले नंबर लगाते हैं. इस पूजा में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा जैसे कई राज्यों से जनजाति समूह के लोग पहुंचते हैं.
एक ही झटके में तोड़ी जाती है पेड़ की शाखा
रामकुमार कुंजाम ने बताया कि, ''पूजा करने के 1 दिन पहले करम के पेड़ के पास जाकर न्यौता दिया जाता है और फिर पांच कुंवारी कन्याएं एक ही झटके में इसकी शाखाएं तोड़ कर लाती हैं, जिस ज्वारे को बोया जाता है उसे लाकर करम के पेड़ों के साथ पूजा की जाती है, फिर इसी के बाद से पूरे देश में करमा सुआ और ददरिया जैसे पारंपरिक गीत संगीत की शुरुआत हो जाती है.''
क्या है गोंड जनजाति, कितनी है आबादी
गोंड भारत की सबसे बड़ी जनजातियों में से एक हैं, और उनकी आबादी लगभग 1.3 करोड़ है. गोंड जनजाति भारत के दक्कन प्रायद्वीप में निवास करती है. गोंड वर्तमान में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, उड़ीसा और झारखंड में फैले हुए हैं. गोंड पहाड़ी क्षेत्र से आए हैं और वे खुद को कोइतुर या कोई कहते हैं. मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में बड़ी संख्या में गोंड लोग रहते हैं. इसके अलावा शहडोल में भी बड़ी तादाद में गोंड समुदाय के लोग निवास करते हैं. अन्य सभी आदिवासी समुदायों की तरह, गोंड भी अपने अनोखे त्यौहारों को अनोखे तरीके से मनाते हैं.