भिंड: कहते हैं गांव में लोगों के मकान भले ही छोटे होते हैं, लेकिन दिल बहुत बड़े होते हैं. मध्य प्रदेश के भिंड में एक गांव ऐसा है, जिसने मानवता की अनोखी मिसाल कायम की है. इस गांव में एक गरीब पिता की बेटी की शादी थी, जेब में दो ढाई हजार रुपए थे, लेकिन पूरे गांव ने उस बेटी की शादी बड़े ही धूमधाम से की. गांव वालों ने सिर्फ शादी ही नहीं कि बल्कि पूरा खर्च भी उठाया है. साथ ही बेटी को उपहार भी दिए.
पूरा गांव बना स्वागतकर्ता
भिंड के कीरतपुरा पंचायत में एक छोटा सा गांव है नाम है मंगतपुरा. इसी गांव में रहते राकेश कुशवाहा नाम के एक शख्स रहते है. उनके घर में शनिवार 6 दिसंबर को ढोल नगाड़े के साथ ब्याह की शहनाई गूंज रही थी. बेटी की शादी हो रही थी, सरकारी स्कूल में मुरैना से आई बारात रुकी थी. घर के बाहर पंगत यानी भोज चल रहा था. इस स्तर तक ये आम शादी की कहानी लगती है, लेकिन यह कोई आम शादी नहीं थी. क्योंकि इस विवाह में स्वागतकर्ता पूरा गांव था. सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन ये बात सौ फीसदी सच है. क्योंकि यहां दुल्हन का पिता शादी तो तय कर आया था, लेकिन शादी करने के लिए उसके पास सिर्फ ढाई हजार रुपये थे. यहीं इंसानियत और अपनेपन का आईना सबके सामने आया.
मजदूरी करता है दुल्हन का पिता
दुल्हन के पिता राकेश कुशवाहा आर्थिक रूप से बेहद कमजोर हैं. पहले बटाई पर किसानी करते थे, लेकिन हालत बदले तो किसानी छूट गई फिर कभी खेत पर तो कभी बाजार में मजदूरी कर परिवार का पेट पालते हैं. घर में एक ब्याह लायक बेटी थी और एक 12 साल का छोटा बेटा, जो कमाते 2 वक्त की रोटी में खर्च हो जाता. बेटी लक्ष्मी की शादी की बात आई तो मुरैना में शादी तय की. धीरे धीरे वह समय भी आ गया जब शादी की तारीख नजदीक आ गयी. वैसे तो मंगतपुरा गांव में सभी समाज के लोग रहते हैं, लेकिन कुशवाहा समाज के नाम पर सिर्फ राकेश और एक अन्य परिवार ही है.
शादी सिर पर जेब खाली, चिंता में डूब गया था पिता
खैर विवाह नजदीक आते ही परिवार तैयारियों में जुट गया. दुल्हन के पिता राकेश कुशवाहा के अनुसार बारात के भोजन के लिए गांव के ही हलवाई, मेहमानों के लिए रजाई गद्दे, टेंट जैसी व्यवस्थाएं बुक कर दी. शादी एक दिन पहले राकेश काफी परेशान था, क्योंकि हाथ में पैसा नहीं था. चिंता सता रही थी कि शादी की रस्मों में नेकचार, बारातियों को शगुन, बेटी को गृहस्थी का सामान और हलवाई टेंट वालों के पैसे कहां से देंगे. क्योंकि घर की जमा पूंजी सब जोड़कर भी महज दो से ढाई हजार रुपए ही हाथ में थे. लेकिन फिर पूरे गांव ने इसकी जिम्मेदारी ले ली.
पूरे गांव ने इकट्ठा किया एक लाख रुपए का चंदा
जब गांव वालों को दुल्हन के पिता की परेशानी पता चली तो उन्होंने आपस में चंदा करके 1 लाख रुपए जुटा लिए. ग्रामीण सचिन नरवारिया ने ईटीवी भारत को बताया, "जब इस बारे में पता चला तो, ये बात घर वालों को बताई तो सभी परेशान हुए. क्योंकि ये न सिर्फ गांव की इज्जत का सवाल था. बल्कि उनके गांव की बेटी के भविष्य की भी बात थी." सचिन और उनके चाचा रामू नरवरिया ने गांव के अन्य लोगों से चर्चा की. इसके बाद ग्रामीणों की एक बैठक हुई. जिसमें तय किया गया कि इस शादी में सभी लोग सामर्थ्य के हिसाब से सहयोग करेंगे. किसी ने गेहूं दिए तो किसी ने नगद रुपए, देखते ही देखते करीब 1 लाख रुपए इकट्ठा हो गए.
हलवाई बोला- अपनी बेटी की शादी में कोई पैसा लेता है
जब इस बात की जानकारी हलवाई सर्वेश नरवरिया (लल्लू) को पता चली तो उन्होंने भी अपना मेहनताना लेने से इनकार कर दिया. लल्लू हलवाई का कहना था कि लक्ष्मी राकेश की बिटिया है, तो हमारी भी बेटी है. हमने उसे बड़े होते देखा है. यदि गांव के सभी लोग सहयोग के लिए आगे आए तो हम कैसे पीछे रह जाते. इसलिए हमने भी इस विवाह में खाना बनाने का कोई पैसा नहीं लिया."
टेंट वाले ने भी नहीं लिया पैसा
ना सिर्फ हलवाई बल्कि टेंट का व्यापार करने वाले शिशुपाल नरवरिया ने भी शादी में स्टेज से लेकर कुर्सी रजाई, गद्दे, लाइट सारा इंतजाम किया, लेकिन उन्होंने भी इस व्यवस्था का पैसा लेने से मना कर दिया. उनका कहना था कि गांव की बिटिया की शादी है. अगर किसी की स्थिति नहीं बन पा रही है कि वह टेंट की व्यवस्था में पैसा लगा सके तो कोई बात नहीं. उस परिवार के साथ वाकई पैसे की समस्या थी और मदद के लिए सभी में हाथ बढ़ाए तो हम जो कर सकते थे. वह सहयोग हमने कर दिया.
नगद सहयोग के साथ समान भी किया भेंट
शादी की सभी व्यवस्थाएं अच्छे से हो गई. भोज से लेकर ठरने का भी इंतजाम हो गया. गांव के सरकारी स्कूल में मुरैना से आई बारात का जनमासा बनाया गया. पूरा विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ. रामू नरवरिया ने बताया, "लक्ष्मी बेटी की शादी में किसी चीज की कमी ना रहे इस बात का पूरा ख्याल रखा गया था, जो चंदा इकट्ठा हुआ था उससे भोजन सामग्री सब्जी आदि की व्यवस्था की गई. जेनरेटर के लिए तेल, लड़के वालों के शगुन नेक और कपड़े हर चीज अच्छे से हो गई. यहां तक सभी गांव वालों ने पैर पुजाई की रस्म में भी कुछ ना कुछ समान भेंट दिया. किसी ने सिलाई मशीन तो किसी ने फलों का रस निकालने वाली मशीन, किसी ने गैस चूल्हा. दरवाजे में लगने वाले बर्तन खुद रामू नरवरिया ने दुल्हन को एलईडी टीवी गिफ्ट किया है."
शादी की व्यवस्थाओं के बाद भी बचे हजारों रुपए
रामू नरवरिया की माने तो इस विवाह में जनसहयोग से फ्रिज छोड़कर सभी तरह का सामान दिया गया है. उसके बावजूद करीब 18 हजार रुपये चंदे के बचे हैं. जिन्हें अब लक्ष्मी के बैंक खाते में जमा करा देंगे, जो भविष्य में उसके काम आएंगे. साथ ही शादी में आने वाले लिफाफे और नगद व्यवहार भी अभी रखा हुआ जिसे गिना नहीं वे रुपये भी दुल्हन को ही देंगे.
मिसाल बन गया पूरा गांव
बहरहाल, लक्ष्मी अब विवाह कर अपने ससुराल चली गई है और गांव के सभी लोग भी अपने कामकाज में व्यस्त हो गए हैं. लेकिन दुल्हन का पिता इस बात से खुश है कि उसके गांव का इतना बड़ा परिवार जरुरत के समय उसके साथ खड़ा हो गया और गांव वालों ने एक बेटी के पिता को कर्ज के बोझ में दबने नहीं दिया. इस अनोखी शादी के बारे में अब जिसको भी पता चल रहा हर कोई तारीफ कर रहा है. मंगतपुरा की यह शादी एक मिसाल बन गई है. क्योंकि अगर हार गांव में लोग बेटियों के लिए ऐसे ही आगे आने लगे तो कभी कोई बेटी किसी के लिए बोझ नहीं बनेगी.

