Friday, February 7, 2025

Madhubani : इस पुष्पवाटिका में पहली बार मिले थे माता सीता और श्रीराम, पूर्वसंध्या पर जलेंगे यहां 5001 दीप

संवाददाता अजय धारी सिंह, मधुबनी : इतिहासकारों की माने तो Madhubani का पुराना नाम “मधुबन” था. त्रेता युग के इस विशाल वन क्षेत्र में ऋषि विश्वामित्र का आश्रम भी था. जहां फूलहर के वाटिका में माता जानकी और प्रभु श्री राम का प्रथम मिलन हुआ था. बिहार सरकार ने 2020 में इस जगह को पर्यटक केंद्र के रूप में मान्यता भी दी.

Madhubani
                                                              Madhubani

Madhubani : पहली बार यहीं मिले थे माता सीता और श्री राम

त्रेतायुग के राजा जनक का राज्य काफी विस्तारित था. उनकी राजधानी जनकपुर में थी. मधुबनी जिला मुख्यालय विशौल से करीब 10 किलोमीटर पश्चिम माता सीता फूल चुनने फुलवारी गिरिजा स्थान नित्य जाया करती थीं. हरलाखी प्रखंड स्थित यह जगह वर्तमान में फुलहर नाम से प्रसिद्ध है. त्रेतायुग में फुलहर गांव स्थित माता गिरिजा मंदिर एवं पुष्पवाटिका का माहात्म्य यह है कि यहीं पर जनक नंदिनी किशोरी और प्रभु श्री राम का प्रथम मिलन हुआ था. प्राचीन ग्रंथ रामचरितमानस के अनुसार माता जानकी प्रतिदिन बागतड़ाग पुष्पवाटिका में फूल तोड़कर माता पार्वती की पूजा करती थीं. ऐसी मान्यता है कि जनक नंदिनी को माता गिरिजा से उनको हर मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद मिला था. जनकपुर के चारों दिशाओं में चार शिव मंदिर थे. पूरब में विशौल, पश्चिम में धनुषा, उत्तर में शिवजनक और दक्षिण में गिरिजा- शिव मंदिर था. ये चारों मंदिर आज भी हैं.

प्रभु श्री राम को ऋषि विश्वामित्र लाए थे यहां

त्रेता युग में राक्षसों द्वारा प्रताड़ित होने पर ऋषि विश्वामित्र ने निर्वाध पूजा-अर्चना के लिए दोनों अवध कुमार भाइयों को लाए. एक दिन विश्वामित्र आश्रम में ठहरे ऋषि विश्वामित्र की पूजा-अर्चना के लिए फूल तोड़ने दोनों अवध कुमार भाई इसी पुष्पवाटिका में पहुंचे. तभी माता जानकी से प्रभु श्रीराम की पहली मुलाकात हुई थी. तब से यह बागतड़ाग प्रभु श्रीराम व माता जानकी के प्रथम मिलन स्थलों के रूप में जाना जाता है. इस जगह से लोगों की आस्था जुड़ी है. वर्ष 2020 में बिहार सरकार द्वारा इस स्थान को पर्यटन केंद्र के रूप में मान्यता भी दी गई है. यहां के पुजारी बिहारी पाण्डे हैं. उन्होंने बताया की यहां बागतड़ाग के नाम से प्रसिद्ध एक तालाब है, जिसका उल्लेख रामचरितमानस के बाल कांड में मिलता है.

ये भी पढ़ें :  Education Minister Chandrashekhar बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर हटाये गये, भेजे गये गन्ना…

त्रेतायुग में मिथिला के राजा जनक के न्योता पर धनुष यज्ञ में शामिल होने के लिए ऋपि विश्वामित्र अपने दोनों शिष्य राम व लक्ष्मण के साथ जनकपुरधाम पधारे थे. तब राजा जनक ने ऋषि विश्वामित्र और दोनों अवध कुमारों को यहीं ठहराया था. उस समय यह सुंदर सदन राजा जनक के राज्य में सुखदायी भवन हुआ करता था. तब से यह भवन विश्वामित्र आश्रम के रूप में जाना जाने लगा. यहां आज भी विशाल राम दरबार के साथ राधा-कृष्ण, शिवलिंग और ऋषि विश्वामित्र समेत विभिन्न देवी देवताओं की प्रतिमा श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है. आश्रम के महंत व स्थानीय लोगों द्वारा यहां समय-समय पर धार्मिक अनुष्ठान कराए जाते हैं..

पूर्वसंध्या पर यहां 5001 दीप जलेंगे

फुलहर पुष्पवाटिका के मंदिर के पुजारी बिहारी पाण्डे के मुताबिक यहां स्थापित शिवलिंग की खासियत रही है, यह सूबे का छठा चहुंमुखी शिवलिंग है. महंत का कहना है कि शिवलिंग नौवीं राताब्दी का है. यहां यजरंज बली की भी प्रतिमा और चरण पादुका भी रखी है. कहा जाता है कि भगवान राम के जहां जहां पग पड़े थे, वहां की मिट्टी को एकत्र कर चरण पादुकर बनाई गई और उन सभी स्थानों पर रखा गया जो श्रीराम से जुड़े हैं. ऋषि विश्वामित्र की प्रतिमा तालाब के जीर्णोद्धार के दौरान मिली थी. यहां एक शिलापट्ट है, जिसे भारत सरकार ने लगवाया है. यह स्थान मधुबनी जिले के हरलाखी प्रखंड के विशौल में पड़ता है. माना जाता है कि विश्वामित्र का ही अपभ्रंश विशौल है. भगवान श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर आश्रम के साधु संतों में काफी उत्साह है. प्राण प्रतिष्ठा के पूर्वसंध्या पर यहां 5001 दीपोत्सव की तैयारी है.

Html code here! Replace this with any non empty raw html code and that's it.

Latest news

Related news