Saturday, July 27, 2024

मुलायम सिंह यादव: किसान के बेटे से राजनीति के धुरंधर बनने की कहानी

समाजवाद का एक सिपाही हमेशा के लिए खामोश हो गया. गरीबों और पिछड़ों के अधिकार की लड़ाई लड़ने वाला एक नेता अब हमारे बीच नहीं रहा. देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री और देश के रक्षा मंत्री रहे समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने लंबी बीमारी के बाद इस दुनिया को अलविदा कह दिया.
कुश्ती के मैदान में अपने चरखा दाव से बड़े-बड़ों को पछाड़ देने वाले मुलायम सिंह यादव राजनीति के मैदान के भी धुरंधर थे. छोटी कठ काठी का ये पहलवान 15 साल की उम्र में जहां कुश्ती के मैदान में अपने से बड़े पहलवानों के छक्के छुड़ा देता वहीं इसका मन इतना मुलायम था कि उसे गरीबों और लाचारी से तकलीफ होती थी. ये ही वजह थी कि मामूली किसान परिवार का ये बेटा समानता और सामाजिक न्याय जैसे बड़े विचारों का सबसे बड़ा पैरोकार बन गया.
1960 के दशक में जब समाजवाद का भारतीय राजनीति में उद्य हो रहा था तब उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव सैफाई का एक लड़का राम मनोहर लोहिया के विचारों से इतना प्रभावित हुआ की उसने दगल को छोड़ राजनीति के अखाड़े में अपने पैर मज़बूती से जमाने का फैसला किया. वह तीन बार देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और दो बार केंद्रीय मंत्री पहली बार जेपी आंदोलन के बाद बनी सरकार में वो सहकारिता और पशुपालन मंत्री थे. जबकि दूसरी बार देवगौड़ा सरकार में वो रक्षा मंत्री रहें.
22 नवम्बर, 1939 को उत्तर प्रदेश के इटावा के एक गांव सैफई में मुलायम सिंह का जनम हुआ. उनके पिता का नाम सुधर सिंह था और उनकी माता का नाम मूर्ति देवी था. मुलायम सिंह के चार भाई हैं रतन सिंह, अभयराम सिंह, शिवपाल सिंह यादव, रामगोपाल सिंह यादव और कमला देवी हैं.
मुलायम सिंह यादव ने दो विवाह किए पहला विवाह मालती देवी के साथ हुआ था. जिनके पुत्र है अखिलेश यादव. अखिलेश यादव के बचपन में ही मालती देवी का स्वर्गवास हो गया. इसके बाद मुलायम सिंह यादव ने दूसरा विवाह साधना गुप्ता से किया , जिनके पुत्र हैं प्रतीक यादव.
बात अगर मुलायम सिंह यादव की शिक्षा की करें तो उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए. और जैन इन्टर कालेज, करहल (मैनपुरी) से बी. टी. की डिग्री प्राप्त की थी. इसके बाद उन्होंने कुछ समय तक इन्टर कॉलेज में बतौर शिक्षक काम भी किया.
मुलायम सिंह के पिता उन्हें पहलवान बनाना चाहते थे. मुलायम सिंह ने कुश्ती के मैदान से ही राजनीति के मैदान में कदम रखा. अपने राजनीतिक गुरु नत्थूसिंह को मैनपुरी में आयोजित एक कुश्ती प्रतियोगिता में प्रभावित करने के बाद मुलायम सिंह ने नत्थूसिंह के परम्परागत विधान सभा क्षेत्र जसवन्त नगर से पहली बार चुनाव लड़ा और जीत गए.
1989 में जब जनता दल जीती और सरकार का गठन होने वाला था, तो उस समय मुख्यमंत्री पद के दो उम्मीदवार थे – मुलायम सिंह और अजित सिंह। मुलायम सिंह जनाधार वाले नेता थे, जबकि अजित सिंह अमेरिका से लौटे थे. चौधरी चरण सिंह के बेटे. कहा जाता है कि विश्वनाथ प्रताप सिंह हर हाल में अजित सिंह को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे. लेकिन किस्मत मुलायम सिंह के साथ थी. पहली बार वो 1989 में मुख्यमंत्री बने. लेकिन पार्टी में अजीत सिंह को नेता बनाने के लिए खींचतान जारी थी. जिससे नाराज़ मुलायम सिंह ने 1992 में अपनी पार्टी समाजवादी पार्टी बनाई. इसके बाद 1993 में वो कांग्रेस के समर्थन से फिर एक बार मुख्यमंत्री बने. लेकिन तीसरी बार 2003 में उनकी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला और वो तीसरी बार मुख्यमंत्री बने.
केंद्रीय राजनीति में मुलायम सिंह का प्रवेश 1996 में हुआ, जब काँग्रेस पार्टी को हरा कर संयुक्त मोर्चा ने सरकार बनाई. कहा जाता है कि उस समय प्रधानमंत्री के रुप में मुलायम सिंह यादव का नाम तय हो गया था. शपथग्रहण की तैयारियां भी हो रही थी. लेकिन आखिरी समय में कर्नाटक के नेता एच. डी. देवेगौडा को प्रधानमंत्री बनाया गया और मुलायम सिंह रक्षा मंत्री बने. कहते है लालू यादव और शरद यादव ने मुलायम सिंह का खेल बिगाड़ा था.
धरती पुत्र के नाम से मशहूर मुलायम सिंह यादव वैसे तो उत्तर प्रदेश में यादव समाज के सबसे बड़े नेता थे. लेकिन 1992 में बाबरी मस्जिद टूटने के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में आए सांप्रदायिक बंटवारे ने मुलायम सिंह को राज्य के मुस्लिमों का नेता भी बना दिया. अल्पसंख्यकों के लिए उनके प्रेम के चलते उन्हें “मौलाना मुलायम” का नाम भी दिया गया. वैसे तो अपने राजनीति जीवन में मुलायम सिंह यादव ने अनको दमदार भाषण दिए लेकिन वर्ष 2012 में, दिल्ली गैंग रेप की घटना के बाद दिया उनका विवादास्पद बयान उनकी और उनकी पार्टी की पहचान बन गया. मुलायम सिंह ने कहा था कि – “लड़के हैं, गलती हो जाती हैं.”
मुलायम सिंह यादव 3 दशक से ज्यादा राजनीति में सक्रिय रहे. उनकी राजनीति को तीन हिस्सों में बांट के देखा जा सकता है. पहली थी गरीब और पिछडों के नेता की छवि, दूसरी मुसलमानों के दोस्त और तीसरी बीजेपी के करीबी. कहा जाता है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मुलायम सिंह की घनिष्ठता उन्हें बीजेपी के करीब ले गई थी.

जिंदगी के हर उतार चढ़ाव के बीच राजनीति में 30 साल से ज्यादा का सफर करने वाले मुलायम सिंह की कहानी मामूली नहीं रही. जहां उन्होंने जनता का बेशुमार प्यार पाया वहीं जाति के नाम पर समाज को बांटने के आरोप भी सहे. मंडल-कमंडल के खेल में कभी वो राजनीति के शिकार हुए तो कभी शिकारी बनकर सामने आए. मुलायम के सक्रिय राजनीति में रहते बीजेपी के लिए उत्तर प्रदेश की राह कतई आसान नहीं रही. प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंच उससे चूक जाने वाला ये नेता….देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की राजनीति का सितारा ही नहीं था. बल्कि गठबंधन सरकारों के दौर में देश की राजनीति का केंद्र भी रहा.

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