सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बांड (ईबी) योजना की वैधता का बचाव करते हुए केंद्र सरकार ने कहा कि, नागरिकों के पास ये मौलिक अधिकार नहीं है कि राजनीतिक फंडिंग के स्रोतों के बारे में उन्हें जानकारी दी जाए. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में न्यायिक समीक्षा पर ही सवाल उटाते हुए कहा कि, न्यायिक समीक्षा का मकसद बेहतर या अलग नुस्खे सुझाना और राज्य की नीतियों को स्कैन करने के बारे में नहीं है.
सरकार ने कोर्ट में चार पन्नों की लिखित जवाब दिया
चार पन्नों की लिखित प्रस्तुति में, अटॉर्नी जनरल (ए-जी) आर वेंकटरमणी ने इस बात पर जोर दिया कि ईबी योजना योगदानकर्ता को गोपनीयता का लाभ देती है.
ए-जी की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के सामने पेश की गई दलीलों में कहा गया कि “यह कर दायित्वों का पालन सुनिश्चित करता है. इस प्रकार, यह किसी भी मौजूदा अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है. एक संवैधानिक अदालत राज्य की कार्रवाई की समीक्षा केवल तभी करती है जब वह मौजूदा अधिकारों का उल्लंघन करती है, न कि इसलिए कि राज्य की कार्रवाई ने संभावित अधिकार या कोई अपेक्षा प्रदान नहीं की है, चाहे वह कितनी भी वांछनीय क्यों न हो,”
31 अक्तूबर को चुनावी बांड पर सुनवाई होगी शुरू
भारत के मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ और इसमें न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बीआर गवई, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा भी शामिल हैं, 31 अक्टूबर को मामले की सुनवाई शुरू करेंगे.
वेंकटरमणि के अनुसार, ईबी योजना किसी भी व्यक्ति के किसी भी मौजूदा अधिकार का उल्लंघन नहीं करती है और इसे मौलिक अधिकारों से संबंधित संविधान के भाग III के तहत किसी भी अधिकार के प्रतिकूल नहीं कहा जा सकता है. ए-जी ने कहा, “ऐसी प्रतिकूलता के अभाव में, योजना अवैध नहीं होगी. जो कानून इतना प्रतिकूल नहीं है उसे किसी अन्य कारण से रद्द नहीं किया जा सकता… कोई कानून इसलिए रद्द नहीं हो जाता क्योंकि वह किसी पहलू को पढ़े जाने या प्रगणित अधिकार के हिस्से के रूप में माने जाने की संभावना का संज्ञान नहीं लेता है. केवल मौजूदा अधिकारों पर ध्यान देने की जरूरत है,”
जनहित याचिकाओं (पीआईएल) के एक समूह का जवाब देते हुए, ”राजनीतिक दलों को अनुदान देने के लिए बनाई गई यह व्यवस्था एक नीतिगत विषय है. सुप्रीम कोर्ट किसी कानून में तभी दखल देता है, जब वह नागरिकों के मौलिक या कानूनी अधिकारों का उल्लंघन कर रहा हो. इस मामले में ऐसा नहीं कहा जा सकता. उल्टे संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(c) के तहत संगठन बनाना और उसे चलाना एक मौलिक अधिकार है, जिसके तहत राजनीतिक दलों को भी अधिकार हासिल है.”
इसमें कहा गया है कि याचिकाकर्ता उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास या उनकी संपत्ति के बारे में जानने के मतदाताओं के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों के साथ तुलना नहीं कर सकते क्योंकि ऐसी जानकारी नागरिकों की दोषमुक्त उम्मीदवारों को चुनने की पसंद का एक विशिष्ट उद्देश्य प्रदान करती है.
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