Friday, November 22, 2024

Karnataka Election 2023: कर्नाटक में क्या मोदी-शाह की जोड़ी के खिलाफ हो रही है बगावत?

कर्नाटक बीजेपी में भगदड़ मची है. टिकट न मिलने से नाराज़ एक के बाद एक नेता कांग्रेस का दामन थाम रहे है. हालत ये है कि बीजेपी के मजबूत वोट बैंक लिंगायत समुदाय के दो बड़े नेता कर्नाटक के पूर्व उपमुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी और पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार टिकट नहीं मिलने से नाराज़ होकर कांग्रेस का हाथ मजबूत करने पहुंच गए है.

जानिए कौन और कितने महत्वपूर्ण थे पार्टी छोड़ने वाले शेट्टर?

कर्नाटक लोकसभा चुनाव के लिए मतदान अगले महीने 10 तारीख यानी 10 मई को होगा. मतदान में 22 दिन बचे है और बीजेपी अब अपने नेताओं को ही मनाने में लगी है. शुक्रवार यानी 14 अप्रैल को लिंगायत समुदाय के बड़े नेता और कर्नाटक में बीजेपी के पूर्व उपमुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया था. और अब पूर्व मुख्यमंत्री रहे जगदीश शेट्टर ने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता कबूल कर ली है.

जनसंघ से जुड़ा शट्टर का परिवार हमेशा से बीजेपी और संघ का विश्वासपात्र रहा है. शेट्टार के चाचा सदाशिव शेट्टार जनसंघ से जुड़े थे. वह हुबली निर्वाचन क्षेत्र से 1967 में कर्नाटक विधानसभा के लिए चुने गए थे. जगदीश के पिता एसएस शेट्टार हुबली-धारवाड़ नगर निगम में पांच बार पार्षद रहे और दक्षिण भारत के किसी भी शहर के पहले जनसंघ मेयर के रूप में कार्य किया. शेट्टर के बीजेपी छोड़ने के साथ हुबली में तो बीजेपी को नुकसान होगा ही लेकिन उसकी धारवाड़ की सीट भी फंस गई है जहां से प्रल्हाद जोशी उम्मीदवार है. जोशी जो ब्राह्मण उम्मीदवार है उन्हें जीत के लिए शेट्टर के लिंगायत वोटों की बहुत जरूरत होती है.

जानिए कौन है लक्ष्मण सावदी ?

शेट्टर से पहले शुक्रवार को कर्नाटक के सबसे शक्तिशाली लिंगायत नेताओं में से एक लक्ष्मण सावदी जो पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के वफादार माने जाते हैं ने पार्टी को अलविदा कहकर कांग्रेस का दामन थाम लिया था. सवादी तीन बार 2004, 2008 और 2013 में कर्नाटक की अथानी विधानसभा सीट जीती है. वह 2018 के चुनावों में कांग्रेस के महेश कुमथहल्ली से सीट हार गए थे. हलांकि इसके बाद भी उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया गया था क्योंकि 2019 में, कांग्रेस-जनता दल सेक्युलर गठबंधन सरकार के गिराने में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी. इसे के चलते लक्ष्मण सावदी को तब उपमुख्यमंत्री के पद से पुरस्कृत किया गया था. क्योंकि इसी के बाद कर्नाटक में बीजेपी सत्ता में आ पाई थी. हलांकि ये तो दो बड़े नाम है लेकिन विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी का दमन छोड़ने वालों की लिस्ट लम्बी है. इसमें Ex MLA डी पी नारीबोल, MLA एमपी कुमारस्वामी, MLA रामप्पा लमानी, MLA गुलिहट्टी शेखर, MLC शंकर आर, मंत्री एस अंगारा और येदियुरप्पा के करीबी डॉ. विश्वनाथ शामिल है.

क्या बीजेपी के लिए बंद हो जाएगा दक्षिण का इकलौता द्वार?

यानी कर्नाटक जो बीजेपी के लिए दक्षिण का इकलौता प्रवेश द्वार है जहां बीजेपी अपने दम पर मजबूत थी इस बार वो भी मुश्किल में पड़ता नजर आ रहा है. बीजेपी अगर कर्नाटक हार जाती है तो उत्तर भारत और उत्तर पूर्वी राज्यों की पार्टी रह जाएगी. उसका पूरे देश में काबिज़ होने का सपना दक्षिण के लिए लगभग खत्म हो जाएगा.

क्या कर्नाटक में बगावत मोदी-शाह की सत्ता को चुनौती है?

मामला सिर्फ इतना नहीं है. कर्नाटक में बीजेपी कई मोर्चे पर फंस गई है. जैसे यहां हो रही बगावत को मोदी की सत्ता को चुनौती के तौर पर भी देखी जा रहा है. कहा जा रहा है कि राज्य बीजेपी इकाई की नाराजगी इस बात को लेकर भी है कि अमित शाह यहां गुजरात के मॉडल पर चुनाव लड़ना चाहते है. पार्टी ने इसके लिए पहले येदियुरप्पा को अपने पाले में किया और फिर उन्हें जिम्मेदारी दी की दो से ज्यादा बार जीते प्रत्याशियों को इस बार टिकट नहीं दिया जाएगा. लॉजिक ये था कि लोग उनसे नाराज़ है. जबकि 2 से ज्यादा बार जीते लोगों को तो जनता देखना भी नहीं पसंद करती. हलांकि राज्य के नेताओं को अमित शाह का ये फॉर्मूला पसंद नहीं आया. यानी सीधे तौर पर नेता मोदी-अमित शाह के फैसलों के खिलाफ बगावत कर रहे है. दूसरा जो पेंच यहां फंसा है वो है 40% की सरकार का.

पीएम मोदी तक की गई थी 40 प्रतिशत धूस लिए जाने की शिकायत

तो जो लोग नहीं जानते उनको ये बता दे कि कर्नाटक में भ्रष्टाचार का ये आलम है कि यहां कि सरकार को 40% की सरकार कहा जाने लगा है. पिछले साल कांग्रेस ने PayCM और 40% सरकार कर के एक कैंपेन भी चलाया था. यूपीआई कंपनी पेटीएम की तर्ज पर मुख्यमंत्री का चेहरा QR code के साथ लगा PayCM के पोस्टर पूरे कर्नाटक में लगाए गए थे. यानी जिस भ्रष्टाचार के चलते बीजेपी ने येदियुरप्पा से पीछा छुड़ाया था उस भ्रष्टाचार से बोम्मई भी अपना दामन नहीं बचा पाए. 12 अप्रैल 2022 को उडुपी के एक लॉज में ठेकेदार संतोष के पाटिल की आत्महत्या और उनके व्हाट्सऐप संदेश में लगाए आरोपों ने सिर्फ कर्नाटक के ग्रामीण विकास और पंचायत राज (आरडीपीआर) मंत्री केएस ईश्वरप्पा पर को ही भ्रष्टाचार के आरोपों में नहीं घेरा बल्कि मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई भी इसकी चपेट में आ गए. ठेकेदारों के संघ ने प्रधानमंत्री को भी 40% प्रतिशत घूसखोरी को लेकर पत्र लिखा लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा. इसलिए बीजेपी जो अकसर विपक्षियों को चोर और बेईमान बताती है यहां वो खुद चोर और बेईमान है. ये ही वजह है कि कांग्रेस की राज्य इकाई यहां अडानी मामले से ज्यादा राज्य के भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठा रही है. यानी जब मोदी जी यहां आएंगे तो क्या कहेंगे उनकी पार्टी यहां सर से पांव तक भ्रष्टाचार में डूबी है.

बीजेपी में हुए दल बदल से कांग्रेस ने लगाई लिंगायत वोट में सेंध

वैसे कर्नाटक को जानने वाले जानते है कि कर्नाटक में सबसे ज्यादा जो चलता है वो है जाति समीकरण. माना जाता है कि बीजेपी की असली मज़बूती कर्नाटक में इसकी लिंगायत समुदाय के वोटों पर पकड़ है. तो अब जाति समीकरण की बात भी कर ली जाए. वैसे कर्नाटक की राजनीति में लिंगायत और वोक्कालिगा दो ऐसे फैक्टर है जिन्हें किंग मेकर कहा जाता है. लिंगायत और वोक्कालिगा दो जो 17 और 15 प्रतिशत आबादी का हिस्सा है मिलकर 224 विधानसभा सीटों में से 185 सीटो पर प्रभावशाली मतदाता माने जाते है. वहीं सिद्धारमैया के AHINDA (अहिन्दा अल्पसंख्यक, दलितों और पिछड़ी जातियां के लिए कन्नड़ संक्षिप्त नाम) आबादी का 65 प्रतिशत से ज्यादा है इसके साथ ही अपने पिछले कार्यकाल में सिद्धारमैया ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018 की घोषणा की पूर्व लिंगायतवाद को अल्पसंख्यक का दर्जा देने के लिए केंद्र को एक प्रस्ताव भेजा था- सिद्धारमैया के इस कदम को मास्टर स्ट्रोक कहा गया था. क्योंकि लिंगायत समुदाय की ये लंबे समय से चली आ मांग रही है. इसके अलावा डीके शिवकुमार कांग्रेस के वोक्कालिगा समुदाय के सबसे बड़े चेहरे है. मतदान के एक महीने पहले तक कांग्रेस के पास लिंगायत वोट नहीं थे. लेकिन अब सावदी और शेट्टर के आने से माना जा रहा है कि ये वोट बैंक बीजेपी और कांग्रेस में बंट जाएगा. यानी डीके शिवकुमार के चलते कांग्रेस जहां वोक्कालिगा समुदाय के वोट पा रही थी अब वो लिंगायत समुदाय के प्रभावशाली वीराशैव-लिंगायत समुदाय के मुख्यमंत्री बसवाराज बोम्मई और लिंगायत समुदाय के सबसे बड़े नेता येदियुरप्पा के बीजेपी में होने के बावजूद लिंगायत वोट में सेंध लगा चुकी है. यानी अगर पहले पूरी ताकत लगाने के बाद भी बीजेपी के पास 16-17 प्रतिशत वोट पक्का है था तो अब वो भी नहीं बचा है.

अमित शाह का नंदनी को लेकर दिया बयान भी बना मुसीबत

यानी कर्नाटक में बीजेपी की राह वैसे ही मुश्किल थी उसपर अमित शाह की एक और गलती ने उसे और मुश्किल कर दिया. चुनाव के पास जहां हिजाब और हलाल को मुद्दा होना चाहिए था वहां यहां कि सरकारी डेयरी यानी नंदनी को लेकर बवाल मचा है. लोग अमित शाह के नंदनी के अमूल विलय को कन्नाडिगा अस्मिता से जोड़ के देख रहे है. कांग्रेस ने भी इसे कन्नाडिगा ब्रेंड पर गुजराती कब्जे की कोशिश बता दिया है. यानी चुनाव के मैनेजमैंट से लेकर चुनाव के मुद्दों तक में मोदी-शाह की गलती यहां बीजेपी को भारी पड़ सकती है. वैसे जानकार कह रहे है कि अगर कर्नाटक निकल गया तो बीजेपी में मोदी शाह के खिलाफ बगावत भी बढ़ सकती है.

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