गुजरात हाई कोर्ट के एक फैसले की चौतरफा चर्चा है. लोग कोर्ट के फैसले पर हैरानी जताने के साथ-साथ ये भी कह रहे है कि जज को पता होना चाहिए की देश का कानून मनुस्मृति से नहीं देश के संविधान से चलता है. असल में कोर्ट ने एक नाबालिग रेप पीड़िता के गर्भ गिराने की अनुमति मांगने वाली याचिका पर ये कहकर सब को हैरान कर दिया कि मनुस्मृति के मुताबिक लड़कियां 17 साल की उम्र तक एक बच्चे को जन्म दे देती थी.
कोर्ट ने क्या कहा?
गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति समीर दवे ने बुधवार को नाबालिग बलात्कार पीड़िता की 29 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि इससे पहले, लड़कियों की शादी कम उम्र में हो जाती थी और 17 साल की उम्र से पहले एक बच्चे को जन्म देती थी. 21वीं सदी से पहले की प्रथाओं का जिक्र करते हुए जज ने यह भी सुझाव दिया कि याचिकाकर्ता के वकील को मनुस्मृति पढ़नी चाहिए.
क्या है मामला?
दरअसल, 16 साल और 11 महीने की उम्र की इस लड़की ने इस महीने की शुरुआत में अपने पिता के माध्यम से याचिका के साथ उच्च न्यायालय का रुख किया था. 16 अगस्त की अपेक्षित डिलीवरी तिथि और 1 किलो से अधिक वजन वाले भ्रूण के साथ, याचिकाकर्ता के वकील ने 7 जून को गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग की थी.
मां-बच्चे की जांच के दिए आदेश
जबकि अदालत ने राजकोट सिविल अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक को अस्थि परीक्षण करते हुए लड़की की तत्काल चिकित्सा जांच करने का निर्देश दिया, इसने मौखिक रूप से कहा कि यदि डॉक्टरों को लड़की और भ्रूण दोनों स्वस्थ पाए जाते हैं, तो वह गर्भ समाप्ति के लिए कोई आदेश पारित नहीं करेगा.
15 जून को होगी अगली सुनवाई
जस्टिस दवे ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 15 जून के तारीख दी है. अपने फैसले में जस्टिस दवे ने कहा, “आम तौर पर, पहली बार संभोग में गर्भावस्था और सात महीने तक एक लड़की का खुलासा नहीं करना, वह कहानी बहुत है … लड़का 23 (वर्ष का) है और भ्रूण है सात महीने से अधिक … यदि गर्भपात के दौरान भ्रूण जीवित रहता है (चिकित्सीय समापन के बाद) तो आप क्या करेंगे? कौन देखेगा?… मैं तुम्हें बच्चे को मारने की अनुमति नहीं दे सकता. कोई नहीं… भ्रूण या लड़की में कोई गंभीर बीमारी होने पर कोर्ट निश्चित रूप से विचार कर सकता है. यदि दोनों सामान्य हैं, तो अदालत के लिए इस तरह का आदेश पारित करना बहुत मुश्किल होगा…”
याचिकाकर्ता के वकील ने दिया लड़की की उम्र का हवाला
इसपर याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को स्पष्ट किया कि चिंता लड़की और उसकी उम्र को लेकर अधिक है. अधिवक्ता ने कहा, “अगर वह 20 से 20 प्लस की होती तो यह एक अलग मामला होता.”
इसपर जस्टिस दवे ने कहा, “क्योंकि हम 21वीं सदी में जी रहे हैं. अपनी मां या परदादी से पूछें… 14-15 साल अधिकतम उम्र है… 17 साल की उम्र तक, उनका पहला बच्चा हो चुका होगा. और लड़कियां लड़कों से ज्यादा मेच्योर होती हैं… 4-5 महीने इधर-उधर से लेकर 18 साल तक कोई मायने नहीं रखता. आपने इसे नहीं पढ़ा है, लेकिन मनुस्मृति जरूर पढ़ें.”
ये भी पढ़ें- Wrestlers Protest: मीडिया में भ्रमक खबरें चलाने से नाराज़ हुए पहलवान, कहा-बृजभूषण की यही ताक़त है