ग्लोबल वार्मिंग: भारत में पिछले कुछ वक्त से हो रही बेमौसम बरसात को लेकर संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने एक बड़ी चिंता ज़ाहिर करते हुए एक बड़े खतरे की ओर इशारा किया है . सयुंक्त राष्ट्र के एक पैनल ने चेतावनी दी है कि अगर ग्लोबल वार्मिंग पर काबू नहीं पाया गया तो भारत के खाद्य उत्पादन में भारी गिरावट आ सकती है.
तापमान में वृद्धि से घट जाएगी फसलों की पैदावार
दरअसल सयुंक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा है कि वह जी20 से वामिर्ंग 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड कम करने के लिए एक समझौते का आग्रह कर रहे हैं. जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने सोमवार को एक रिपोर्ट में कहा,तापमान में 1 से 4 डिग्री सेंटीग्रेड तक की वृद्धि होने पर भारत में चावल का उत्पादन 10 से 30 प्रतिशत तक घट सकता है, जबकि मक्के का उत्पादन 25 से 70 प्रतिशत तक घट सकता है.
गुटेरेस ने कहा कि उन्होंने भारत के नेतृत्व वाले जी20 को एक जलवायु एकजुटता संधि का प्रस्ताव दिया है, इसमें सभी बड़े उत्सर्जक उत्सर्जन में कटौती के लिए अतिरिक्त प्रयास करते हैं, और अमीर देश उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं को तापमान को 1.5 डिग्री तक कम करने के लिए वित्तीय और तकनीकी मदद करते हैं.
जलवायु टईम बम की तरह टिक टिक कर रहा है
हालांकि उन्होंने आगाह किया कि जलवायु टाइम बम टिक-टिक कर रहा है. उन्होंने उम्मीद जताई कि आईपीसीसी की रिपोर्ट जलवायु टाइम-बम को डिफ्यूज करने में मददगार साबित हो सकती है. गुटेरेस ने ये भी कहा कि रिपोर्ट से पता चलता है कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड तक नीचे रखा जा सकता है. उन्होंने कहा कि वह क्लाइमेट सॉलिडेरिटी पैक्ट को सुपर-चार्ज करने की योजना पेश कर रहे हैं.
इसके लिए विकसित देशों को 2040 तक विकासशील देशों को 2050 तक कॉर्बन उत्सर्जन को शून्य के स्तर पर लाने की आवश्यकता है. अगर सीधे शब्दों में कहें तो टेरेस की योजना 2035 तक विकसित देशों और 2040 तक दुनिया के बाकी हिस्सों में बिजली उत्पादन में कोयले के उपयोग को शून्य स्तर पर लाना है.
आईपीसीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि जीवाश्म ईंधन के जलने और असमान ऊर्जा के उपयोग के कारण तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.1 डिग्री सेल्सियस पहले ही बढ़ गया है. जिसके चलते काफी तेज़ी से मौसम में बड़े बदलाव आ रहे हैं. गर्मियों में भीषण गर्मी बेमौसम बरसात ठण्ड का जल्द ख़त्म हो जाना . ये तमाम संकेत दुनिया भर के लोगों पर खतरनाक रूप से असर दाल सकते हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत दक्षिण एशिया में फसल उत्पादन के मामले में सबसे कमजोर देश के रूप में उभर रहा है. इसमें कहा गया है कि दक्षिण एशिया में सिंचाई, उद्योग और घरों जैसे क्षेत्रों में पानी की मांग 2010 की तुलना में 2050 के आसपास 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी. वहीं भारत और चीन जैसे देशों में जनसंख्या वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के चलते पानी की कमी बढ़ सकती है. जिसका आने वाली पीढ़ी पर बुरा असर पड़ेगा अगर वक्त रहते इनपर काबू ना पाया गया .