चार दिनों तक चलने वाले छठ महापर्व की शुरुआत नहाय-खाय से हो गई है. इस महापर्व में नदी के घाटों या बहते जल के घाटों का बड़ा महत्व है . इस व्रत को शुरु करने से पहले व्रती गंगा के बहते जल में डुबकी लगाकर भगवान सूर्य से व्रत को पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ करने का संकल्प लेते हैं. गंगा के पवित्र चल को अपने पात्र में भरकर भगवान सूर्य से इस महापर्व को निर्विघ्न पूरा करने के लिए प्रार्थना करते हैं और जल लेकर घर आते हैं. ब्रह्मांड के साक्षात प्रकाश पूंज भगवान सूर्य जो इस धरती पर जीवित हर जीव के जीवन का आधार हैं, उस सूर्य भगवान से व्रती अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं
बिहार-उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े त्योहार छठ पूजा की शुरुआत आज ‘नगाय-खाय’ के हो गई है.भगवान सूर्य को समर्पित इस त्योहार के लिए नदी के किनारे सुबह से ही व्रती अपनी शुद्धि और अपने परिजनों की मंगल कामना के साथ घाटों पर स्नान कर जल लेकर अपने अपने घरो के ओर जा रहे हैं. #ChhathPuja pic.twitter.com/DYHx4zGHrA
— THEBHARATNOW (@thebharatnow) October 28, 2022
खरना पूजन
छठ पूजा के लिए नहाय खाय के बाद सबसे खास होता है खरना पूजन
इस दिन व्रती अपने घरों में मिट्टी के चूल्हे या छठ पूजा के लिए तैयार किये गये चूल्हे पर गुड़ की खीर और केले के साथ केले के पत्ते पर प्रसाद अर्पित कर सूर्य देव की आराधना करते हैं और दिन भर के उपवास और खरना पूजन के बाद अन्न ग्रहण करते हैं. ये पूजा का दूसरा दिन है.
पहला अर्ध्य(अरग )
तीसरे दिन सूर्य देव को अर्ध्य देने के लिए बांस के सूप , टोकरी या फिर पीतल के सूप में नारियल केला समेत जितने संभव हो उतने फलों और मिष्ठान के साथ सूप तैयार किया जाता है. छठ पूजा में सूपों के रखने के लिए जो मिष्ठान होते हैं वो खास तौर से घरों में ही तैयार किया जाये हैं. आटे और गुड़ से बना ठेकुआ, चावल के आटे से बने कसार(लड्डू) और फल इत्यादि. छठ पूजा में शुद्धता का खास ख्याल रखा जाता है इसलिए इसमे बाजार से खरीदी गई मिठाइयां नहीं चढ़ाई जाती हैं. घरों में तैयार मिष्ठान ही प्रसाद के तौर पर भगवान के अर्पित का जाते हैं.
प्रसाद तैयार करने के बाद सूप सजाया जाता है. छठ पूजा में खास तौर पर बांस की बनी टोकरी और सूप प्रयोग किये जाते हैं .भारतीय संस्कृति में हरे बांस को समृद्धि का प्रतीक माना जाता है इसलिए छठ पूजा में बांस की टोकरी,डाला,सूप इत्यादि का बेहद महत्व है.
सूप सजाने के बाद व्रती इसे लेकर छठ घाट तक पहुंचते हैं, फिर अस्ताचलगामी सूर्य को अरग (अर्ध्य ) दिया जाता है. व्रती और परिजन इस मनोकामना के साथ डूबते हुए सूरज को जल चढ़ाते है कि सूर्य देव जाते जाते जीवन के सारे कष्ट अपने साथ लेकर जायें और अगले दिन नए दिन की शुरुआत के साथ जीवन को नए उजाले की ओर लेकर जाने में अपनी रोशनी से मार्ग प्रशस्त करें.
छठ पूजा का चौथा औऱ आखिरी दिन
महापर्व के चौथे और आखिरी दिन उगते हुए सूरज को जल चढ़ाने के साथ ये व्रत पूरा हो जाता है, फिर व्रती अपने हाथों से सभी को प्रसाद देते हैं. इस दिन घर में बने आटे और गुड़ से बने ठेकुए और फलों का प्रसाद खासतौर से बांटा जाता है.