Sunday, July 6, 2025

चार महीने तक नहीं होंगी शादियां, न ही गृह प्रवेश, चातुर्मास शुरू

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यह अवधि भगवान विष्णु की योगनिद्रा का समय मानी जाती है, जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी (2 नवंबर 2025) तक चलती है. इस दौरान सभी मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है, और जीवन में संयम, साधना और सात्विकता का पालन किया जाता है.

क्या है चातुर्मास?
वैदिक ज्योतिष और वास्तु विशेषज्ञ आदित्य झा के अनुसार चातुर्मास का अर्थ है "चार महीने" — यह वह समय होता है जब भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दौरान समस्त ब्रह्मांड की व्यवस्था भगवान शिव के संरक्षण में चलती है. यह काल आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद और आश्विन — इन चार मासों में विभाजित होता है, और इसे तप, त्याग और आत्मशुद्धि का समय माना जाता है.

इन मांगलिक कार्यों पर लगती है रोक
आदित्य झा के अनुसार चातुर्मास के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता. विशेष रूप से विवाह और सगाई, गृहप्रवेश, मुंडन और नामकरण संस्कार, नए व्यापार, प्रोजेक्ट या योजनाओं की शुरुआत, ज्योतिषीय दृष्टिकोण से भी इस काल को स्थिरता के लिए अनुपयुक्त माना जाता है. ग्रहों की स्थिति मानसिक और भावनात्मक असंतुलन पैदा कर सकती है.

भोजन और जीवनशैली में रखें संयम
चातुर्मास का एक बड़ा पहलू है खान-पान में शुद्धता और संयम. धार्मिक शास्त्रों के अनुसार इस समय सात्विक और शुद्ध भोजन करना चाहिए. प्याज, लहसुन, मांसाहार, अंडा, शराब, अत्यधिक तला-भुना और मसालेदार भोजन इन चीजों से परहेज करें, यह समय शरीर को शुद्ध करने, इंद्रियों को नियंत्रित करने और साधना के लिए मन को केंद्रित करने का अवसर है.

क्या करें इस दौरान?
चातुर्मास केवल वर्जनाओं का समय नहीं, बल्कि आत्मसुधार और साधना का भी अवसर है. इस दौरान इन कार्यों को प्राथमिकता दें,

  • नियमित पूजा, ध्यान और मंत्र जाप
  • भगवद्गीता, विष्णु सहस्रनाम, रामायण जैसे ग्रंथों का पाठ
  • जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, और दान देना
  • मन, वाणी और कर्म में संयम रखना

कब तक चलेगा चातुर्मास?

  • आरंभ: 6 जुलाई 2025 (देवशयनी एकादशी)
  • समापन: 2 नवंबर 2025 (प्रबोधिनी एकादशी)

प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं, और शुभ कार्यों की फिर से शुरुआत होती है. इसी दिन से धार्मिक रूप से विवाह और अन्य संस्कार पुनः आरंभ किए जाते हैं.

आध्यात्मिक दृष्टि से चातुर्मास का महत्व
चातुर्मास का उद्देश्य केवल धार्मिक नियमों का पालन करना नहीं, बल्कि अपने जीवन में स्थायित्व, अनुशासन और अध्यात्म को विकसित करना है. ऋषियों और मुनियों की परंपरा में यह समय आत्मनिरीक्षण, स्वाध्याय और तपस्या के लिए समर्पित होता था.

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