राजनीति में काले धन पर लगाम लगाने के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू को एक खत लिखा है. खत में गुमनाम राजनीतिक चंदे की रकम को 20,000 रुपये से घटाकर 2000 रुपये करने का प्रस्ताव भेजा है.
बताया जा रहा है कि सीईसी ने अपने खत में प्रतिनिधित्व अधिनियम में कई संशोधन करने की सिफारिश भी की है. सीईसी ने कानून मंत्री को लिखे अपने खत में राजनीतिक दलों के चंदे से विदेशी चंदे को भी अलग करने का प्रस्ताव किया है
नकद चंदे की रकम 20 हज़ार से 2 हज़ार रुपये करने का प्रस्ताव
चुनाव आयोग ने कालाधन के राजनीति में इस्तेमाल को रोकने के लिए पार्टियों को मिलने वाले नकद बेनामी चंदे की रकम को घटाकर 2000 रुपये करने का प्रस्ताव भेजा है. फिलहाल ये रकम 20,000 रुपये है. सरकार अगर ये प्रस्ताव मान लेती है तो राजनीतिक दलों को 2 हज़ार से ज्यादा नकद में मिले चंदे का हिसाब चुनाव आयोग को देना होगा.
Chief Election Commissioner (CEC), Rajiv Kumar writes a letter to law ministry to cap the cash donations to political parties. In his letter written to Union law Minister Kiren Rijiju, CEC proposed to cap cash donation at 20 percent or at Rs 20 crore whichever is lower
— ANI (@ANI) September 20, 2022
विदेशी फंड की भी अलग से देनी होगी जानकारी
चुनाव आयोग ने अपने प्रस्ताव में राजनीतिक दलों को विदेश से मिलने वाले चंदे पर भी अपनी राय दी है. चुनाव आयोग ने सरकार से सिफारिश की है कि सरकार राजनीतिक दलों के विदेशी चंदे और देसी चंदे की जानकारी अलग-अलग देने के लिए भी कानून बनाए. इसके अलावा प्रस्ताव में कहा गया है कि राजनीतिक दलों को 20,000 रुपये या उससे ज्यादा के नकद चंदे
की जानकारी चुनाव पर नज़र रखने वाली संस्थाओं (पोल वॉचडॉग) को देना होगा, इस जानकारी में वह संस्था का नाम भी बताना होगा जिसने ये चंदा दिया है.
इलेक्टोरल बॉन्ड पर खामोश है चुनाव आयोग
एक तरफ जहां चुनाव आयोग छोटा चंदा देने वालों पर अपना शिकंजा कसता नज़र आ रहा है वहीं वो बड़े उद्योग घरानों से मिलने वाले राजनीतिक चंदे पर चुप है. चुनाव आयोग के अनुसार नकद चंदे में 20,000 रुपये की रकम कालेधन को बढ़ावा देती है इसलिए उसे घटा देना चाहिए लेकिन उसके विपरीत वह करोड़ों रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड की ख़रीद पर कुछ नहीं कहता जो पूरी तरह बेनामी है.
चुनाव आयोग के प्रस्ताव के निशाने पर है छोटे दल
चुनाव आयोग के प्रस्ताव का सबसे बड़ा असर क्षेत्रीय और छोटे राजनीतिक दलों को होगा. फिलहाल जिस तरह के आरोप सरकार पर लग रहे है कि वह ईडी का इस्तेमाल विपक्षी दलों के करीबी लोगों के खिलाफ कर रही है. उसमें अगर ये प्रस्ताव मंजूर हो जाता है तो छोटे कारोबारी या राजनीतिक दल के समर्थक अपनी पसंद की पार्टी को चंदा देने से बचेंगे. जिसका मतलब ये होगा की करोड़े के कैंपेन के ज़माने में छोटे दलों के लिए मामूली प्रचार भी मुश्किल हो जाएगा.