Electoral bonds: भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) ने गुरुवार को इलेक्टोरल बॉन्ड Electoral bonds ख़रीदने वाली राजनीतिक पार्टियों के नामों का डेटा जारी कर दिया है. भारत के सबसे बड़े कमर्शियल बैंक SBI ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद 12 मार्च को ECI को चुनावी बांड के खरीदार का डेटा दे दिया था.
चुनावी बांड के खरीदार की जानकारी को निर्वाचन आयोग दो हिस्सों में जारी किया है. पहले हिस्से के 336 पन्नों में उन कंपनियों के नाम हैं जिन्होंने बॉन्ड ख़रीदा है और उसकी राशि की जानकारी भी दी गई है वहीं दूसरे हिस्से में 426 पन्नों में राजनीतिक दलों के नाम हैं और उन्होंने कब कितनी राशि के इलेक्टोरल बॉन्ड कैश कराए उसकी जानकारी दी गई है.
Electoral bonds के जरिये किस पार्टी को मिला कितना चंदा?
किस पार्टी को सबसे ज्यादा चुनावी चंदा मिला, वहीं दूसरे और तीसरे नंबर पर कौन-सी पार्टी रही, ये सवाल अब हर किसी के मन में उठ रहा है. ECI के द्वारा जारी डेटा के मुताबिक, बीजेपी सबसे ज्यादा चुनावी चंदा हासिल करने वाली पार्टी है. बीजेपी को 60 अरब से ज्यादा का चंदा मिला. हालांकि, दूसरे नंबर पर देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस नहीं है. इस मामले में दूसरे नंबर पर ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस है, जिसने 16 अरब रुपये से अधिक के इलेक्टोरल बॉन्ड को इनकैश किया है. तीसरे नंबर पर कांग्रेस रही जिसे, 14 अरब रुपये मिले. इसके बाद भारत राष्ट्र समिति ने 12 अरब रुपये और बीजू जनता दल ने 7 अरब रुपये से अधिक के चुनावी बॉन्ड को इनकैश किया है. इस मामले में पाँचवें और छठे नंबर पर दक्षिण भारत की पार्टियां डीएमके और वाईएसआर कांग्रेस रहीं.
किस कंपनी ने खरीदे कितने इलेक्टोरल बॉन्ड?
वहीं सबसे अधिक कीमत के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाली कंपनियों में फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज़ के बाद मेघा इंजीनियरिंग एंड इनफ़्रास्ट्रक्चर्स लिमिटेड दूसरे नंबर पर है. फ़्यूचर गेमिंग ने कुल 1368 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे थे. वहीं मेघा इंजीनियरिंग ने 966 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे. चौंकाने वाली बात ये है कि, जिस कंपनी के खिलाफ मार्च, 2022 में ED ने धन शोधन के मामले में जांच की थी, उस फ़्यूचर गेमिंग कंपनी ने 1350 करोड़ रुपये के चुनावी बांड का राजनीतिक पार्टी को चंदा दिया.
वहीं, गाजियाबाद स्थित यशोदा सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल ने 162 बांड खरीदे, जिनमें से ज्यादातर 1 करोड़ रुपये के थे. बजाज ऑटो ने 18 करोड़, बजाज फाइनेंस ने 20 करोड़, इंडिगो की कंपनियों ने 36 करोड़, स्पाइसजेट ने 65 लाख रुपये और इंडिगो के राहुल भाटिया ने 20 करोड़ रुपये के बांड खरीदकर राजनीतिक दलों को दिया. इतना ही नहीं, क्विक सप्लाई चेन प्राइवेट लिमिटेड ने 410 करोड़ रुपये और हल्दिया एनर्जी ने 377 करोड़ रुपये के बांड खरीदे.
क्या है पूरा मामला?
आपको बता दें कि, इसी साल 15 फ़रवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया था. इसके साथ ही शीर्ष कोर्ट ने SBI को निर्देश दिया था कि अप्रैल 2019 से लेकर अब तक खरीदे गए इलेक्टोरल बॉन्ड का डेटा 6 मार्च 2024 तक चुनाव आयोग को दे. SBI इलेक्टोरल बॉन्ड बेचने वाला अकेला अधिकृत बैंक है.
क्या थी एसबीआई की याचिका?
हालांकि, छह मार्च आने से पहले ही एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर के जानकारी देने की तारीख़ को बढ़ाकर 30 जून करने की मांग की थी. लेकिन 11 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई की ये याचिका खारिज कर दी और 12 मार्च तक चुनाव आयोग को डेटा देने को कहा. साथ ही, कोर्ट ने ECI से 15 मार्च की शाम पाँच बजे तक सभी जानकारी वेबसाइट पर अपलोड करने के लिए भी कहा था.
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इलेक्टोरल बॉन्ड पर क्यों उठे सवाल?
जानकारी के लिए बता दें कि, इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक ज़रिया है. यह एक वचन पत्र की तरह होता है जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी SBI की चुनिंदा शाखाओं से ख़रीद सकता है और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक पार्टी को गुमनाम तरीक़े से दान कर सकता है. भारत सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा 2017 में की और 29 जनवरी 2018 को इसे लागू कर दिया गया था. भारत सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड देश में राजनीतिक फ़ंडिंग की व्यवस्था को साफ़ करने के की थी. लेकिन पिछले कुछ सालों में ये सवाल बार-बार उठा कि इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए चंदा देने वाले की पहचान गुप्त रखी गई है, इसलिए इससे काले धन रखने वालों को बढ़ावा मिल सकता है. हालांकि, अब सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक बताकर रद्द कर दिया है.