Union Carbide waste इंदौर: मध्य प्रदेश के पीथमपुर स्थित रामकी प्लांट में यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे को जलाने के ट्रायल का दूसरा चरण चल रहा है लेकिन इसपर विवाद बढ़ता जा रहा है. शुक्रवार शाम तक 5.40 टन कचरा जलाया जा चुका था और बोर्ड के मुताबिक सभी उत्सर्जन मानकों के भीतर थे. हालांकि पीथमपुर बचाओ समिति ने इन आंकड़ों को झूठा बताते हुए प्रशासन पर पारदर्शिता की कमी और जनस्वास्थ्य की अनदेखी का आरोप लगाया है. समिति अब हाईकोर्ट में याचिका दायर करने की तैयारी कर रही है.
Union Carbide waste : हर घंटे जला 180 किलो कचरा
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक, भस्मक में हर घंटे 180 किलो जहरीला कचरा जलाया गया. पहले दहन कक्ष का तापमान 905 से 823 डिग्री सेल्सियस था, जबकि दूसरे कक्ष में यह 1213 से 1102 डिग्री सेल्सियस के बीच था. वैज्ञानिकों ने चिमनी से निकलने वाली गैसों की जांच की और दावा किया कि सभी उत्सर्जन मानक सीमा के भीतर थे.
पहली बार सार्वजनिक हुए प्रदूषण के आंकड़े
- इस बार बोर्ड ने लेड, निकेल, आर्सेनिक और अमोनिया जैसी गैसों के आंकड़े भी जारी किए। 24 घंटे में उत्सर्जित गैसों के स्तर के बारे में जारी आंकड़ों के अनुसार:
- पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) – अधिकतम 15.6, औसत 13.73 (मानक 50)
- सल्फर डाइऑक्साइड – अधिकतम 65.0, औसत 51.69 (मानक 200)
- नाइट्रोजन ऑक्साइड – अधिकतम 122.2, औसत 101.22 (मानक 400)
- कार्बन मोनोऑक्साइड – अधिकतम 52.41, औसत 33.91 (मानक 100)
प्रशासन पर लापरवाही का आरोप
पीथमपुर बचाओ समिति ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि बोर्ड के आंकड़े अधूरे और भ्रामक हैं. समिति के अध्यक्ष डॉ. हेमंत कुमार हिरोले ने आरोप लगाया कि बिना वैज्ञानिक विश्लेषण के कचरा जलाया जा रहा है, जिससे स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य को खतरा हो रहा है. समिति ने प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पर तथ्य छिपाने का आरोप लगाया है. समिति का कहना है कि नगर पालिका ने पहले यूनियन कार्बाइड के कचरे को जलाने से रोकने का प्रस्ताव पारित किया था लेकिन प्रशासन ने इसे नजरअंदाज कर दिया. विरोध के बावजूद नगर पालिका के सीएमओ ने दबाव में अनुमति दे दी, जिससे लोगों में रोष है.
समिति की मांगें
दूसरे ट्रायल को तत्काल रोका जाए और वैज्ञानिक अध्ययन के बिना कोई नया ट्रायल न किया जाए. पहले ट्रायल की विस्तृत रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए। मामले की निष्पक्ष जांच के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की जाए. भोपाल गैस पीड़ितों के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण किया जाए. प्रशासन का पक्ष और विपक्ष रिपोर्ट में ऑनलाइन मॉनिटरिंग डेटा शामिल नहीं किया गया. तापमान मानकों के बारे में गलत जानकारी दी गई। पहले ट्रायल से तुलना करने पर बड़ी मात्रा में डेटा छिपाया गया. डीजल के अधिकतम उपयोग से प्रदूषण बढ़ा.