Saturday, July 27, 2024

मुलायम सिंह की राजनीति पर लगा बदनुमा दाग, लखनऊ का गेस्ट हाउस कांड

मुलायम सिंह की जिंदगी फर्श से अर्श तक पहुंचने की कहानी है. ऐसी मिसाल जो लोकतंत्र में आपके विश्वास को पक्का कर देगी. एक गरीब किसान परिवार के बेटे के संघर्ष की दास्तान. कहते है न कोई भी कहानी ब्लैक एंड वाइट नहीं होती, उसके कुछ ग्रे हिस्से होते है. कुछ पन्ने जो पूरी किताब के मायने ही बदल देते है. ऐसा ही एक अध्याय मुलामय सिंह के जीवन में भी है. कुख्यात लखनऊ का गेस्ट हाउस कांड….. वह कांड जो इस गरीबों के मसीहा नेता के कथित लालच और सत्ता की भूख का गवाह है.

उत्तर प्रदेश के धुरंधर, धरती पुत्र और मौलाना मुलायम को तो आप जानते ही होंगे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि मुलायम सिंह के राजनीतिक जीवन में एक ऐसा काला पन्ना भी छुपा है जो कहानी कहता है, मौकापरस्ती, दोस्ती, गठबंधन, सत्ता, धोखा और अपराध की. लखनऊ का गेस्ट हाउस कांड सिर्फ मुलायम सिंह ही नहीं समाजवादी पार्टी और यूपी की सियासत पर लगा बदनुमा दाग़ है. ये वो वक्त था जब बीजेपी राम मंदिर कार्ड के साथ यूपी की राजनीति में अपने पैर जमा रही थी. भावनाओं के भंवर में जाति और समाज छोटे पड़ते नज़र आ रहे थे. भाईचारे के ताने-बने को धर्म के नाम पर फलाई गई नफरत का कीड़ा चाटने लगी था. ऐसे में 6 दिसंबर 1992 को सोलहवीं सदी में बनी बाबरी मस्जिद को कारसेवकों की एक भीड़ ने ढहा दिया. इस घटना से जहां देश में सांप्रदायिक तनाव बढ़, हिंसा हुई वहीं यूपी की राजनीति में इस घटना से अस्थिरता पैदा हो गई. बाबरी विध्वंस के बाद तत्कालीन कल्याण सिंह सरकार जिसने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर बाबरी मस्जिद ढांचे की रक्षा करने की बात कही थी उसे बरखास्त कर दिया गया. इस वक्त सांप्रदायिक भावनाएं उफान पर थी. बीजेपी को भरोसा था कि चुनाव में उसका पल्ला भारी पड़ेगा. लेकिन राजनीति के धुरंधर मुलामय सिंह के पास बीजेपी के इस अति आत्मविश्वास का तोड़ मौजूद था. जहां बीजेपी “जय श्री राम” के नारे के साथ हिंदु समाज को एकजुट करने की कोशिश में थी वहीं समाजवादी पार्टी ने बहुजन समाज पार्टी के काशीराम को संदेश भेजा. संदेश था बीजेपी के हिंदु कार्ड के जवाब में मुसलमान, अति पिछड़ा और दलित समाज के गठजोड़ का. बीएसपी के संस्थापक काशीराम को ये सुझाव समझ आया. और फिर नारा उठा “मिले मुलायम काशी राम हवा में उड़ गए जय श्री राम” इस नारे का असर ये हुआ कि 1993 चुनाव में सच में बीजेपी के होश उड़ गए. यूपी की विधानसभा में 177 सीट पाकर भी बीजेपी सत्ता से हाथ धो बैठी. 109 विधायकों के साथ समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने. कई छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों की मदद से बनी इस सरकार को बीएसपी का बाहर से समर्थन प्राप्त था. बीएसपी नेता मायावती अपने 67 विधायकों के साथ सरकार में तो शामिल नहीं थी, लेकिन उनका दबदबा कुछ ऐसा था की वो सुपर सीएम कहलाती थी. एक साल तो ये गठबंधन अच्छे से चला. जानकार बताते है कि राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियों को क्षेत्रीय दलों का ये गठजोड़ खटकने लगा. नरसिम्हा राव से लेकर अटल विहारी वाजपेयी तक इस गठबंधन से परेशान थे. जानकार बताते है कि बीजेपी ने चोरी छुपे बीएसपी और मायावती पर डोरे डालना शुरु कर दिया था. गठबंधन में वैसे ही मुलायम सिंह और मायावती के सितारे मिल नहीं रहे थे. ऐसे में मुलायम सिंह को बीजेपी की चोरी की खबर लग गई. फिर हुआ वो जो किसी ने सोचा नहीं था. सत्ता के जाने के डर से घबराए मुलायम सिंह का ये दाव उनके राजनीतिक जीवन का कलंक साबित हुआ.

2 जून 1995 की शाम, लखनऊ के मीरा बाई रोड स्थित गेस्ट हाउस में बीएसपी नेता मायावती अपने विधायकों और नेताओं के साथ मीटिंग कर रही थी. मीटिंग को शुरु हुए कुछ देर ही हुई थी कि गेस्ट हाउस के बाहर से हंगामे की आवाज़ें आने लगी. शोर बढ़ता गया और फिर वो वक्त आया जब गेस्ट हाउस के बाहर जमा हुए तकरीबन 200 समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता और विधायक गेस्ट हाउस में घुस गए. उनके निशाने पर थे बीएसपी के विधायक और उनकी नेता मायावती. एसपी कार्यकर्ताओं की भीड़ बीएसपी विधायकों पर टूट पड़ी, मार-पीट और धक्का-मुक्की के बीच मायावती भी फंस गई. लेकिन बीएसपी विधायकों ने अपनी नेता को किसी तरह वहां से निकाल गेस्ट हाउस के एक कमरे में बंद कर दिया. कहा जाता है कि इस बीच बीएसपी विधायकों की ओर से पुलिस को कई फोन भी किए गए. लेकिन पुलिस और सरकार दो अलग-अलग थोड़ा ही होते हैं. इस बीच एसपी कार्यक्रताओं की भीड़ उस कमरे तक भी पहुंच गई जहां मायावती बंद थी. दरवाज़ा पीटा जाने लगा, गालियां और जाति सूचक शब्द कहें गए. मायावती घबराई हुई थी. उन्होंने और उनके साथ बंद दो विधायकों ने दरवाजे के आगे टेबल और कुर्सियों का पहाड़ लगा दिया. वो जमान मोबाइल का नहीं था लेकिन बड़े लोगों के पास पेजर पहुंच गया था. उसी वक्त मायावती के पेजर पर एक मैसेज आया. उसमें लिखा था “दरवाज़ा मत खोलना” हंगामा तबतक जारी रहा जबतक इलाके के एसपी और डीएम मौके पर नहीं पहुंचे. पुलिस ने मायावती को गेस्ट हाउस ने निकाला लिया. कहा जाता है मायावती की मदद के लिए जो अधिकारी सामने आए थे उनके नाम थे- विजय भूषण, सुभाष सिंह बघेल, एसपी राजीव रंजन. इनके अलावा मायावती के मददगारों में बीजेपी के ब्रह्म दत्त त्रिवेदी और लाल जी टंडन का भी नाम लिया जाता है.
इस गेस्ट हाउस कांड का असर ये हुआ की मुलायम सिंह सत्ता से हाथ धो बैठे. बीजेपी ने इस घटना का फायदा उठाते हुए राज्यपाल मोती लाल वोहरा को मायावती के पक्ष में अपना समर्थन पत्र दे दिया. मुलायम सिंह ने राज्यपाल से सदन में बहुमत साबित करने का मौका मांगा, लेकिन राज्यपाल ने अगले ही दिन मायावती को बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाने का न्यौता दे डाला. 3 जून यानी घटना के एक दिन बाद ही मायावती ने मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली. हलांकि कहा जाता है कि राजनीति में स्थाई दोस्त और दुश्मन नहीं होते. साल 2019 में गेस्ट हाउस कांड के घात को दिल में दबा मायावती ने एसपी से एक बार फिर हाथ मिलाया. इस बार मुलायम के पुत्र के साथ उनकी जोड़ी को बुआ और बबुआ की जोड़ी के नाम से जाना गया. लेकिन ये गठबंधन कोई कमाल नहीं कर पाया. शायद राजनीति की मजबूरी में मायावती गेस्ट हाउस कांड को भूलने तैयार हो गई थी. लेकिन यूपी की सियासत का ये काला दिन हमेशा याद किया जाता रहेगा.

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