दंतेवाड़ा: छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में हुए नक्सली हमले (Dantewada Naxal Attack) ने एक बार फिर से पूरे देश का ध्यान नक्सलियों की ओर खींचा है. 10 जवान सहित 11 लोगों की मौत से पूरा देश हिला हुआ है. इस हमले (Dantewada Naxal Attack) को लेकर एक और जानकारी सामने आई है जो और भी परेशान करने वाली है.
10 शहीद जवान में 5 पूर्व नक्सली
बस्तर रेंज के डीआईजी पी सुंदरराज के मुताबिक दंतेवाड़ा एटैक (Dantewada Naxal Attack) में जो 10 जवान मारे गये उनमें से पांच जवान हाल ही में DRG में शामिल हुए थे और ये जवान कोई और नहीं बल्कि पूर्व नक्सली थे. इन लोगों ने नक्सलवाद का रास्ता छोड़कर देश की मुख्यधारा में शामिल होने का फैसला किया था. पांच जवानों में से एक ने तो अभी पहले महीने की तनख्वाह भी नहीं ली थी, यानी DRG में शामिल हुए उसे एक महीना भी नहीं हुआ था.
दंतेवाड़ा हमले (Dantewada Naxal Attack) में जो नक्सलवाद छोड़ कर देश के मुख्यधारा में शामिल होने वाले जवानों के नाम थे- जोगा सोदी(उम्र 35 साल, हेडकांस्टेबल), मुन्ना कड़ती(उम्र 40 साल, कांस्टेबल) हरिराम मंडावी (उम्र 36 साल, कांस्टेबल) जोगा कवासी (उम्र-22 साल) और राजूराम करतम (उम्र 25 साल)
जोगा सोदी और मुन्ना कडती ने 2017 में DRG ज्वाइन किया था.दोनो दंतेवाड़ा के पास के ही गांव के रहने वाले थे. मुन्ना कड़ती(उम्र 40 साल कांस्टेबल) और हरिराम मंडावी 2022 में ही DRG में शामिल हुए थे.22 साल के जोगा कवासी पिछले महीने ही DRG फोर्स में शामिल हुए थे.
डीआरजी में कौन लोग होते हैं शामिल ?
स्थानीय लोग DRG यानी डिस्ट्रीक्ट रिजर्व फोर्स में शामिल होने वाले इन जवानों को धरती पुत्र यानी सन ऑफ सोइल कहते हैं .डीआरडजी में शामिल होने वाले युवा स्थानीय होते हैं, जिन्हें अपने इलाके के बारे में जानकारी रहती है. इन्होंने जंगल का कोना कोना छाना हुआ होता है. ये वो लोग होते हैं जिनके पास स्थानीय सोर्स से नक्लियों के मूवमेंट के बारे में सटीक जानकारी रहती है.
डीआरडी के गठन का फायदा
छत्तीसगढ़ में DRG के गठन के बाद के बाद से नक्लियों से निबटने में काफी मदद मिली है. छत्तीसगढ़ में सबसे पहले डिस्ट्रीक्ट रिजर्व फोर्स यानी DRG का गठन सबसे ज्यादा नक्सली हिंसा से प्रभावित कांकेर और नारायणपुर में 2008 में किया गया था. फिर 2013 में बीजापुर और बस्तर में इसकी स्थापना की गई. 2014 में सुकमा और 2015 में दंतेवाड़ा में DRG का गठन किया गया.
सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि जब से इस फोर्स का गठन हुआ है, नक्सलवाद से निबटने में काफी मदद मिली है.लेकिन दस जवानों की मौत के बाद सुरक्षा एजेंसियों समेत पूरे देश में मातम है.