मुफ्त योजनाओं और राजनीतिक दलों के वादों पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कई अहम सवाल उठाएं. सीजेआई रमना ने कहा कि, हम राजनीतिक दलों को वादे करने से नहीं रोक सकते हैं. उन्होंने कहा कि हम फैसला करेंगे कि फ्रीबीज क्या है. सीजीआई ने कहा कि अब यह परिभाषित करना होगा कि फ्रीबीज क्या है, जनता के पैसे को कैसे खर्च किया जाए. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इसपर भी चर्चा जरूरी है कि राजनीतिक दलों के सही वादे क्या हैं और किन्हें फ्रीबीज के तौर पर सही मना जाए. उन्होंने कहा कि क्या हम किसानों को मुफ्त में खाद देने से रोक सकते हैं, क्या मुफ्त शिक्षा या सबको शिक्षा के वादे को सार्वजनिक धन खर्च करने का सही तरीका माना जा सकता है. इस मामले की अगली सुनवाई अब सोमवार को होगी.
आपको बता दें ये मामला तब शुरु हुआ जब बीजेपी नेता और एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर मुफ्त की योजनाओं पर लगाम लगाने और ऐसे वादें करने वाली पार्टियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की. जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए एक्सपर्ट कमेटी बनाने की बात कही.
वैसे इस याचिका के खिलाफ सबसे पहले आम आदमी पार्टी ने कड़ा विरोध जताया, AAP ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाओं को फ्रीबीज नहीं कहा जा सकता है. पार्टी ने कहा कि अगर फ्रीबीज़ पर बात हो ही रही है तो इसमें सांसदों, विधायकों और कॉरपोरेट्स को दिए जाने वाले भत्तों और छूट पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए.
इस चर्चा में केंद्र सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए फ्री बी कल्चर का कड़ा विरोध किया था. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इन योजनाओं को मुफ्तखोरी की संस्कृति का नाम दिया और कहा कि अब चुनाव केवल इसी आधार पर लड़ा जा रहा है जो देश को एक आपदा की ओर ले जाएगा. उन्होंने कोर्ट से इस मामले में दखल देना का भी अनुरोध किया.
वैसे प्रधानमंत्री मोदी ने भी मुफ्त योजनाओं और वादों को रेवड़ी कल्चर कह अपना पक्ष साफ किया था. उन्होंने इसे देश के वर्तमान और भविष्य के लिए खतरनाक बताया था.
क्या मुफ्त शिक्षा, पानी और कुछ यूनिट मुफ्त बिजली को फ्रीबीज कहा जा सकता है? जानिए मुफ्त योजनाओं पर CJI रमना ने क्या कहा
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