रायपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि मां बनना हर महिला के जीवन का खूबसूरत और अहम हिस्सा होता है, फिर चाहे वो खुद बच्चे को जन्म दे, सरोगेसी के जरिए मां बने या फिर बच्चे को गोद ले। सभी के अधिकार समान हैं। हाईकोर्ट ने साफ कहा कि मातृत्व अवकाश कोई सुविधा नहीं, बल्कि महिला का मौलिक अधिकार है। कोर्ट ने रायपुर आईआईएम में कार्यरत महिला अधिकारी को 180 दिन का बच्चा गोद लेने का अवकाश देने का आदेश दिया है।
क्या है पूरा मामला?
महिला अधिकारी की शादी 2006 में हुई थी, लेकिन उन्हें बच्चे (मातृत्व अवकाश) नहीं हुए। 20 नवंबर 2023 को उन्होंने एक नवजात बच्ची को गोद लिया, जो महज 2 दिन की थी। उन्होंने 180 दिन की छुट्टी के लिए आवेदन किया था, ताकि वो बच्चे की देखभाल कर सकें। लेकिन आईआईएम ने यह कहते हुए मना कर दिया कि उनकी पॉलिसी में इतनी छुट्टी का प्रावधान नहीं है। सिर्फ 60 दिन की कन्वर्टेड छुट्टी दी गई। बाद में राज्य महिला आयोग की संस्तुति के बाद 84 दिन की छुट्टी दी गई, लेकिन महिला अधिकारी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी।
सुनवाई में कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस विभु दत्त गुरु की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि मातृत्व अवकाश किसी एक तरह से मां बनने तक सीमित नहीं है। गोद लिए गए बच्चों को भी उतनी ही देखभाल और प्यार की जरूरत होती है, जितनी दूसरे बच्चों की देखभाल के लिए होती है। पहली बार मां और बच्चे के बीच रिश्ता बन रहा है, इसे किसी और पर नहीं छोड़ा जा सकता। बची हुई 96 दिन की छुट्टी भी महिला अधिकारी को तुरंत दी जानी चाहिए।
केंद्र सरकार की नीति लागू
महिला के वकील ने कहा कि जहां संस्थान की नीति (मातृत्व अवकाश) स्पष्ट नहीं है, वहां केंद्र सरकार की सिविल सेवा नियमावली लागू होती है। इसके अनुसार महिला अधिकारी 180 दिन की छुट्टी की हकदार हैं। अब संस्थान जैविक, सरोगेट या दत्तक मां में अंतर नहीं कर सकते। मातृत्व अवकाश सिर्फ एक सुविधा नहीं, बल्कि हर मां का अधिकार है।