Sunday, July 6, 2025

छत्तीसगढ़ में डीएपी की भारी किल्लत: किसानों की लागत प्रति एकड़ 914 रुपये बढ़ी, सरकार से बढ़ी आपूर्ति की मांग

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रायपुर : छत्तीसगढ़ में धान की बुवाई से पहले ही किसानों को डीएपी (डाई अमोनियम फॉस्फेट) की भारी कमी से जूझना पड़ रहा है। सरकारी समितियों में खाद की अनुपलब्धता और बाजार में महंगे दामों ने किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। किसान कालाबाजारी के आरोप लगा रहे हैं, जबकि राज्य सरकार वैकल्पिक उर्वरकों के उपयोग का सुझाव दे रही है,डीएपी के विकल्प के रूप में किसान अब एनपीके, एसएसपी और यूरिया का इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन इन विकल्पों से खर्च में लगभग 55 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो रही है, जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति पर बुरा असर पड़ रहा है।

रूस-यूक्रेन युद्ध बना संकट का कारण

कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार, रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते डीएपी के आयात में भारी गिरावट आई है, जिससे राज्य में इसकी आपूर्ति में करीब 70% की कमी दर्ज की गई है। इस गंभीर स्थिति को देखते हुए राज्य सरकार ने केंद्र को पत्र भेजकर खाद की आपूर्ति जल्द बढ़ाने का आग्रह किया है।

आयात पर निर्भरता बनी वजह

भारत की खाद आपूर्ति का करीब 60% हिस्सा आयात पर निर्भर है। डीएपी का आयात मुख्य रूप से रूस, चीन, सऊदी अरब, मोरक्को और जॉर्डन से किया जाता है। लेकिन पिछले दो वर्षों से रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित हुई है, जिससे भारत के साथ-साथ छत्तीसगढ़ को भी डीएपी की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है।

केंद्र से की गई आपूर्ति बढ़ाने की मांग

छत्तीसगढ़ कृषि विभाग के संचालक राहुल देव ने बताया कि डीएपी की आपूर्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है और कम आवंटन की वजह से यह संकट गहराया है। विभाग ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर अतिरिक्त डीएपी उपलब्ध कराने का अनुरोध किया है।

प्रति एकड़ 914 रुपये का अतिरिक्त खर्च 

वैकल्पिक उर्वरकों के प्रयोग से किसानों को प्रति एकड़ 914 रुपये ज्यादा खर्च करने पड़ रहे हैं। यह डीएपी की तुलना में करीब 55.39% अधिक है, जो छोटे और सीमांत किसानों पर भारी आर्थिक बोझ डाल रहा है। जानकारों की राय: बढ़ेगा श्रम और समय  इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के कृषि मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, डीएपी में नाइट्रोजन और फास्फोरस एक साथ मिलने से किसान केवल एक बार खाद डालकर काम पूरा कर लेते हैं। वहीं विकल्पों में अलग-अलग बार खाद डालने की जरूरत होती है, जिससे समय, श्रम और खर्च तीनों बढ़ जाते हैं।

बाजारों में कालाबाजारी से किसान परेशान

किसानों का आरोप है कि सरकारी समितियों में डीएपी की अनुपलब्धता के बावजूद बाजारों में यह खाद ऊंचे दामों में उपलब्ध है। इससे साफ संकेत मिलता है कि खाद की कालाबाजारी जोरों पर है। किसान मांग कर रहे हैं कि सरकार तुरंत इस पर नियंत्रण लगाए। छत्तीसगढ़ में धान की बुवाई के मौसम में किसानों को डीएपी (डाई अमोनियम फॉस्फेट) की भारी किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। डीएपी के अभाव में किसान मजबूरी में एनपीके, एसएसपी और यूरिया जैसे विकल्पों का उपयोग कर रहे हैं, जिससे खेती की लागत में बड़ा इजाफा हो गया है। 

किसान संघ ने लगाया कालाबाजारी का आरोप

भारतीय किसान संघ छत्तीसगढ़ के प्रदेश महामंत्री नवीन शेष ने आरोप लगाया कि सरकारी समितियों में डीएपी की अनुपलब्धता के बावजूद बाजारों में यह खाद महंगे दामों पर बिक रही है, जिससे कालाबाजारी का संकेत मिलता है। उन्होंने कहा कि वैकल्पिक खादों से किसानों की लागत बढ़ रही है, लेकिन सरकार की तरफ से राहत का कोई ठोस उपाय नहीं दिख रहा है।

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