Saturday, July 26, 2025

हरेली पर CM निवास में लोक कला और कृषि यंत्रों की सांस्कृतिक छटा, CM ने की पूजा

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छत्तीसगढ़ी लोकजीवन की खुशबू लिये हरेली तिहार का पारंपरिक उत्सव आज मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के निवास में विधिवत रूप से आरंभ हुआ. छत्तीसगढ़ एक ऐसा प्रदेश है, जहां प्रत्येक अवसर और कार्य के लिए विशेष प्रकार के पारंपरिक उपकरणों एवं वस्तुओं का उपयोग होता आया है. हरेली पर्व के अवसर पर मुख्यमंत्री निवास कार्यालय में ऐसे ही पारंपरिक कृषि यंत्रों एवं परिधानों की झलक देखने को मिली, जो छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की अमूल्य धरोहर हैं.

इस मौके पर अनेक परंपरागत वस्तुओं से भी साक्षात्कार करने का मौका मिला, जो कि आज के आधुनिक समय में प्रचलन में नहीं हैं. मसलन काठा, खुमरी, कांसी की डोरी, झापी, कलारी जैसी चीज़ों को देखना और इनके बारे में जानना बहुत ही दिलचस्प था.

काठा क्या होता है

यहां सबसे बाईं ओर दो गोलनुमा लकड़ी की संरचनाएं रखी गई थीं, जिन्हें काठा कहा जाता है. पुराने समय में जब गांवों में धान तौलने के लिए कांटा-बांट प्रचलन में नहीं था, तब काठा से ही धान मापा जाता था. सामान्यतः एक काठा में करीब चार किलो धान आता है. काठा से ही धान नाप कर मजदूरी के रूप में भुगतान किया जाता था.

खुमरी को जानें

सिर को धूप और वर्षा से बचाने हेतु बांस की पतली खपच्चियों से बनी, गुलाबी रंग में रंगी और कौड़ियों से सजी एक घेरेदार संरचना खुमरी कहलाती है. यह प्रायः गाय चराने वाले चरवाहों द्वारा सिर पर धारण की जाती है. पूर्वकाल में चरवाहे अपने साथ कमरा (रेनकोट) और खुमरी लेकर पशु चराने निकलते थे.कमरा जूट के रेशे से बना एक मोटा ब्लैंकेट जैसा वस्त्र होता था, जो वर्षा से बचाव के लिए प्रयुक्त होता था.

कांसी की डोरी को समझें

यह डोरी कांसी नामक पौधे के तने से बनाई जाती है. पहले इसे चारपाई या खटिया बुनने के लिए निवार के रूप में प्रयोग किया जाता था. डोरी बनाने की प्रक्रिया को डोरी आंटना कहा जाता है. वर्षा ऋतु के प्रारंभ में खेतों की मेड़ों पर कांसी पौधे उग आते हैं, जिनके तनों को काटकर डोरी बनाई जाती है. यह डोरी वर्षों तक चलने वाली मजबूत बुनाई के लिए उपयोगी होती है.

झांपी क्या होता है

ढक्कन युक्त, लकड़ी की गोलनुमा बड़ी संरचना झांपी कहलाती है. यह प्राचीन समय में छत्तीसगढ़ में बैग या पेटी के विकल्प के रूप में प्रयुक्त होती थी. विशेष रूप से विवाह समारोहों में बारात के दौरान दूल्हे के वस्त्र, श्रृंगार सामग्री, पकवान आदि रखने के लिए इसका उपयोग किया जाता था. यह बांस की लकड़ी से निर्मित एक मजबूत संरचना होती है, जो कई वर्षों तक सुरक्षित बनी रहती है.

कलारी किसे कहते हैं

बांस के डंडे के छोर पर लोहे का नुकीला हुक लगाकर कलारी तैयार की जाती है. इसका उपयोग धान मिंजाई के समय धान को उलटने-पलटने के लिए किया जाता है.

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