छत्तीसगढ: गौरेला-पेंड्रा-मरवाही में झोलाछाप डॉक्टर के इलाज के चक्कर में 12 साल की मासूम बच्ची की जान चली गई। उल्टी-दस्त की शिकायत पर परिजन इलाज के लिए झोलाछाप डॉक्टर के पास पहुंचे, लेकिन इलाज के दौरान बच्ची की तबीयत और बिगड़ती चली गई। जब तक परिजन बच्ची को लेकर जिला अस्पताल पहुँचे, तब तक देर हो चुकी थी। डॉक्टरों ने बच्ची को मृत घोषित कर दिया।
मामला पेंड्रा के सिलपहरी गांव के जोरान टोला में रहने वाले एक आदिवासी परिवार पर उस वक्त दुखों का पहाड़ टूट पड़ा जब उनकी 12 वर्षीय बच्ची खुशबू वाकरे की इलाज के दौरान मौत हो गई। परिजनों ने उल्टी-दस्त की शिकायत पर बच्ची का इलाज पास के गांव पीपलामार निवासी झोलाछाप डॉक्टर भगवानदास से कराया था।सुबह से झोलाछाप डॉक्टर इलाज के नाम पर बच्ची को दवाइयाँ देता रहा इंजेक्शन भी लगाया और बॉटल भी चढ़ाई, लेकिन बच्ची की हालत सुधरने के बजाय और बिगड़ती चली गई। जब बच्ची की तबीयत गंभीर हो गई तो डॉक्टर ने खुद परिजनों को सलाह दी कि उसे तुरंत जिला अस्पताल ले जाएं। परिजन शाम को जब खुशबू को जिला अस्पताल लेकर पहुँचे, तब तक बच्ची की सांसें थम चुकी थीं।
मामला संदिग्ध लगने पर जिला अस्पताल प्रबंधन ने मर्ग मेमो पेंड्रा पुलिस को भेज दिया है। पुलिस ने शव को मरचुरी में सुरक्षित रखवाते हुए पंचनामा और पोस्टमार्टम की कार्यवाही प्रारंभ कर दी है। पोस्टमार्टम के बाद शव परिजनों को सौंपा जाएगा। जिला अस्पताल की डॉक्टर नीलिमा कंवर ने बताया कि बच्ची को अत्यधिक उल्टी-दस्त हुआ था, जिससे शरीर में पानी की मात्रा बहुत कम हो गई थी। इसी डिहाइड्रेशन की वजह से उसकी मौत हुई है। वही बच्ची के परिजन दीनदयाल वाकरे का कहना है कि हम लोग तो बच्ची को ठीक करवाना चाहते थे। सुबह से इलाज चलता रहा, लेकिन हालत और बिगड़ गई। जब अस्पताल लाए तो डॉक्टरों ने बताया कि अब वह नहीं रही। फिलहाल पुलिस झोलाछाप डॉक्टर के इलाज की पूरी जांच कर रही है। इस घटना ने एक बार फिर ग्रामीण क्षेत्रों में झोलाछाप डॉक्टरों के अवैध इलाज पर सवाल खड़े कर दिए हैं।